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भोजपुरी का सामाजिक-मनोवैज्ञानिक उपन्यास है ‘भँवरा’: प्रो. आरडी राय

प्रो. राजेश मल्ल ने लेखक को बधाई देते हुए कहा कि इसमें भोजपुरी के दुर्लभ मुहावरों का बहुत ही सटीक ढंग से प्रयोग हुआ है। प्रो. मल्ल ने इस कृति में जगह-जगह आई आकस्मिक घटनाओं से भी लेखक को सचेत रहने की सलाह दी।

by Anurag Ranjan
भोजपुरी उपन्यास 'भँवरा' का प्रेस क्लब में लोकार्पण करते साहित्यकार
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गोरखपुर: नर्वदेश्वर सिंह ‘मास्टर साहब’ लिखित ‘भँवरा’ भोजपुरी का ‘सामाजिक मनोविज्ञान का उपन्यास’ है। इसमें देसज और आंचलिक शब्दों की बहुतायत है, बावजूद इसके लेखक ने अद्भुत ढंग से भँवरा के चरित्र को रचा है। यदि इस कृति का हिंदी समेत अन्य भाषाओं में अनुवाद करवा लिया जाता है तो यह और बेहतर रहेगा।

ये विचार गोरखपुर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग के पूर्व विभाध्यक्ष प्रो. आरडी राय के हैं। वे रविवार को गोरखपुर जर्नलिस्ट प्रेस क्लब सभागार में साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था भोजपुरी संगम के तत्वावधान में आयोजित इस कृति के लोकार्पण समारोह में उपस्थित साहित्यकारों को संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. बनारसी त्रिपाठी ने की। संचालन का दायित्व भोजपुरी के वरिष्ठ कवि चंदेश्वर परवाना ने निभाया।

आगत अथितियों का अंगवस्त्र से हुआ सम्मान

कार्यक्रम की शुरुआत चंदेश्वर परवाना की सरस्वती वंदना से हुई। तत्पश्चात आगत अतिथियों को अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया। इस कृति के लोकार्पित होने के बाद फाजिलनगर, कुशीनगर से पधारे वरिष्ठ कहानीकार सत्य प्रकाश शुक्ल ने अपनी समीक्षा रपट पेश करते हुए कहा कि लेखक ने विवाहविच्छेद से उपजने वाली आज की सर्वाधिक ज्वलंत समस्या पर अपनी कलम चलाई है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कृति में आए संवादों को और ज्यादा भावप्रवण बनाने की जरूरत है।

नारी संघर्ष आधारित भोजपुरी उपन्यासों की कडी में शामिल है ‘भँवरा’

अपने संबोधन में प्रो. राजेश मल्ल ने लेखक को बधाई देते हुए कहा कि इसमें भोजपुरी के दुर्लभ मुहावरों का बहुत ही सटीक ढंग से प्रयोग हुआ है। प्रो. मल्ल ने इस कृति में जगह-जगह आई आकस्मिक घटनाओं से भी लेखक को सचेत रहने की सलाह दी। कुशीनगर से पधारे कवि बृजेश कुमार त्रिपाठी ने अपने संबोधन में लेखक को भोजपुरी गद्य की विकास यात्रा में दमदार उपस्थिति दर्ज करवाने की बधाई दी। प्रो. आद्या प्रसाद द्विवेदी ने इस कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा का यह नारी संघर्ष आधारित भोजपुरी उपन्यासों की कडी में शामिल ग्रंथ है। इसमें भरपूर कथारस है। कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. बनारसी त्रिपाठी ने कहा कि इस कृति में हमारे आसपास की ही कहानी है, जिसे अद्भुत ढंग से लेखक ने पेश किया है।

लोकार्पण के दौरान मौजूद साहित्य प्रेमी
लोकार्पण के दौरान मौजूद साहित्य प्रेमी

कार्यक्रम के आखिर में भोजपुरी संगम के संरक्षक इं. राजेश्वर सिंह ने सबके प्रति आभार व्यक्त किया। इस दौरान प्रमुख रूप से डॉ. जेपी नायक, वीरेंद्र मिश्र दीपक, धर्मेंद्र त्रिपाठी, सृजन गोरखपुरी, चंद्रगुप्त शर्मा अकिंचन, अरविंद अकेला, अवधेश नंद, भीम प्रसाद प्रजापति, गोरखपुर प्रलेस के महासचिव भरत शर्मा, रवीन्द्र मोहन त्रिपाठी, शशिविंदु नारायण मिश्र, अभिमन्यु पांडेय, वागेश्वरी मिश्र वागीश, भोजपुरी संगम के संयोजक कुमार अभिनीत, अरुण ब्रह्मचारी, दिनेश गोरखपुरी, राम सुधार सिंह सैंथवार, राम समुझ सांवरा, सत्यनारायण पथिक समेत छह दर्जन से ज्यादा लोग उपस्थित थे।

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