कानपुर : कानपुर का ऐतिहासिक गंगापुल, जो 150 साल से ज्यादा पुराना था, आज सुबह गिर गया। इस पुल का इतिहास केवल एक संरचना तक सीमित नहीं था, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का गवाह भी रहा है। इस पुल का एक हिस्सा, जो लगभग 80 फीट लंबा था, गिरकर गंगा के पानी में समा गया, जिससे यह पुल अब पूरी तरह से असुरक्षित हो गया है।
गंगापुल का ऐतिहासिक महत्व
गंगापुल का निर्माण 1875 में हुआ था, जब अंग्रेजों ने कानपुर को उन्नाव और लखनऊ से जोड़ने के लिए इसे बनाया था। ईस्ट इंडिया कंपनी के इंजीनियरों ने इस पुल का निर्माण कार्य शुरू किया था और इसे पूरा होने में लगभग सात साल का समय लगा। 1.38 किलोमीटर लंबा और 12 मीटर चौड़ा यह पुल उस समय कानपुर और लखनऊ के बीच प्रमुख संपर्क मार्ग था। इस पुल से रोजाना 1.25 लाख लोग यात्रा करते थे, जिसमें 22 हजार चारपहिया और दोपहिया वाहन शामिल होते थे।
पुल का निर्माण मुख्य रूप से यातायात के लिए किया गया था, ताकि कानपुर से लखनऊ जाने वालों को एक सुरक्षित रास्ता मिल सके। यही नहीं, 1910 में इसी पुल के पास एक रेलवे ब्रिज भी बनवाया गया था, ताकि ट्रेन सेवाएं भी शुरू हो सकें।
स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी यादें
यह पुल न केवल एक यातायात का साधन था, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भी अहम हिस्सा रहा है। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यह पुल उन घटनाओं का गवाह बना, जब अंग्रेजों ने पुल के ऊपर से भारतीय क्रांतिकारियों पर गोलियां चलाई थीं। यह पुल कानपुर के संघर्षों का एक महत्वपूर्ण स्थल था, जो अब इतिहास का हिस्सा बन चुका है।
पुल का क्षरण और बंदीकरण
हालांकि इस पुल का ऐतिहासिक महत्व बहुत अधिक था, लेकिन समय के साथ इसके पिलर्स में दरारें आ गईं और यह खतरनाक स्थिति में पहुंच गया। सुरक्षा कारणों से, चार साल पहले इस पुल को आम यातायात के लिए बंद कर दिया गया था। पीडब्लूडी ने इसकी चेकिंग की थी और पुल को जर्जर घोषित किया था। इसके बाद, शुक्लागंज और कानपुर दोनों किनारों पर दीवारें खड़ी कर दी गईं, जिससे लोगों का इस पुल से आना-जाना बंद हो गया।
हालांकि पुल के सौंदर्यीकरण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन मंगलवार को पुल का एक हिस्सा गिरने से इसकी जर्जर स्थिति की गंभीरता सामने आ गई। पुलिस ने बताया कि पुल में और भी दरारें हैं और इसे पूरी तरह से बंद कर दिया गया है।
संबंधित स्थानों पर प्रभाव
इस पुल का बंद होना शुक्लागंज और कानपुर के बीच यात्रा करने वाले लोगों के लिए एक बड़ी समस्या बन गई थी। खासकर उन्नाव के शुक्लागंज में रहने वाली 10 लाख की आबादी को इस पुल के बंद होने से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। इसके पुनर्निर्माण के लिए कई राजनीतिक हस्तियों ने प्रयास किए, लेकिन आईआईटी कानपुर द्वारा इसकी जाँच में यह साबित हो गया था कि पुल पूरी तरह से जर्जर हो चुका था और इसे फिर से खोलना असंभव था।
अब क्या होगा
अब, जब पुल का एक हिस्सा गिर चुका है, तो यह स्थिति और भी गंभीर हो गई है। प्रशासन ने इस क्षेत्र में आम जनता की सुरक्षा को देखते हुए पुल के आसपास के क्षेत्र को पूरी तरह से बंद कर दिया है। टहलने या घूमने आने वालों को भी पुल के पास जाने से रोक दिया गया है, ताकि कोई अप्रिय घटना न हो।
कानपुर का गंगापुल न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर था, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का भी गवाह रहा है। हालांकि अब यह पुल जर्जर हो चुका है और इसके गिरने के बाद यह ऐतिहासिक स्थल केवल यादों में ही समेटा जाएगा, लेकिन इसका महत्व हमेशा रहेगा। यह घटना एक बार फिर यह साबित करती है कि समय के साथ संरचनाओं का क्षरण होता है और हमें अपनी धरोहरों की रक्षा करने के लिए और भी ज्यादा जागरूक होना चाहिए।
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