पहाड़ एक दूसरे के पास होकर भी कितने दूर हैं और दूर होकर भी कितने पास। दुर्गमता एक दूसरे को दूर करती है तो चुनौतियां एक दूसरे को लाकर पास खड़ी कर देती हैं। यह मैं पौड़ी पहुँचकर ही जान पाया। मुझे पौड़ी हर मायने में काफी अच्छा और समृद्ध लगा और हमने इस जिले में काफी अच्छा वक़्त भी बिताया। इसकी सीमाएं और भगौलिक स्थिति की जानकारी इस जगह पर आने से पहले मुझे नहीं थी। जिस तरह से एक जगह दूसरी जगह से मिल रही थी मुझे पहले तो आश्चर्य हुआ फिर मन रोमांच से भर गया।
नीलकंठ महादेव भी इसी जिले में आता है। यह वैसे तो हर बार मुझे ऋषिकेश का हिस्सा लगता रहा था पर यहां आकर पता चला कि यह पौड़ी से भी नजदीक है। यह मंदिर जिले से दूर होने के बावजूद भी यहां की विशिष्ट जगहों में से एक है। यह जगह धार्मिक उत्साह, पौराणिक महत्व और खूबसूरत परिवेश का मिला जुला संगम है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस जगह का नाम भगवान शिव से लिया गया है। यह माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने विष का सेवन किया था, जो ‘समुद्र मंथन’ के दौरान उत्पन्न हुआ था। इस वजह से भगवान शिव का गला रंग में नीला हो गया था, इसलिए भगवान शिव को नीलकंठ नाम दिया गया था।
सदियों पुराने मंदिर अपनी आकाशीय आभा और पौराणिक महत्व को संजोए रखे हैं। नीलकंठ महादेव ऋषिकेश होकर जाना काफी सुविधाजनक रहता है और ज्यादातर लोग जो ऋषिकेश घूमने आते हैं इस जगह पर पहुंचते हैं। स्वर्ग आश्रम से यह बाइस किमी दूर है। मंदिर तक सड़क जाती है लेकिन एक अन्य रूट से इस जगह पर ट्रेक करके भी जाया जा सकता है। यह ट्रेक पूरी तरह से हरे भरे और घने जंगलों से होकर गुज़रता है।
इन सब जगहों से मेरा परिचय बहुत पुराना था कई जगहों पर तो पहले जा भी चुका था। एक बार इन सब जगहों की स्मृतियों को अपने मन में ही दोहराया और फिर आगे बढ़ गया। एक सज्जन ने आगे का रास्ता बताया और बोला कि कई और महत्वपूर्ण जगहें हैं यहां पर घूमने टहलने की। आपको कुछ दिन और रुकना चाहिए। मैं उनकी बात सुनकर हंसना चाहता था बावजूद इसके रुका और सुना। हमें उन्होंने कई अन्य जगहों की जानकारी दिया।
मैंने पहले से बिनसर महादेव मंदिर के बारे में सुन रखा था उस सज्जन ने मेरी जानकारी में और भी ज्यादा इजाफा किया। उन्होंने बताया कि बिनसर महादेव का मंदिर जोकि थलीसैंण में स्थित है पौड़ी गढ़वाल का प्रसिद्ध मंदिर है, देव भूमि उत्तराखंड की अलौकिक धरती पर यह मंदिर स्वर्ग से कम नहीं है। यह मंदिर भगवान हर गौरी, गणेश और महिषासुर मंदिनी के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर यह माना जाता है कि यह मंदिर महाराजा पृथ्वी ने अपने पिता बिंदु की याद में बनवाया था। इस मंदिर को बिंदेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इस जिले में रहते हुए मां ज्वाल्पा देवी मंदिर के दर्शन के लिए भी जा सकते हैं। देवी दुर्गा को समर्पित इस क्षेत्र का प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां ज्वाल्पा देवी का मंदिर पौड़ी से लगभग 33 किमी दूरी पर स्थित है। लोग दूर-दूर से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस जगह पर आते हैं। मंदिर नायर नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है तथा पास का स्टेशन सतपुली लगभग 17 किमी है। इस जिले में स्थित नागदेव मंदिर पौड़ी-बुवाखाल रोड पाइन और रोडोडेंड्रन के घने जंगल के बीच में स्थित है। मंदिर के रास्ते में एक वेधशाला स्थापित की गयी है जहां से चौखंबा, गंगोत्री समूह, बन्दर पूँछ, केदरडोम, केदारनाथ आदि जैसे शानदार हिमालय पर्वतमाला के विशाल और रोमांचकारी दृश्य देखे जा सकते हैं। आपको ट्रेकिंग करना पसंद हो और पहाड़ की खूबसूरती भाती हो, तो यह जगह भी आपके लिए काफी उपयुक्त है।
दरअसल, यह जगह धर्म की पुनरुत्थान के लिए भी जानी जाती है। जिसका श्रेय क्यूंकालेश्वर मंदिर को दिया जा सकता है। आठवीं शताब्दी में इस शिव मंदिर की स्थापना शंकराचार्य द्वारा पौड़ी की यात्रा के दौरान हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के रूप में की गयी थी। यह मंदिर पौड़ी और आसपास के इलाकों में बहुत प्रसिद्ध है, लोगों का मंदिर के मुख्य देवताओं- भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय में बहुत अधिक आस्था और विश्वास है। मुख्य मंदिर के एकदम पीछे अन्य देवताओं भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता के मंदिर हैं। इस जगह पर आकर हिमालय की खूबसूरती को बखूबी निहारा जा सकता है। यहां से हिमालय पर्वत माला के साथ-साथ अलकनंदा घाटी और पौड़ी शहर का मंत्रमुग्ध कर देने वाला दृश्य दिखता है।
मैंने रांशी गांव के बारे में पहले से सुन रखा था उन सज्जन ने बताया तो मुझे और भी अच्छा लगा। इस जगह को इसकी प्राकृतिक छटा की वजह से जाना जाता है। कुल मिलाकर कहा जाए तो पौड़ी धार्मिक पर्यटन के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। यहां पर आकर कई प्राचीन और नवीन मंदिरों के दर्शन का योग बन जाता है। लेकिन मेरे साथ कुछ अलग तरह की चुनौतियां थी। मैं जानना और समझना तो हर जगह को चाहता था लेकिन जाता वहीं था जो हमारे रुट पर आती थी।
लंढोर तो काफी अच्छी जगह है। उससे लगी मसूरी, लंढोर, धनौल्टी, लैंड्सडाउन और चकराता भी। लेकिन यह पौड़ी जिले की सीमा से लगते हुए भी जिले की हिस्सा नहीं हैं। यह सब जगहें मुझे काफी पसंद रही हैं। ऐसा नहीं कि इन जगहों का मैंने भ्रमण नहीं किया। कई बार किया था लेकिन इस बार कि यात्रा काफी रोमांचक थी। तक़रीबन तीन घंटे के बाद नीलकंठ महादेव पहुंचा। भगवान शिव का दर्शन किया और शाम होने के साथ ही वापस पौड़ी लौट आया। इस तरह मैंने एक और प्राकृतिक सौंदर्य से भरे हुए और आध्यात्मिक शक्ति से सराबोर उस दुनिया से खुद को जोड़ आया।
संजय शेफर्ड
READ ALSO : दिल तो बच्चा है जी..