स्पेशल डेस्क, रांची : करम पर्व झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल में रहने वाले आदिवासी समुदाय का महत्वपूर्ण त्योहार है। समाज के लोग इसे अपनी संस्कृति का हिस्सा मांगते हैं। यही कारण है कि यह त्योहार समर्पण, एकता और भाईचारे के साथ मनाया जाता हैं। यह प्रकृति पर्व माना जाता है। यह भाई-बहन के प्यार और सघन प्रेम बंधन का प्रतीक है। इस त्योहार की तैयारी आमतौर पर कई दिन पहले ही शुरू होती है। इसमें परंपरागत गीत, नृत्य, और पूजा-अर्चना शामिल होती हैं। नदी घाट से बालू और जंगल से करम पेड़ की डाली लाकर इस पर्व की शुरुआत की जाती है। इस साल यह पर्व 25 सितंबर को मनाया जाएगा। जानें कैसे मनाया जाता है यह पर्व और क्या है इससे जुड़ी मान्यताएं।
करम पर्व कैसे मनाया जाता है?
करम पर्व की तैयारी त्योहार से एक सप्ताह पहले शुरू हो जाती है। बहनें अपने घरों में करम डाली को उगाती हैं। करम डाली एक विशेष प्रकार का पौधा है, जो करम के पेड़ से आता है। करम डाली को घर में लाने के बाद, बहनें उसे विधिवत पूजा करती हैं। करम पर्व के दिन, बहनें सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं। नए कपड़े पहनती हैं। फिर वे अपने भाई के घर जाती हैं। उसके साथ करम पूजा करती हैं। पूजा के बाद, बहनें अपने भाई के लिए भोजन बनाती हैं और उसे खिलाती हैं। इस दौरान सामूहिक रूप से विशेष नृत्य किया जाता है।
लंबी आयु और खुशहाली की कामना
करम पर्व का मुख्य अनुष्ठान करम पूजा है। करम पूजा में, बहनें करम डाली को एक विशेष स्थान पर स्थापित करती हैं और उसकी पूजा करती हैं। पूजा में, बहनें भगवान करम से अपने भाई की लंबी आयु और खुशहाली की कामना करती हैं। करम पर्व के दिन, बहनें अपने भाई के लिए विशेष व्यंजन बनाती हैं। इन व्यंजनों में करम चावल, करम दाल, करम रोटी, आदि शामिल हैं। बहनें अपने भाई को इन व्यंजनों को खिलाकर उसकी लंबी आयु और खुशहाली की कामना करती हैं।
करमा पूजा 2023 शुभ मुहूर्त
करमा पूजा इस साल 25 सितम्बर को मनाया जाएगा। करमा पूजा के दिन अहले सुबह 04 बजे के बाद व्रत का पालन शुरू कर दे वही प्रदोष काल में 05 बजकर 32 मिनट के बाद शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाती है जो पूरा रातभर है. वहीं अगले दिन सूर्योदय के बाद करमा पूजा का पारण दही खा कर ले।
जानिए करमा पूजा की विधि
करमा पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो झारखंड के लोग महान धूमधाम के साथ मनाते हैं। इसकी तैयारी कुछ दिन पहले ही शुरू हो जाती है। तैयारियों में नदी या तालाब मे बालू या मिटी डाली मे रखी जाती है फिर उसमे सात प्रकार के अनाज बोती है। करमा पूजा के दिन, एक बांस की डाली को सजाकर घर के आंगन में रखा जाता है। करमा वृक्ष के पेड़ को भी घर के आंगन में गाड़ा जाता है और इसके चारों ओर घर की महिलाएं बैठकर पूजा आराधना करती हैं। इसके माध्यम से, वे अपने भाई की सुख समृद्धि की कामना करती हैं। रातभर जागरण भी करमा पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो लोग उल्लास और भक्ति भाव से मनाते हैं।
करम पर्व की मान्यताएं
करम पर्व से जुड़ी कई अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक मान्यता यह है कि करम देवता एक दयालु देवता हैं, जो बहनों की रक्षा करते हैं। दूसरी मान्यता यह है कि करम डाली को घर में लाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। तीसरी मान्यता यह है कि करम पर्व के दिन अपने भाई के लिए भोजन बनाकर खिलाने से भाई को लंबी आयु और खुशहाली मिलती है। करम पर्व प्रकृति पूजा का प्रतीक है। यह त्योहार भाई-बहन के बीच के बंधन को और मजबूत करता है।
कर्मा और धर्मा की कहानी
यह माना जाता है कि दो भाई थे – कर्मा और धर्मा, जिनमें कर्मा लोगों को कर्म की महत्ता समझाते थे, जबकि धर्मा लोगों को शुद्ध व्यवहार और धार्मिक जीवन का मार्ग दिखाते थे। यह दोनों भाइयों के सिद्धांतों का प्रतीक है। जब यह पर्व आता है, तो लोग कर्म को देव स्वरूप मानते हैं और उसकी पूजना अर्चना करते हैं। इसके साथ हर साल लोग देवी कर्मसेनी के सामने लोक नृत्य करते हैं। इस पर्व के माध्यम से वे अपने कर्मों को सजीव बनाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति की शुभकामना करते हैं।
देवी कर्मसेनी की पूजा
जनजातीय समुदाय के बीच यह पर्व महत्वपूर्ण है। वह मानते हैं कि कर्मी वृक्ष पर कर्मसेनी देवी वास करती हैं। इसलिए, वे कर्मी वृक्ष की डाली घर में लगाकर देवी कर्मसेनी की पूजा करते हैं और रात भर नृत्य करते हैं, ताकि देवी को प्रसन्न कर सकें। अच्छे कर्मों की सफलता की कामना करें। यह पर्व सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग इसे बड़े आनंद से मनाते हैं। करम की पूर्व संध्या पर मिलन समारोह का भी आयोजन होता है।

