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Maha Kumbh Mela 2025 : पौष पूर्णिमा से शुरू होगा, जानें सही तिथि और स्नान मुहूर्त

by Rakesh Pandey
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प्रयागराज : महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का एक अभिन्न हिस्सा है, जिसे दुनिया के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण धार्मिक मेलों में से एक माना जाता है। यह मेला हर 12 वर्षों में चार प्रमुख स्थानों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है। इन स्थानों का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है, और लाखों श्रद्धालु इस अवसर पर पवित्र स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं। खास बात यह है कि इस मेले में शामिल होने से आस्था रखने वालों को मोक्ष की प्राप्ति और उनके पापों का नाश होने का विश्वास है।

महाकुंभ मेला 2025 की तिथि और स्थान

साल 2025 में महाकुंभ मेला उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित होगा। इस मेले की शुरुआत 13 जनवरी को होगी और समापन 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन होगा। महाकुंभ मेले की अवधि करीब 45 दिन होगी। इस दौरान श्रद्धालु गंगा नदी में पवित्र स्नान करेंगे।

शाही स्नान का मुहूर्त

2025 के महाकुंभ में कुल छह शाही स्नान होंगे, जिनमें से प्रमुख स्नान निम्नलिखित तिथियों पर होंगे:

13 जनवरी 2025 – पहले शाही स्नान की शुरुआत।
14 जनवरी 2025 – मकर संक्रांति पर दूसरा शाही स्नान।
29 जनवरी 2025 – मौनी अमावस्या पर तीसरा शाही स्नान।
2 फरवरी 2025 – बसंत पंचमी पर चौथा शाही स्नान।
12 फरवरी 2025 – माघ पूर्णिमा पर पांचवां शाही स्नान।
26 फरवरी 2025 – महाशिवरात्रि पर छठा और अंतिम शाही स्नान।
इन शाही स्नानों के दौरान लाखों लोग पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति पाने की कोशिश करेंगे। इन विशेष दिनों में धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा पाठ का आयोजन भी बड़े पैमाने पर किया जाएगा।

महाकुंभ मेले का शुभ संयोग

2025 के महाकुंभ मेला के दौरान एक खास शुभ संयोग भी बन रहा है। 13 जनवरी को रवि योग और भद्रावास योग का संयोग बन रहा है। रवि योग सुबह 7:15 से 10:38 बजे तक रहेगा, और इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। इन योगों के बीच महाकुंभ का आयोजन और भी अधिक धार्मिक महत्व प्राप्त करता है, जो श्रद्धालुओं के लिए पुण्य और आशीर्वाद का स्रोत बन सकता है।

महाकुंभ मेले की तिथि का निर्धारण

महाकुंभ मेले की तिथि और स्थान का निर्धारण वैदिक ज्योतिषशास्त्र के अनुसार होता है। इसमें प्रमुख रूप से ग्रहों की स्थिति और राशियों का विश्लेषण किया जाता है। कुंभ मेला उस स्थान पर आयोजित किया जाता है, जहां सूर्य और बृहस्पति ग्रहों की स्थिति विशेष होती है।

प्रयागराज में कुंभ मेला तब लगता है जब बृहस्पति वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं।
हरिद्वार में मेला तब लगता है जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं।
नासिक में मेला तब आयोजित होता है जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।
उज्जैन में कुंभ मेला तब होता है जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं।

महाकुंभ मेले का ऐतिहासिक महत्व

महाकुंभ मेला एक धार्मिक किवदंती से जुड़ा हुआ है जिसका संबंध समुद्र मंथन से है। पुरानी कथा के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा के श्राप से देवता कमजोर पड़ गए थे, और राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद मांगी। भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त करने की सलाह दी।

समुद्र मंथन के दौरान अमृत का कलश निकला और इसे लेकर भगवान इंद्र के पुत्र जयंत आकाश में उड़ गए। राक्षसों ने भी अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देवताओं से युद्ध किया, जो 12 दिनों तक चला। इस युद्ध के दौरान कुछ अमृत की बूंदें हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिरीं। इसलिए इन चार स्थानों पर महाकुंभ मेला आयोजित किया जाता है, और यह स्थान पवित्र माने जाते हैं।

महाकुंभ मेला न केवल हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए एक धार्मिक यात्रा है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था और एकता का प्रतीक भी है। 2025 के महाकुंभ मेला में लाखों श्रद्धालु एक साथ आकर इस अद्भुत धार्मिक अनुभव का हिस्सा बनेंगे।

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