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हर की दून: ईश्वर की घाटी का आलौकिक सौंदर्य

by Rakesh Pandey
Trekking
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स्पेशल डेस्क। दिल्ली , संजय शेफर्ड: दिल्ली से हम दोनों घूमने के लिए एक साथ निकले थे परन्तु मौरी से हम दोनों की राहें अलग हो जानी थी। मुझे पुरोला जाना था और रचिता को हर की दून जो कि घूमने फिरने के लिहाज से पूरी दुनिया में खास जगह मानी जाती है। वह तकरीबन दो साल पहले भी देहरादून से हर की दून तक नौ दिन का ट्रैक कर चुकी थी।

एक बार फिर से उन्हीं रास्तों पर दोबारा जाना चाहती थी लेकिन इस बार का ट्रैक छोटा और महज दो दिन का था, जो तालुका गांव से आरम्भ होकर गंगाद, ओसाला और सीमा से गुजरता है। दो हिस्सों में बंटे इस ट्रैक का पहला चरण तालुका से सीमा ओस्ला तक है, और दूसरा चरण सीमा ओस्ला से हर की दून तक है। वापसी मार्ग एक ही है।

Trekking के शौकीन लोगों के लिए यह जगह किसी जन्नत से कम नहीं है। उत्तरकाशी जिले में यमुना की सहायक रुपिन व सूपिन नदियों के आस-पास फतेह पर्वत की गोद में बसा यह खूबसूरत क्षेत्र हर की दून यानि की ईश्वर की घाटी का प्रवेश द्वार कहा जाता है। लेकिन उस घाटी का प्रवेश द्वार पुरोला ही है।

यमुनोत्री मार्ग पर नौगांव से बांए मुड़कर यात्री बस द्वारा पुरोला, मोरी होते हुए नेटवाड़ पहुंचकर आगे जीप आदि हल्के वाहनों से सांकरी ग्राम तक जा सकते हैं। इससे आगे का सारा मार्ग अत्यन्त मनोरम है, किन्तु उतना ही कठिन भी है और पैदल ही तय करना पड़ता है।

सूपिन नदी के किनारे-किनारे तालुका, गन्गाड़, ओस्ला आदि ग्रामीण बस्तियों तथा राजमा, आलू व चौलाई के खेतों के पास से निकलते हुए, कलकत्ती धार नामक थका देने वाली चढा़ई को पार करके अन्त मे हर की दून में पहुंचते हैं।

 

Trekking, संजय शेफर्ड

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हिमाचल के किन्नौर व तिब्बत से सटा हर की दून का इलाका अपने भीतर गोविन्द पशु विहार वन्य जीव अभयारण्य को समेटे है। यहां पर यात्री Trekking के लिये आते हैं। घाटी की पृष्ठभूमि में स्वर्गारोहिणी चोटी भी दिखाई देती है, जिसके बारे में मान्यता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर इसी शिखर से स्वर्ग को गये थे।इस जगह से बद्रीनाथ काफी पास पड़ता है।

लोग कहते हैं कि धरती पर अगर स्वर्ग की अनुभूति करनी है तो स्वर्गारोहिणी चले आइए। इस जगह की खूबसूरती बहुत ही मौलिक है। इस जगह पर आकर लगता है कि किसी और दुनिया में आ गए हैं और मौसम अच्छा हो तो यात्रियों का उत्साह और भी दोगुना हो जाता है।

यह रास्ता काफी कठिन और चुनौतीपूर्ण है बावजूद इसके खूबसूरती इतनी कि कदम आगे ही आगे बढ़ते चले जाएं।

देखा जाए तो पूरी देवभूमि देवताओं और उनकी मान्यताओं की भूमि है। इस जगह से जुड़ी सबसे बड़ी मान्यता यह है कि युधिष्ठिर ने स्वान के साथ स्वर्गारोहिणी से ही सशरीर बैकुंठ के लिए प्रस्थान किया था।

यह क्षेत्र वर्षभर बर्फ से ढका रहता है जिसकी वजह से इस जगह पर पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं होता। मार्ग दुरुस्त हो तब भी रास्तों की बर्फ की वजह से इस जगह पर पहुंचने में तीन दिन का समय तो लग ही जाता है।

इस Trekking के दौरान आपको कई झरने, दूर तक फैले बुग्याल मिलते हैं जो पूरी तरह से हमारे मन को मोह लेते हैं। दूर-दूर तक कोई आबादी नहीं दिखाई देती। आसपास की पहाड़ियां असीम शांति का अहसास कराती हैं। इस जगह पर फूल भी बहुतायत मात्रा में पाए जाते हैं। जिधर नजर दौड़ाओ सैकड़ों प्रजाति के रंग-बिरंगे फूल यात्रियों की अगवानी करते नजर आते हैं।

एक पौराणिक मान्यता है कि राजपाट छोड़ने के बाद पांचों भाई पांडव द्रोपदी सहित इसी रास्ते से स्वर्ग गए थे। भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव व द्रोपदी तो स्वर्गारोहिणी पहुंचने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। लेकिन, धर्मराज युधिष्ठिर ने एक स्वान के साथ पुष्पक विमान से सशरीर स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया।

इस मान्यता ने स्वर्गारोहिणी का महत्व काफी बढ़ा दिया है। हर की दून अथवा बदरीनाथ आने वाले यात्रियों की मंसा एक बार स्वर्गारोहिणी देखने की रहती ही रहती है। हर की दून के अलावा बदरीनाथ धाम से भी नारायण पर्वत पर 30 किमी का पैदल सफर तय कर स्वर्गारोहिणी पहुंचा जा सकता है।

भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद बड़ी संख्या में यात्री स्वर्गारोहिणी पहुंचते हैं।

यह पूरा क्षेत्र नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के अधीन आता है और स्वर्गारोहिणी जाने के लिए प्रशासन की अनुमति जरूरी है जो कि बहुत ही आसानी से मिल जाती।

स्वर्गारोहिणी में पहुंचकर किसी अलग ही दुनिया में होने का अहसास होता है और जैसे ही आगे बढ़ते हैं तीन किमी व्यास की एक विशाल झील दिखाई देती है। यह झील बहुत ही खूबसूरत है। यात्री स्वर्गारोहिणी पहुंचकर इस झील की परिक्रमा जरूर करते हैं। ऐसी मान्यता है कि झील की परिक्रमा करने से उन्हें पुण्य प्राप्त होता है।

स्वर्गारोहिणी की यात्रा बेहद विकट है। बदरीनाथ धाम से दस किमी की दूरी पर लक्ष्मी वन के भोजपत्र का विशाल जंगल को पार करना होता है, फिर दस किमी आगे चक्रतीर्थ और उसके बाद छह किमी आगे सतोपंथ पड़ता है। यहां से चार किमी खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद स्वर्गारोहिणी के दर्शन होते हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि प्राचीन काल में यात्री इन्हीं पड़ावों पर स्थित गुफाओं में रात्रि विश्राम करते थे। परंतु, अब यात्री साथ में टेंट ले जाते हैं।

स्वर्गारोहण के दौरान पांडवों ने इसी सतोपंथ झील में स्नान किया था। इसलिए हिंदू धर्मावलंबियों के लिए इस झील का विशेष महत्व है। एक पौराणिक मान्यता है कि एकादशी पर स्वयं ब्रह्मा, विष्णु व महेश यहां स्नान करने आते हैं।

खैर, हम हर की दून में ही थे इसलिए सोचा कि आगे कि यात्रा बद्रीनाथ पहुँचने पर करेंगे और हर की दून की ख़ूबसूरती में रम गए। झुकाव के आकार की यह घाटी हिमाच्छादित चोटियों और अल्पाइन वनस्पतियों से घिरी हुई है। यह बोसासू दर्रे द्वारा बसपा घाटी से जुड़ा हुआ है। यह घाटी काफी ऊंचाई पर है और अक्टूबर से मार्च तक बर्फ से ढंकी रहती है।

तालुका से लगभग 25 किमी दूर स्थित इस घाटी का सौंदर्य अलौकिक है। यहां से लगभग दस किमी आगे स्वर्गारोहिणी पर्वत के चरणों में स्थित जौन्धार ग्लेशियर ही सूपिन नदी का उद्गम है।

इस पूरे पैदल यात्रा मार्ग में गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा उचित मूल्य पर पर्यटकों के लिए रहने-खाने की पर्याप्त व्यवस्था है।

भले पौराणिक मान्यता हो कि स्वर्गारोहिणी पर्वत से होकर ही युधिष्ठिर स्वर्ग को गये थे परन्तु मेरा और रचिता का साथ यहीं तक था। एक-दूसरे को अलविदा कह हम अपने अपने मार्ग पर निकल गए और उम्मीद जताई की संभव हो सका तो उत्तरकाशी में मिलेंगे।

वह मुस्कराई और आगे बढ़ गई।

 

 

 

 

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