शिव की महिमा: कर्पूर गौरवं करुणावतारं
शिव, जिनकी महिमा अनंत है, उन्हें संसार में महादेव के रूप में पूजा जाता है। वे न केवल देवताओं के देवता हैं, बल्कि अपनी उदारता और कृपा से पूरे विश्व के रक्षक भी हैं।
सभी 33 करोड़ देवताओं में, शिव ही एकमात्र महादेव कहलाए। तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथ रामचरितमानस में शिव के महान कार्यों और उनकी सर्वव्यापक महिमा का विस्तृत वर्णन किया है:
जरत सकल सुर वृंद, विषम गरल जेहि पान किय।
कस न भजिए मन मंद, को कृपाल संकर सरिस।
यह कविता शंकर की महानता को प्रदर्शित करती है, जिन्होंने समुद्र मंथन के समय विष का पान किया था। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया, और वे नीलकंठ कहलाए।
शिव का विषपान और महादेव बनने की कथा
समुद्र मंथन से जब विष उत्पन्न हुआ, तो भगवान शिव ने उसे अपने गले में रोक लिया और संसार की रक्षा की। विषपान से उनकी कंठ में जलन थी, लेकिन पार्वती के सुहाग की रक्षा के लिए शिव ने उस विष को सहन किया। इसलिए, शिव देव नहीं, महादेव कहलाए, क्योंकि उनके इस बलिदान और करुणा ने ही उन्हें सर्वोत्तम देवता बना दिया।
रहीम ने भी इस घटना को स्वीकार करते हुए लिखा:
मान सहित विष खाइ के, शंभु भए जगदीश।
बिना मान अमृत भखयो, राहु कटायो सीस।
मृकण्ड ऋषि और भगवान शिव की कृपा
मार्कण्डेय ऋषि का जीवन एक और प्रेरणा का स्रोत है। संतानहीन होने के कारण मार्कण्डेय ऋषि दुखी थे। वे चाहते थे कि भगवान शिव उनकी संतानहीनता को दूर करें। महादेव ने मार्कण्डेय ऋषि को पुत्र का वरदान दिया, लेकिन साथ ही यह चेतावनी दी कि यह पुत्र अल्पायु (12 वर्ष का) होगा।
इस वरदान के बाद मार्कण्डेय का जन्म हुआ। जैसे ही वे बड़े हुए, मार्कण्डेय ऋषि को यह पता चला कि उनका पुत्र अल्पायु है। यह जानकर उनकी चिंता बढ़ गई। मार्कण्डेय ने मार्कण्डेय को महामृत्युंजय मंत्र की दीक्षा दी और उन्हें शिव के पास दीर्घायु का वरदान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।
महामृत्युंजय मंत्र और यमराज का प्रतिकार
मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना शुरू की और महामृत्युंजय मंत्र का जप किया:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
जब उनकी उम्र पूरी होने वाली थी, तो यमराज ने उन्हें लेने के लिए भेजे गए यमदूतों को भेजा। लेकिन यमदूतों ने मार्कण्डेय को छूने का साहस नहीं किया, क्योंकि वे महाकाल की पूजा में लीन थे। यमराज स्वयं मार्कण्डेय के पास आए। जब उन्होंने मार्कण्डेय को देखा, तो बालक शिवलिंग से लिपट गया और जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगा।
महाकाल ने यमराज को आदेश दिया और मार्कण्डेय को दीर्घायु का वरदान दिया। इस कृपा से मार्कण्डेय अमर हो गए, और उनका मंत्र महामृत्युंजय अब संसार को काल से मुक्ति देने वाला माना जाता है।
शिव के वरदान से मिली अमरता
महाकाल की कृपा से मार्कण्डेय ने मृत्यु के भय को परास्त किया। उनका मंत्र आज भी उन सभी को जीवनदान देता है जो उसे सच्चे मन से जाप करते हैं। महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को शिव की कृपा प्राप्त होती है और वह मानसिक एवं शारीरिक कष्टों से मुक्त होता है। यह सोमवार को विशेष रूप से जाप करने से शिवजी की कृपा प्राप्त होती है, जो असाध्य रोगों और मानसिक तनाव को दूर करता है। महादेव की महिमा, उनकी करुणा और महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति न केवल हमारे जीवन को दिशा देती है, बल्कि यह हमें काल के प्रभाव से भी मुक्ति दिलाती है। भगवान शिव का यह आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ बना रहे और हम महाकाल की कृपा से जीवन में सफलता प्राप्त करें।
डा जंग बहादुर पाण्डेय’तारेश’
पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
रांची विश्वविद्यालय, रांची
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