कुछ यादों के अवशेष
कुछ यादों के अवशेष धरे ।
कुछ वक्त मौन से यहांँ पड़े।।
इन बिखरे पन्नों में देखा।
हाँ स्वप्न कई थे कभी जड़े।।
कुछ राज़ सहेजे रक्खे थे ।
जज़्बात सहेजे रक्खे थे।।
उन्मुक्त से हो जो कह देते ।
हर हाल सहेजे रक्खे थे।।
जो रद्दी से अब दिखते हैं।
फूटी कौड़ी न बिकते हैं।।
उनमें रहती थी जान बसी ।
बेजान से जो अब लगते हैं।।
बस शब्द नहीं थे उन पर ये।
ना ही थी झूठी बातें ये।।
कुछ पल की कुछ सौगात थी।
बीती तकती कई रातें ये।।
अब लोग तमाशा करते हैं।
मुखरित वो भाषा करते हैं।।
जो शब्द कभी कह देते थे।
अब कीमत से आशा करते हैं।।
न प्रेम रहा पहले जैसा।
जग ढूंढे हर पल बस पैसा।।
अब ढेर नहीं होते खत के।
यह प्रेम है बोलो तुम कैसा।।
कुछ यादों के अवशेष धरे ।
कुछ वक्त मौन से यहांँ पड़े।।
इन बिखरे पन्नों में देखा।
हाँ स्वप्न कई थे कभी जड़े।।
पूनम शर्मा स्नेहिल