पलामू : झारखंड के पलामू जिले में हुसैनाबाद अनुमंडल के हैदरनगर स्थित करीमनडीह गांव (मोकहर कला पंचायत) में भारत-पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान चले गए लोगों की “शत्रु संपत्तियों” की कथित गुपचुप नीलामी को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। केंद्र सरकार द्वारा ई-नीलामी के माध्यम से बेची गई इन कृषि भूमियों की नीलामी प्रक्रिया को लेकर स्थानीय ग्रामीणों ने नाराजगी जताई है और दोबारा नीलामी की मांग की है। उनका आरोप है कि नीलामी की प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं बरती गई, जिससे सरकार को भी राजस्व का नुकसान हुआ है।
ग्रामीणों का आरोप – अंधेरे में हुई करोड़ों की नीलामी
सूत्रों की मानें तो करीमनडीह गांव में कुल 11 शत्रु संपत्तियों को नीलामी में शामिल किया गया था, जिनका कुल क्षेत्रफल लगभग 3.48 हेक्टेयर (8.6 एकड़) है और इनका शुरुआती मूल्य 10,42,868 रुपये निर्धारित किया गया था। ग्रामीणों का आरोप है कि इस महत्वपूर्ण नीलामी की जानकारी न तो स्थानीय समाचार पत्रों में प्रकाशित की गई और न ही गांव में मुनादी कराई गई। इसके चलते आम लोगों को इसकी भनक तक नहीं लगी और 25 जून को हुई नीलामी में सिर्फ एक ही परिवार के चार सदस्य शामिल हो सके।
आश्चर्यजनक रूप से, उसी परिवार के दो सदस्यों ने इन सभी जमीनों को अपने नाम कर लिया। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें इस नीलामी की जानकारी तब मिली जब पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन की आखिरी तारीख 22 जून बीत चुकी थी। जबकि पंचायत भवन पर नोटिस 23 जून को चिपकाया गया और उसे भी जल्द ही हटा लिया गया, जिससे अन्य इच्छुक लोग नीलामी में भाग लेने से वंचित रह गए।

मुखिया के परिजनों पर मिलीभगत का आरोप
सबसे बड़ा आरोप पंचायत की मुखिया नजमा खातून के परिजनों पर लग रहा है, जिनके परिवार के सदस्य ही नीलामी में शामिल हुए। मुखिया के पति नवाजिश खान ने दावा किया है कि नीलामी की सूचना पंचायत सचिवालय और अंचल कार्यालय में प्रकाशित की गई थी, लेकिन राजद के प्रदेश सचिव रिजवान खां और स्थानीय लोगों का कहना है कि जानबूझकर इस जानकारी को छुपाया गया।
नीलामी रद्द कर दोबारा प्रक्रिया शुरू करने की मांग
गुस्साए ग्रामीणों ने अब सरकार और जिला प्रशासन से मांग की है कि इस नीलामी को तत्काल रद्द किया जाए और पूरी पारदर्शिता के साथ दोबारा नीलामी की प्रक्रिया शुरू की जाए। उनका कहना है कि यदि निष्पक्ष तरीके से नीलामी होती तो अधिक लोग इसमें भाग लेते और सरकार को भी उचित राजस्व प्राप्त होता।
जानकारों का भी मानना है कि यदि नीलामी की सूचना सही समय पर सार्वजनिक की जाती तो निश्चित तौर पर अधिक बोली लगती और सरकार को कई गुना अधिक राजस्व मिलता। इस गुपचुप प्रक्रिया ने न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों को ठेस पहुंचाई है, बल्कि सरकारी खजाने को भी नुकसान पहुंचाया है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि यह मामला सिर्फ नीलामी प्रक्रिया की पारदर्शिता का नहीं, बल्कि जनहित और सरकारी राजस्व को बचाने का भी है। उनकी मांग है कि इस नीलामी को रद्द कर निष्पक्ष और सार्वजनिक सूचना के साथ दोबारा प्रक्रिया शुरू की जाए, ताकि सभी इच्छुक लोग भाग ले सकें और सरकार को भी फायदा हो।