स्पेशल डेस्क, जयपुर। विश्व प्रसिद्ध पुष्कर मेले की शुरुआत हो चुकी है। यह मेला हर साल राजस्थान के अजमेर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हिंदुओं के प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर में लगता है। पुष्कर ऊंट मेला राजस्थानी संस्कृति की समृद्ध छवि के जीवंत उत्सव के लिए मशहूर है। यहां का नजारा काफी मनमोहक होता है। क्योंकि, विभिन्न क्षेत्रों से व्यापारी और किसान मेले में हजारों ऊंटों और अन्य पशुओं का प्रदर्शन करने के लिए एकत्रित होते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से पवित्रता के प्रतीक पुष्करराज में लोग पवित्र स्नान करने व ब्रह्माजी, रंगनाथ जी तथा अन्य मन्दिरों के दर्शन भी करते हैं। राज्य सरकार भी पुष्कर मेले में विशेष व्यवस्था करती हैं। कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग यहां आने वाले पर्यटकों की सुरक्षा होटल आदि के प्रबंध की जिम्मेदारी लेता है। ऐसे में जानिए क्या है पुष्कर मेले की परंपरा व इतिहास।
हर साल कार्तिक में लगता है पुष्कर मेला
साल के कार्तिक महीने में लगने वाले अंतरराष्ट्रीय पुष्कर पशु मेले ने राजस्थान और तीर्थराज पुष्कर को दुनियां भर में अलग ही पहचान दी है। मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए पूरे विश्व से विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं और परिवार के साथ मेले में शामिल होने आते हैं। रेत के विशाल टीलों में, दूर-दूर तक रंग-बिरंगे तंबुओं का संसार अपने आप ही बस जाता है। यहां राजस्थानी लोक कला, शिल्प के चटख,शोख रंगों से सजीं ढेरों दुकानें, खाने-पीने के बेहद तीखें तो कहीं मीठें जायके, सर्कस, झूले, खेल-तमाशे और भी बहुत नजारा देखने को मिलता है।
100 साल पहले से ही मेले का हो रहा आयोजन
ऐसी मान्यता है कि सब तीर्थों की यात्रा का फल पुष्कर स्नान व दर्शन से मिल जाता है, इसलिए तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का राजा माना गया है। इसे धर्मशास्त्रों में पांच तीर्थों में सबसे पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। स्थानीय लोगों का दावा है कि इस मेले का आयोजन 100 साल से भी पहले से चला आ रहा है। हर साल की तरह इस बार भी आसपास के ग्रामीण धार्मिक अनुष्ठान, लोक संगीत और नृत्य करके यहां समृद्ध हिंदू संस्कृति का जश्न मनाएंगे। रेगिस्तान की वजह से पुष्कर मेले में ऊंट का भी महत्व बढ़ जाता है। पुष्कर झील अर्धचन्द्राकार आकृति में बनी हुई हैं और यह पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्माजी के हाथ से कमल का पुष्प गिरने से यहां जल निकल आया था, जिससे सरोवर का उद्भव हुआ। इस पुष्कर सरोवर में पूरे विश्व से स्नान करने के लिए अनेक लोग आते है। यहां पर 52 घाट और अनेक मंदिर बने हुए हैं। इन घाटों में गऊ घाट, वराह घाट, ब्रह्मा घाट और जयपुर घाट प्रमुख हैं।
सजे-धजे ऊंट होते हैं विशेष आकर्षण का केंद्र
राजस्थान के बेहद गौरवशाली इतिहास में ऊंट और रेगिस्तान एक-दूसरे के पूरक रहें है। इसलिए खूब सजे-धजे ऊंट और उनको खरीदने बेचने आए रौबीली पगड़ी वाले आदिवासी हर तरफ देखने को मिलते हैं। कालांतर में इसका स्वरूप विशाल पशु मेले का हो गया है। हर साल यहां अन्य पशुधन जैसे बैलों, घोड़ों, गायों और भैंसों के साथ 25,000 से अधिक ऊंटों का व्यापार होता है। इसलिए इसे दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट मेला कहा जाता है। इस ऊंट मेले में सांस्कृतिक शो और प्रदर्शनी का भी आयोजन होता है, ताकि इसे राजस्थान की जीवंतता और शौर्य से जोड़ा जा सके। इस वार्षिक ऊंट मेले के कुछ मुख्य आकर्षण मटकी फोड़, बड़ी और आकर्षक मूंछें और दुल्हन के लिए जैसी कई प्रतियोगिताएं विशेष हैं। इनके अलावा, इस मेले में ऊंट की सौंदर्य प्रतियोगिता, उनके नृत्य, परेड और रन जैसी अनेक प्रतियोगिताएं, हजारों देशी और विदेशी सैलानियों को अचरज से भर देती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, हर कोई भव्य ऊंट मेले को देखना और अपने कैमरे में कैद करना चाहता है।
शाम में सजती है लोक संगीत की महफिल
पुष्कर ऊंट मेले की शुरुआत आमतौर पर ज्वलंत लोक संगीत से भरी रातों से होती है। पुष्कर मेले के दौरान, आगंतुकों को इंधानी, लावारजी, जल्लो, हिचाकी, ओल्युन, सपनो, कुरजां और गोरबंड जैसे कुछ सबसे पुराने लोक गीत सुनने को मिल सकते हैं। सभी लोक गीतों में सर्वश्रेष्ठ गाथागीत परंपरा है। इसमें वादक गाते हैं और लोक नायकों की वीरतापूर्ण कहानियां सुनाते हैं। कुछ लोकप्रिय गाथाएं तेजाजी, गोगाजी और रामदेवजी हैं, जिनमें महान नायकों के रोमांस और त्रास्दियों को व्यक्त किया गया है। रेगिस्तान के पास शाम को बेहतरीन फ्यूजन बैंड्स की थीम का आनंद लेने से ज्यादा संतुष्टिदायक एहसास कुछ और नहीं हो सकता। इस पागलपन भरी घटना में अंतरराष्ट्रीय यात्री भी भाग लेते हैं।
400 साल में पहली बार पुष्कर मेले की तिथियों में हुआ बदलाव
प्रति वर्ष यहां कार्तिक माह के दौरान यह मेला लगता है। इस साल यह प्राचीन पशु मेला, 14 नवंबर से शुरू होकर 20 नवंबर, यानी की केवल एक सप्ताह में ही समाप्त हो जाएगा। हर साल पूरे 15 दिन तक लगने वाला ये ऐतिहासिक पशु मेला अपनी पूर्ववर्ती तारीखों के अनुसार 14 नवंबर से शुरू होकर 29 नवंबर तक आयोजित होना था। माना जा रहा है की 400 साल में पहली बार पुष्कर मेले की तिथियों में बदलाव किया गया है। ये निर्णय राजस्थान राज्य में होने वाले आगामी विधानसभा चुनावों की तारीखों को लेकर किया गया है। दरअसल, चुनाव आयोग ने राज्य की सभी 200 विधानसभा सीटों पर, एक ही चरण में, 25 नवंबर को मतदान कराने का निर्णय किया है।
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