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Jharkhand Bureaucracy :  नौकरशाही : दिल ढूंढता है… | Jharkhand Bureaucratic Satirical Story

jharkhand politics : झारखंड की नौकरशाही इन दिनों एक अजीब कशमकश के दौर से गुजर रही है। कब, क्या हो जाए, कोई नहीं जानता। कब किसका सितारा अर्श पर पहुंच जाए, कब किसका फर्श पर, अनुमान लगाना मुश्किल है। आखिर क्या चल रहा है, अंदरखाने, जानें चीफ एग्जीक्यूटिव एडिटर की कलम से।

by Dr. Brajesh Mishra
Jharkhand Bureaucracy
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Jharkhand Bureaucracy : गुरु मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। आंखें स्क्रीन पर टिकी थीं। बीच-बीच में अंगुलियों से कुछ स्क्रॉल कर रहे थे। जैसे-जैसे अंगुलियां ऊपर जातीं, चेहरे पर हर्ष का भाव और प्रखर होता जाता। कुछ मिनटों तक यह दृश्य यथावत रहा। माहौल में शांति बनी रही। लगा, गुरु को कमरे में किसी और की उपस्थिति का अहसास नहीं है। इतने में पानी का गिलास और चाय का कप आ गया। गुरु ने सेवक को टेबल पर ट्रे रखने का इशारा किया। मोबाइल को सामने रखा और फिर मुखातिब हुए। पहला सवाल- बहुत दिनों बाद पलटे।

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उत्तर- हां, गुरु। छठ पूजा में गांव निकल गया था, परिवार के साथ। लौटा तो कुछ सामान और प्रसाद पहुंचाने आश्रम आ गया। गुरु बोले- अच्छा किया कुछ ले आए। यहां तो सब लेने ही आते हैं। तुम तो कुछ देने आए हो। वाक्य पूरा करते ही खिलखिला उठे। अभिव्यक्ति जारी रखी। कहा- तुम्हें कुछ खबर भी है? तुम्हारे भ्रमण के दौरान वनांचल की नौकरशाही में कितना कुछ बदल गया? हां गुरु, पता तो चला, लेकिन बस- खबर। कहानी नहीं। गुरु फिर हंस पड़े। कहा- कहानी जानने के लिए तो गुरु कृपा की जरूरत होती है।

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इतना कहकर फिर ठहाका लगाने लगे। गुरु का मिजाज आम दिनों से कुछ अलग, कुछ बेहतर था। बात-बात में अंदर की खुशी झलक रही थी। गुरु से प्रसन्न मुद्रा में कहानी सुनने का अपना ही मजा था। लिहाजा, प्रतिउत्तर दिया, यही तो जानने आए हैं गुरु! बात पूरी होते ही गुरु शुरू हो गए। कहा- एक बात जानते हो। पूछा- क्या? इस पूरे बदलाव की कवायद में सबसे बुरी भद्द तुम्हारी बिरादरी की पिटी। एक से एक तुर्रम खां 48 घंटे में सबसे बड़ी सूचना की पुष्टि नहीं कर सके। खबर भी हमारे शिष्यों ने निकाल कर दी। हद तो यह कि कुर्सी के लिए नए दावेदार के नाम का सही कयास तक नहीं लगा सके। गुरु की हां में हां मिलाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था।

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कहा- सही कह रहे गुरु, बोलकर एक बार गेंद फिर उनके पाले में डाल दी। सूचनाओं की भीड़ में असल सूचनाएं कैसे गायब हैं? मोबाइल पर यही देखकर मुस्करा रहा था। आखिर गुरु ने अपनी प्रसन्नता का राज खोल दिया था। हालांकि, कई बातें अब भी अधूरी थीं, जिनके उत्तर की प्रतीक्षा थी। जवाब जानने के लिए प्रश्न करना जरूरी हो गया। सो किया।

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गुरु! अगर अनुमति हो तो एक सवाल पूछें? उनकी हामी भरते ही कहा- खाकी धारण किए एक बड़े सूरमा लंबे समय से बड़ी कुर्सी के लिए प्रतीक्षारत हैं। आखिर उनकी किस्मत कब पलटेगी? हर बार कहां पेच फंस जाता है? गुरु बोले- देखो, कुछ लोगों को मेरी बात बुरी लगती है। कारण कि मैं खरा-खरा बोलता हूं। जिन सूरमा की बात कर रहे हो, वह खाकी वर्दी वाले कम और मानवाधिकार कार्यकर्ता ज्यादा हैं। यही कारण है कि न तो उनका कोई मित्र है और ना वह किसी के।

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उनकी चलती तो पहले वाले श्रीमान कृष्ण जन्मस्थान पहुंचा दिए गए होते। व्यवस्था को ऐसे व्यवस्थापक की जरूरत नहीं होती। यही कारण है कि बार-बार उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है। गुरु की बात पूरी होते ही बगल के कमरे में किसी ने एफएम लगा दिया। संगीत बजने लगा- दिल ढूंढता है, फिर वही, फुरसत के रात-दिन‍ …।

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