Mahashivratri Spacial : शिव देवों के देवता हैं, जिन्हें महादेव के नाम से भी पूजा जाता है। वे अपने भक्तों के लिए भोलेनाथ हैं, जबकि शत्रुओं के लिए उनका रूप भाले जैसा तीव्र और विध्वंसक होता है। शिवलिंग का प्रतीकात्मक रूप बहुत गहरे अर्थ को समाहित करता है, और इसे समझना हर भक्त के लिए आवश्यक है। बहुत से लोग इसे गलत तरीके से यौनांग से जोड़ते हैं, लेकिन इसका वास्तविक अर्थ कुछ और है।
शिवलिंग का सांस्कृतिक और ब्रह्मांडीय अर्थ
वायु पुराण के अनुसार, प्रलय काल में संपूर्ण सृष्टि शिव में लीन हो जाती है और पुनः सृष्टि की शुरुआत भी उसी से होती है। यही कारण है कि शिवलिंग को सृष्टि के आदि-अनादि रूप का प्रतीक माना जाता है। वास्तव में, शिवलिंग में बिंदु और नाद का मेल है। बिंदु का अर्थ है शक्ति और नाद का अर्थ है शिव। इन दोनों का संयुक्त रूप ही शिवलिंग के रूप में पूजनीय है। यही नहीं, यह ब्रह्मांड के रूप में पृथ्वी, आकाश और सभी ऊर्जा के केंद्र का प्रतीक है।
ज्योतिर्लिंग: शिव के दिव्य रूप का साक्षात्कार
ज्योतिर्लिंग शब्द का अर्थ है “व्यापक प्रकाश” और इसे ब्रह्मात्मलिंग भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार, ज्योतिर्लिंग का सिद्धांत वह है जिसमें 12 ज्योतिर्लिंग का वर्णन है। ये 12 ज्योतिर्लिंग उस व्यापक ऊर्जा और प्रकाश के रूप में पूजे जाते हैं, जो शिव के स्वरूप से उत्पन्न होती है।
सभी शिवलिंगों में ज्योतिर्लिंग विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि ये 12 प्रमुख पिंड भगवान शिव के आकाशीय रूप के रूप में अस्तित्व रखते हैं। इन 12 पिंडों में से कुछ का निर्माण आकाशीय पत्थरों (उल्कापिंड) से हुआ था, जो प्राचीन काल में पृथ्वी पर गिरे थे। इन पिंडों के गिरने से धार्मिक महत्व बढ़ा और इन स्थानों पर मंदिरों का निर्माण किया गया।
आकाशीय पत्थर और शिव मंदिरों का निर्माण
प्राचीन समय में जब पृथ्वी पर अधिक उल्कापात हुआ, तो इसे शिव के रुद्र रूप का प्रकट होना माना गया। यह किवदंती बताती है कि जहाँ-जहाँ ये आकाशीय पिंड गिरे, वहां वहां शिव मंदिरों का निर्माण हुआ और उन पिंडों को ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजा जाने लगा।
इन पिंडों में से 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंग शास्त्रों में वर्णित हैं, जिनमें से कुछ को भगवान शिव ने स्वयं प्रकट किया था। इन ज्योतिर्लिंगों की पूजा से संसार की सम्पूर्ण ऊर्जा और जीवन के स्रोत से जुड़ा जाता है।
शिवलिंग की पूजा का महत्व
शिवलिंग की पूजा, शिव के अद्वितीय और निराकार रूप की पूजा है। पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता के विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था, जिसे ज्योति के रूप में जाना गया। इसी ज्योति के आधार पर शिव की पूजा की जाती है।
शिव पुराण में कहा गया है कि इस लिंग के माध्यम से ही भगवान शिव की पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिव्य रूप का उद्घाटन ही सर्वशक्तिमान ब्रह्मा और विष्णु को भगवान शिव के परम रूप को पहचानने का मार्गदर्शन देता है।
रामेश्वरम और शिवलिंग की प्रतिष्ठा
भगवान श्रीराम ने लंकाविजय के समय समुद्र तट पर रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की थी। रामेश्वरम में स्थापित शिवलिंग की पूजा का महत्व बहुत है, और राम ने स्वयं इसे स्थापित करते हुए कहा था:
लिंग थापी बिधिवत करि पूजा।
सिव समान प्रिय मोहि न दूजा।
बिनु छल विश्वनाथ पद नेहू।
राम भक्त कर लक्षण एहू।
इसका अर्थ है कि राम के लिए शिवलिंग से अधिक प्रिय कोई और नहीं था, और यही शिवलिंग शिव के महान और अभिन्न रूप का प्रतीक है। शिवलिंग और ज्योतिर्लिंग के रहस्यों को समझना हमारे आध्यात्मिक मार्ग को और मजबूत बनाता है। इनका वास्तविक अर्थ केवल भक्ति और श्रद्धा से ही समझा जा सकता है। शिवलिंग का प्रतीक शिव के निराकार रूप, उनकी शक्ति और ज्ञान का अद्वितीय मिश्रण है, जो हमें जीवन में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
डा जंग बहादुर पाण्डेय’तारेश’
पूर्व अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
रांची विश्वविद्यालय, रांची
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