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Treatment Expensive Government Hospitals : इस राज्य के सरकारी अस्पतालों में इलाज हुआ महंगा, मरीजों को करना होगा ज्यादा खर्च

by Rakesh Pandey
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कर्नाटक : कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने राज्य के सरकारी अस्पतालों में इलाज और चिकित्सा सेवाओं के शुल्क में बढ़ोतरी कर दी है। हाल ही में जारी किए गए एक सर्कुलर में राज्य सरकार ने बताया कि यह शुल्क संशोधन तत्काल प्रभाव से लागू होगा। इस फैसले के बाद, मरीजों को सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए अब पहले से ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे। विशेष रूप से बेंगलुरु के सरकारी अस्पतालों में जैसे कि बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज और रिसर्च इंस्टीट्यूट (BMCRI) में इन नई दरों को लागू कर दिया गया है।

क्या बदला है अस्पतालों में शुल्क

कर्नाटक सरकार ने कई महत्वपूर्ण चिकित्सा सेवाओं के शुल्क में वृद्धि की है। ओपीडी (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) रजिस्ट्रेशन फीस, इनपेशेंट एडमिशन चार्ज, ब्लड टेस्ट और अन्य जरूरी सेवाओं के शुल्क में वृद्धि की गई है। अब इन अस्पतालों में इलाज कराने के लिए मरीजों को पहले से ज्यादा पैसे चुकाने होंगे।

मुख्य रूप से बढ़ी हुई दरें इस प्रकार हैं

ओपीडी रजिस्ट्रेशन फीस : पहले 10 रुपये थी, अब बढ़कर 20 रुपये हो गई है।
इनपेशेंट एडमिशन चार्ज : पहले 25 रुपये था, अब 50 रुपये कर दिया गया है।
ब्लड टेस्ट शुल्क : पहले 70 रुपये था, अब 120 रुपये हो गया है।
वॉर्ड चार्ज : पहले 25 रुपये था, अब 50 रुपये हो गया है।
हॉस्पिटल वेस्ट मैनेजमेंट शुल्क : पहले 10 रुपये था, अब बढ़कर 50 रुपये हो गया है।

राज्य सरकार का क्या कहना है

कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने इस शुल्क वृद्धि पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह शुल्क पहले से निर्धारित था और अब इसमें संशोधन किया गया है। उन्होंने यह भी बताया कि कुछ सेवाओं के शुल्क में केवल 10% से 20% की बढ़ोतरी की गई है। उदाहरण के लिए, जो शुल्क पहले 20 रुपये था, उसे अब 50 रुपये कर दिया गया है।

मंत्री ने कहा कि हम पुराने समय की कीमतों के आधार पर आज की कीमतों की तुलना नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई अतिरिक्त बोझ नहीं है, क्योंकि ये शुल्क अब भी किफायती हैं। राव ने आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि हम जो भी कदम उठाते हैं, लोग तुरंत गारंटी योजनाओं को दोषी ठहराना शुरू कर देते हैं। उनका कहना है कि इन योजनाओं के कारण शुल्क बढ़ा दिए गए हैं। हालांकि, यह गलत है। पिछली सरकारों ने भी पानी के बिल, बिजली बिल और अन्य सेवाओं के शुल्क में वृद्धि की थी। उन्होंने कहा कि यह कोई नया कदम नहीं है, और सभी सरकारों ने इस प्रकार के संशोधन किए हैं।

बढ़े हुए शुल्क के प्रभाव

नई शुल्क वृद्धि से सरकार के अस्पतालों में इलाज कराने वाले गरीब और मिडल क्लास वर्ग के लोगों पर असर पड़ने की संभावना है। पहले सरकारी अस्पतालों में इलाज अपेक्षाकृत सस्ता होता था, लेकिन अब बढ़ी हुई दरों से इन अस्पतालों में इलाज करवाना और भी महंगा हो जाएगा। यह उन मरीजों के लिए मुश्किल हो सकता है, जिनके पास निजी अस्पतालों में इलाज कराने के लिए पैसे नहीं होते।

यह शुल्क वृद्धि ऐसे समय में हुई है, जब कर्नाटक सरकार स्वास्थ्य योजनाओं और सुविधाओं के विस्तार का दावा कर रही है, लेकिन अस्पतालों की बढ़ी हुई फीस गरीब और असमर्थ लोगों के लिए एक नया बोझ साबित हो सकती है। सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए अब अधिक खर्च करने की मजबूरी उन लोगों के लिए एक चिंता का विषय बन सकती है, जो पहले इन अस्पतालों में इलाज कराने के बाद भी अपनी आर्थिक स्थिति को संतुलित कर पाते थे।

विपक्ष का आरोप

विपक्षी पार्टी बीजेपी ने कर्नाटक सरकार के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि सरकार ने गरीबों और आम जनता के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को महंगा कर दिया है, और यह सरकार का असंवेदनशील निर्णय है। बीजेपी ने यह भी आरोप लगाया कि इस बढ़ोतरी से राज्य सरकार पर दबाव बढ़ेगा और जनता का विश्वास खो सकता है।

कर्नाटक में सरकारी अस्पतालों के शुल्क में वृद्धि से राज्य की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर एक बड़ा सवाल उठता है। जहां एक ओर राज्य सरकार का कहना है कि ये शुल्क अब भी किफायती हैं, वहीं दूसरी ओर बढ़ी हुई फीस गरीब और मध्यम वर्ग के लिए एक नई चुनौती बन सकती है। कर्नाटक सरकार को इस पर पुनर्विचार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि स्वास्थ्य सेवाओं की किफायती उपलब्धता पर किसी प्रकार का नकारात्मक असर न पड़े।

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