प्रतिवर्ष 20 मार्च को मनाया जाता है गौरैया दिवस
सेंट्रल डेस्क : गौरैया पक्षी को संरक्षित करने के लिए समाज, सरकार व वन विभाग को संकल्प लेने की जरूरत है। घर-आंगन में इन दिनों सन्नाटा पसरा रहता है। फुदकने-चहकने वाली चिड़िया रानी न जाने कहां गायब होती जा रही है। एक समय था जब चिड़ियों की चहचहाहट कानों में शहद घोलती थी। कीटनाशक दवा के बढ़ते इस्तेमाल ने इनकी दुनिया ही उजाड़ दी है। लगभग 10 वर्ष पहले काफी तादाद में गौरैया देखने को मिल जाती थी, पर अब यह बेहद कम दिखती है।
गौरैया वो चिड़ियां है जो लार्वा और कीट, बीज आदि का सेवन करती है, जिससे प्रकृति में कीड़े-मकोड़ों का संतुलन बना रहता है। गौरैया खेतों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेती है और किसानों की फसल बर्बाद होने से बचाती है। जानकारी के अनुसार, गौरैया एक नन्हीं और मासूम सी चिड़िया है, जो मकान के आंगन में दाना चुगने के लिए आती है।
यह ज्यादातर खपड़े तथा कच्चे मकानों, छोटी झाड़ियों व कांटेदार वृक्ष में घोसला बनाती हैं। आज यह विलुप्त होने के कगार पर है। इसकी वजह भोजन और दाना-पानी की कमी, बाग व खेतों में रासायनिक खादों का प्रयोग और मोबाइल से निकलने वाली तरंग है। गौरेया को बचाने के लिए हम सबको आगे आना होगा। जिस घर में इसने घोसला बनाया है तो उसका बचाव करना होगा। आंगन व दीवारों पर दाना-पानी रखना होगा। हम सब मिलकर ही इसका संरक्षण कर सकते हैं।
वर्जन
गौरैया गोशाला के आसपास कच्चे मकानों में पाई जाती थी, इनके प्राकृतिक वास स्थान का समाप्त होना, मोबाइल रेडिएशन का दुष्प्रभाव, तीव्र ध्वनि आदि इनके बिलुप्ति का कारण बन रहे हैं।

- प्रो. डीके सिंह, पूर्व विभागाध्यक्ष जन्तु विज्ञान, डीडीयू यूनिवर्सिटी।
कीटनाशक जो शाक-सब्जियों पर कीट को मारने के लिए डाले जाते हैं, यदि उस कीटनाशक से लेपित कीड़े को चिड़िया खा लेती है तो गौरैया की तंत्रिका तंत्र, उपापचय, प्रजनन आदि पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

- रवि प्रताप सिंह, प्रवक्ता जीव विज्ञान, परम ज्योति इंटर कॉलेज, जंगल कौड़िया।