हिन्दू धर्म में जहां-जहां सती देवी के शरीर के अंग गिरे थे, वहां शक्ति पीठ बन गये है। माना जाता है कि देवी मां के शक्ति पीठ के दर्शन करने व वहां भक्तों द्वारा मांगी गई कामना को देवी मां हमेशा पूरी करती हैं।
मां मंगलागौरी मंदिर
नवरात्र के मौके पर प्रत्येक देवी स्थानों पर भक्तों की भारी भीड़ इकट्ठा हो रही है। ऐसे में बिहार के गया शहर से कुछ ही दूरी पर भस्मकूट पर्वत पर स्थित शक्तिपीठ मां मंगलागौरी मंदिर पर सुबह से ही भक्तों का तांता लग जाता है। मान्यता है कि यहां मां सती का वक्ष स्थल गिरा था, जिस कारण यह शक्तिपीठ ‘पालनहार पीठ’ या ‘पालनपीठ’ के रूप में प्रसिद्ध है।
दुर्गा मंदिर मनोकामना सिद्धि मंदिर
बिहार के कटिहार में प्राणपुर प्रखंड स्थित रोशना बाजार दुर्गा मंदिर मनोकामना सिद्धि के मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। अपनी अलौकिक शक्ति के लिए यह दुर्गा मंदिर जाना जाता है। किसी शुभ कार्य के लिए निकलने पर लोग इस मंदिर में मन्नत मांगने पहुंचते हैं।
थावे दुर्गा मंदिर
बिहार के गोपालगंज जिले में थावे का अति प्राचीन दुर्गा मंदिर देवी भक्तों की श्रद्धा का बड़ा केंद्र है। गोपालगंज जिला मुख्यालय से छह किलोमीटर दूर सिवान-गोपालगंज मुख्य मार्ग पर स्थित मां दुर्गा के इस मंदिर में सिर झुकाने के लिए बिहार के साथ उत्तर प्रदेश और नेपाल के लोग भी आते हैं।
कैसे हुई थावे दुर्गा मंदिर की स्थापना
करीब तीन सौ साल पूर्व स्थापित यह जाग्रत प्राचीन शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है। प्रति वर्ष नवरात्र के समय यहां मेला लगता है। कहा जाता है कि यहां मां भगवती भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। यहां पूजा अर्चना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। प्रतिवर्ष अष्टमी को यहां बलि का विधान है, जिसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न कराया जाता है। यह स्थान हथुआ राज के ही अधीन था। मंदिर की पूरी देखरेख पहले हथुआ राज प्रशासन द्वारा ही की जाती थी। अब यह मंदिर इस जाग्रत पीठ का इतिहास भक्त रहषू स्वामी और चेरो वंश के क्रूर राजा की कहानी से जुड़ी हुई है। 1714 के पूर्व यहां चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था। ऐसा माना जाता है कि इस क्रूर राजा के दबाव डालने पर भक्त रहषू स्वामी की पुकार पर मां भवानी कामरुप कामाख्या से चलकर थावे पहुंचीं। उनके थावे पहुंचने के साथ ही राजा मनन सिंह का महल खंडहर में तब्दील हो गया। भक्त रहषू के सिर से मां ने अपना कंगन युक्त हाथ प्रकट कर राजा को दर्शन दिया। देवी के दर्शन के साथ ही राजा मनन सेन का भी प्राणांत हो गया। इस घटना की चर्चा पर स्थानीय लोगों ने वहां देवी की पूजा शुरू कर दी। तब से यह स्थान जाग्रत पीठ के रूप में मान्य है।
ऐतिहासिक थावे स्थित दुर्गा मंदिर तीन ओर से वन प्रदेशों से घिरा हुआ है। वन क्षेत्र से घिरे होने के कारण पूरा मंदिर परिसर रमणीय दिखता है। मंदिर में प्रवेश व निकास के लिए एक-एक द्वार है, जहां सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था रहती है। थावे दुर्गा मंदिर में चैत्र व शारदीय नवरात्र के दौरान सप्तमी के दिन होने वाली पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा में भाग लेने के लिए भक्त दूर-दूर से मंदिर में पहुंचते हैं। करीब एक घंटे तक चलने वाली इस पूजा के बाद महाप्रसाद का वितरण किया जाता है। इसके प्रति लोगों में बड़ी आस्था है। जो नहीं पहुंच पाते, उनकी भी इच्छा यहां का प्रसाद ग्रहण करने की होती है।
थावे दुर्गा मंदिर कैसे जाएं
यह मंदिर गोपालगंज से सिवान जाने वाले एनएच पर अवस्थित है। गोपालगंज से और सिवान से भी हर समय वाहन उपलब्ध रहते हैं। जिला मुख्यालय से प्रत्येक पांच मिनट पर बस की सुविधा मंदिर तक जाने के लिए है। इसके अलावा मंदिर के समीप ही थावे जंक्शन स्थित है। जहां सिवान व गोरखपुर से ट्रेन की सुविधा है। थावे जंक्शन के समीप देवी हाल्ट भी है। जहां इस रुट से आने वाली सभी पैसेंजर ट्रेनों का ठहराव इस हाल्ट पर होता है। शारदीय और वासंतिक नवरात्र के दिनों में सभी ट्रेनों का ठहराव देवी हाल्ट पर होता है। थावे मंदिर बिहार पर्यटन के नक्शे में आ गया है। यहां जाने के लिए गोपालगंज शहर से हर समय आवागमन की सुविधा है।