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शहरनामा : दल किस दलदल में समाए

by Birendra Ojha
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विधानसभा चुनाव के बाद सभी प्रमुख दलों में सन्नाटा सा पसरा है। ऐसा लग रहा है कि सभी किसी गहरे दलदल में समा गए हैं। पंजा वालों में थोड़ी हलचल दिखी थी, लेकिन अन्य तो हनीमून पीरियड में गोते लगाते हुए नजर आ रहे हैं। राज्य में सियासत का भरपूर अवसर होते हुए भी खलबली नहीं दिख रही है। बोर्ड के क्वेश्चन पेपर लीक होने पर ऐसा लगा था कि सबसे बड़ा दल शेर की तरह आक्रामक होकर झपटेगा, लेकिन पता नहीं क्यों, कुछ गिने-चुने बयानवीरों के अलावा कहीं हलचल नहीं हुई। मां-बहनों की योजना को लेकर भी सबसे बड़ा दल शांत नजर आ रहा है या चुनाव परिणाम से इतना हताश हो गया है कि हिम्मत नहीं रही। पहले सबसे बड़ा दल इसी हिम्मत वाले नारे का मजाक उड़ाता था, लेकिन अब लगता है कि न्यूटन का तीसरा नियम फेल हो गया है।

विधायिका करा रहीं आयोजन

आप इस वाक्य को पढ़ कर चौंक मत जाइएगा, बिल्कुल यही बात इन दिनों लाउडस्पीकर से कही जा रही है। दरअसल, आधी आबादी को खुशी मनाने का अवसर आने वाला है। इसकी तैयारी विभिन्न नारीवादी संगठनों से की जा रही है, तो जनप्रतिनिधि भी इस आयोजन को भव्य बनाने में जुटे हैं। यह आयोजन यदि महिला जनप्रतिनिधि की ओर से हो, तो गर्व करने वाली बात होनी ही चाहिए। बस बात इतनी सी है कि उस आयोजक की तरफ से यही घोषणा की जा रही थी। एक कार्यक्रम में जब उद्घोषक ने दो-तीन बार विधायिका कहा, तो शायद वहां मौजूद किसी ने कान में कहा, अरे विधायिका नहीं बेवकूफ, विधायक होता है। उद्घोषक को समझाया कि विधायिका तो सिस्टम का नाम होता है, व्यक्ति का नहीं। ऐसे लोग ही अध्यक्ष को अध्यक्षा और सचिव को सचिवा तक बना देते हैं। टोकने पर लड़ भी जाते हैं।

बच्चे दो ही अच्छे

वर्षों पहले परिवार नियोजन का नारा शुरू हुआ था ‘हम दो-हमारे दो’, फिर कहा जाने लगा ‘बच्चे दो ही अच्छे’। अब नया नारा ‘कम से कम तीन बच्चे’ का शुरू हुआ है। अपने देश में बहुसंख्यक आबादी को अल्पसंख्यक होने से बचाने के लिए यह नारा हाल ही में दिया गया है, जो अब तमाम समान विचारधारा वाले संगठनों-संस्थाओं की ओर से जोर-शोर से प्रसारित किया जा रहा है। कुछ दिनों पहले ऐसे ही एक बड़े नेता लौहनगरी आए और विश्व प्रजनन दर से भारत की तुलना करते हुए चिंता जताई। उन्होंने कहा कि अपना भविष्य सुरक्षित रखना है तो कम से कम तीन संतान अवश्य रखें। उन्होंने कहा कि अब लोग एक पर ही फुलस्टॉप कर रहे हैं। यह तो हद हो गई। यह कदम तो अगली पीढ़ी को समाप्त करने जैसा ही है। एक संतान होगी, तो उसके बच्चे को चाचा-बुआ कहां से मिलेंगे।

बुजुर्ग ने मस्ती में गवां दिए दो लाख


आजकल साइबर फ्रॉड नित नए हथकंडे अपना रहे हैं। हालांकि, अभी डिजिटल अरेस्ट वाला तरीका ज्यादा चल रहा है, लेकिन इससे पहले हनीट्रैप जोर-शोर से चला। कई बड़े अधिकारी व नेता भी इस जाल में ट्रैप हो जाते थे। इसी तरह का एक वाकया शहर के रिटायर्ड बैंक कर्मी के साथ हुआ। वे टाइमपास के लिए मोबाइल पर कुछ भी देखते रहते हैं। इसी में उन्हें एक रात वीडियो कॉल आ गया, तो सामने न्यूड अप्सरा को देखकर उनकी नींद ही फट गई। ध्यान से एक-एक दृश्य देखने लगे। कुछ देर बाद वीडियो कॉल बंद हुआ और उधर से फोन आ गया। फ्रॉड ने पूछा-क्या देख रहे थे। अब तुम्हारा भी वीडियो हमारे पास है, कहो तो फेसबुक पर डाल दूं। बेचारे पसीने से तरबतर हो गए। फिर ब्लैकमेल शुरू हुआ और ‘नादानी’ में हुई गलती के लिए दो लाख रुपये ऑनलाइन ट्रांसफर कर दिए।

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