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इंसाफ के इंतजार में गुजर गई आधी उम्र, 46 साल बाद साबित हुई बेगुनाही

by Rakesh Pandey
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जापान: जापान में एक अनोखी और दुखद कहानी सामने आई है। इवाओ हाकामादा नामक एक व्यक्ति ने 46 साल तक जेल में अपनी मौत की सजा का इंतजार करते हुए काटी, केवल यह साबित करने के लिए कि वह निर्दोष था। 88 वर्षीय हाकामादा पर चार लोगों के खून के आरोप लगे थे। हालांकि, दो साल पहले नए सबूतों के आधार पर उन्हें बरी कर दिया गया था।

हाकामादा पर साल 1966 में अपने बॉस और उनके परिवार की हत्या का आरोप लगाया गया था। आरोप के तीन साल बाद, साल 1969 में अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई गई थी। इस सजा का इंतजार करते हुए हाकामादा ने 46 साल जेल की चारदीवारी में बिताए, जो कि दुनिया में अब तक का सबसे लंबा डेथ-रो केस है। पर कहते हैं न सच छुपाये नहीं छुपता, और आखिरकार हाकामादा की बेगुनाही सभी के सामने आ गई।

पुलिस ने अपराध कबूल करने को किया मजबूर

पूर्व मुक्केबाज हाकामादा ने अपने ऊपर लगे इन इल्जामों को लेकर हमेशा अपनी बेगुनाही का दावा किया था। उनके मुताबिक पुलिस ने उन्हें अपराध स्वीकार करने के लिए कई माध्यमों से मजबूर किया था। उनके वकीलों ने आरोप लगाया है कि जांचकर्ताओं ने सबूतों में हेरफेर किया है। इस मामले ने जापान में मौत की सजा के इस्तेमाल पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

हाल ही में, शिजुओका जिला न्यायालय ने हाकामादा के मामले की पुनः सुनवाई का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि साक्ष्य, विशेषकर खून से सने कपड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं। हालांकि, अभियोजक ने फैसले के खिलाफ अपील करने का कोई निर्णय नहीं लिया है। हाकामादा की बहन, हिदेको, जो उनके लिए एक अथक समर्थक रही हैं, उन्होंने कहा कि यह लड़ाई अंततः खत्म हो सकती है।

जापान में मृत्युदंड की जटिलता

जापान में मृत्युदंड की सजा पर जनता का व्यापक समर्थन है, जहां 80% लोग इसे अपरिहार्य मानते हैं। इस स्थिति ने हाकामादा जैसे मामलों को और भी जटिल बना दिया है, जो “बंधक न्याय” प्रणाली का एक उदाहरण हैं। अभियानकर्ताओं का कहना है कि इस मामले ने जापानी न्याय प्रणाली की खामियों को उजागर किया है, जहां संदिग्धों को लंबे समय तक हिरासत में रखा जाता है और अक्सर जबरन कबूलनामा कराया जाता है।

इवाओ हाकामादा का मामला न केवल एक निर्दोष व्यक्ति के लिए न्याय की लड़ाई है, बल्कि यह जापान की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को भी दर्शाता है। यह घटना उन सवालों को उजागर करती है जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या मृत्युदंड जैसी सजा आज के समाज में उचित है या नहीं।

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