धर्म डेस्क: प्रभु यीशु के जन्मदिन पर मनाए जाने वाले क्रिसमस का त्योहार आते ही सबकी जुबान पर सांता क्लॉस का नाम आ जाता है। 25 दिसंबर क्रिसमस की रात सांता बच्चों को उपहार देते हैं। आइए जानते हैं कि क्रिसमस के त्यौहार पर सांता क्लॉस का जिक्र क्यों होता है और उनकी कहानी क्या है।
कौन थे सांता क्लॉस?
सांता का असली नाम सांता निकोलस बताया जाता है। उनका जन्म तुर्किस्तान के मायरा नाम के शहर में हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार प्रभु यीशु की मृत्यु के बाद उनका जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि वे पहाड़ों पर बर्फीली जगह में रहते थे। क्रिसमस के त्यौहार पर सांता बच्चों को उपहार देते थे। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, सांता और प्रभु यीशु के बीच मुख्य रूप से कोई संबंध नहीं है, लेकिन सांता का क्रिसमस पर मुख्य महत्व होता है।
एक कहानी के अनुसार एक गरीब व्यक्ति के घर पर सांता ने तीन बेटियों की जिंदगी खुशियों से भर दी थी। उस गरीब व्यक्ति की बेटियों ने घर के बाहर मोजे टांगे हुए थे, जिसमें उन्होंने सोने के सिक्के भर कर रख दिए थे। इसके बाद से ही लोग आज भी क्रिसमस पर अपने-अपने घरों के बाहर मोजे टांगते हैं।
छोटी उम्र में बन गए थे पादरी?
सांता क्लॉस अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद ही काफी छोटी उम्र में पादरी बन गए थे। ऐसा माना जाता है कि सेंट निकोलस स्वभाव से बहुत दयालु थे और बच्चे उन्हें बहुत पसंद करते थे। इसी वजह से वह बच्चों का बहुत सारे गिफ्ट देते थे। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के बाद भी वह क्रिसमस पर मध्य रात्रि में सबके सोने के बाद बच्चों को गिफ्ट देने जाते थे। वह रात के अंधेरे में बच्चों को गिफ्ट्स इसलिए देते थे ताकि उन्हें कोई पहचान ना पाए।
सांता क्लॉस का गांव
सांता का गांव बर्फ से ढके फिनलैंड में रोवानिएमी में स्थित है। यह गांव पूरे साल बर्फ से ही ढका रहता है। इस जगह पर सांता क्लॉज का ऑफिस भी है और यहां पर लोग आज भी अपनी-अपनी चिट्ठियां भेजते हैं। इन सभी चिट्ठियों को ऑफिस में टीम इकट्ठा करती है। इस ऑफिस के मुख्य कर्मचारी सफेद दाढ़ी और लाल पोशाक में (सांता क्लॉस की वेशभूषा) में इन चिट्ठियों का जवाब भी देते हैं। हालांकि, रोवानिएमी आने वाले पर्यटकों को यहां पर फोटो क्लिक करवाने की अनुमति नहीं होती है।
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