हेल्थ डेस्क, रांची : यह मामला किसी यातना शिविर का नहीं है। झारखंड के एक मेडिकल कॉलेज से ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसे देख आपकी भी रूह कांप जाएगी। जी हां। सुनकर तो बिल्कुल भी भरोसा नहीं होगा। लेकिन, हकीकत डरानेवाली है। यह डराने वाली सच्चाई जमशेदपुर के महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज की है। जहां पर लगभग 20 वर्षों से 42 शव पड़े-पड़े सड़-गल रहे थे।
कंकाल में तब्दील हो चुके थ कई शव
पड़े-पड़े कई शव कंकाल में तब्दील हो चुके थे। वहीं, अन्य शवों काफी दुर्गंध आ रही थी। दुर्गंध से बचने के लिए कई तरह के केमिकल डालकर डीप फ्रीजर में रखा गया था। इसे लेकर एमजीएम मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. केएन सिंह जिले की उपायुक्त विजया जाधव से मिले थे।
उपायुक्त के निर्देश पर शवों का हुआ अंतिम संस्कार
उपायुक्त की ओर से आवश्यक कार्यवाही के लिए एसडीओ को निर्देश दिया गया था। शुक्रवार की देर रात मजिस्ट्रेट के देखरेख में भुइयांडीह स्थित स्वर्णरेखा बर्निंग घाट पर सभी शवों का डिस्पोजल कराया गया। अधिकांश शव कंकाल का रूप ले चुका था।
एमजीएम मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल डा. केएन सिंह ने बताया कि ये शव बीते कई वर्षों से एमजीएम में पड़ा हुआ था। जिसके कारण काफी परेशानी हो रही थी। इसे डिस्पोजल कराना अति-आवश्यक था।
डीप फ्रीजर में ठूंस-ठूंसकर रखे थे शव
शवों की संख्या इतनी अधिक हो गई थी कि विभाग के डीप फ्रीजर में थोड़ी सी भी जगह नहीं बची थी। अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि 42 शवों को रखना कितनी बड़ी चुनौती रही होगी। कॉलेज के एक कर्मचारी ने बताया कि 42 शवों के शरीर को भाग-भाग व टुकड़े-टुकड़े कर डीप फ्रीजर में रखा गया था। ताकि इसकी दुर्गंध बाहर नहीं जा सके।
आखिर क्यों छिपाए जाते थे ये शव?
इतनी बड़ी संख्या में शवों को एक साथ रखना कॉलेज प्रबंधन के लिए भी बहुत बड़ी चुनौती थी। दिल्ली से जब नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) की टीम निरीक्षण करने आती थी तब कॉलेज प्रबंधन का पसीना छूटने लगता था।
इन शवों को छिपा कर रखा जाता था। इसके लिए डीप फ्रीजर को अच्छी तरह से ढक दिया जाता था। ताकि उसपर किसी का नजर नहीं जाए। वहीं, इन शवों से बदबू नहीं आए इसे लेकर कई तरह के केमिकल डाला जाता था।
इस मेडिकल कालेज में नहीं है शवों के डिस्पोजल व्यवस्था
आपके मन में सवाल चलता होगा कि एक साथ इतने शव आखिर आए कहां से। तो आइए हम आपको बताते हैं। दरअसल, एमजीएम मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस छात्रों की पढ़ाई में मृत शरीर की जरूरत होती है। इसके लिए लोग मृत शरीर को दान करते हैं या फिर अज्ञात शवों को लिया जाता है।
इन मृत शरीर के अलग-अलग भागों की जानकारी छात्रों को दी जाती है। काम पूरा होने के बाद उनका डिस्पोजल किया जाता है। एमजीएम मेडिकल कालेज में डिस्पोजल करने की व्यवस्था नहीं है। जिसके कारण बीते 20 सालों से ये शव या शरीर के टुकड़े यूं ही पड़े रहे। समय गुजरता रहा।
पहले इस तरह से किया जाता था डिस्पोजल
एमजीएम कालेज में जब इंसीनरेटर मशीन नहीं लगी थी तब तक यानी वर्ष 1999 तक मृत शरीर को जमीन में गाड़कर उसका डिस्पोजल किया जाता था। उसके बाद वर्ष 2000 से मृत शरीरों का डिस्पोजल करने के लिए कालेज में इंसीनरेटर मशीन लगाई गई लेकिन उसका आकार छोटा हो गया।
जिसके कारण उसका उपयोग नहीं हो सका और सभी शवों को एक साथ रखा जाने लगा। जिसके कारण शवों की संख्या बढ़कर 42 हो गई।