Home » यहां रहता है राक्षस महिषासुर का परिवार, नवरात्र में पूजा नहीं बल्कि शोक में डूबा रहता है कस्बा..जानें कहां है ये अनोखा गांव…

यहां रहता है राक्षस महिषासुर का परिवार, नवरात्र में पूजा नहीं बल्कि शोक में डूबा रहता है कस्बा..जानें कहां है ये अनोखा गांव…

ये झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के रहने वाले हैं। इन इलाकों में महिषासुर को बड़े ही श्रद्धा से पूजा जाता है, और इन समुदायों में इसे शहादत दिवस के रूप में मनाने की परंपरा है।

by Rakesh Pandey
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नई दिल्ली : देशभर में कल से नवरात्र का उत्सव मनाया जा रहा है। लोग विभिन्न पंडालों का भ्रमण करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। षष्ठी से चारों तरफ चहल-पहल देखने को मिलेगी।

लोग खुशियां मनाते नजर आएंगे, लेकिन कुछ इलाकों में इन 9 दिनों तक शोक मनाया जाता है। इसका कारण यह है कि जिस महिषासुर का मां दुर्गा ने वध किया था, उसको कुछ अदिवासी समुदाय के लोग अपना पूर्वज और वीर योद्धा का दर्जा देते हैं।
ये झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के रहने वाले हैं। इन इलाकों में महिषासुर को बड़े ही श्रद्धा से पूजा जाता है, और इन समुदायों में इसे शहादत दिवस के रूप में मनाने की परंपरा है।

क्या हैं आदिवासी समुदाय की धारणा

झारखंड के गुमला जिले में असुर जनजाति महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हैं। उनका दावा है कि देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच का युद्ध दरअसल आर्यों और अनार्यों के बीच की लड़ाई थी। इस संघर्ष में महिषासुर की हार को वे असुरों का विनाश मानते हैं। यही नहीं कई स्थानों पर महिषासुर को राजा का भी दर्जा दिया जाता है। इस दौरान इन इलाकों में न तो कोई उत्सव की धूम रहती है, ना ही नवरात्र के रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है।

इसके साथ ही कुछ आदिवासियों का मानना है कि महिषासुर का असली नाम हुडुर दुर्गा था और वह एक महान योद्धा थे। वे महिलाओं का काफी सम्मान करते थे। उन पर हमला नहीं करते थे। मां दुर्गा ने उनका वध छल से किया था। ऐसा माना जाता है कि आज भी इस समुदाय के लोग महिषासुर की कहानियों को अपनी अगली पीढ़ी को सुनाते हैं, जिससे उनकी पहचान को संजोकर रखा जाता है।

विवाद और पहचान

महिषासुर का शहादत दिवस मनाने के विषय में कई बार विवाद भी उठ चुके हैं। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी इस दिवस का आयोजन होता रहा है, जिसमें दलित-आदिवासी और ओबीसी छात्रों का समर्थन मिलता है।

ये छात्र महिषासुर को एक ऐतिहासिक पात्र मानते हैं और अपनी अस्मिता को इससे जोड़कर देखते हैं।

मैसूर का नाम और महिषासुर की कथा

कर्नाटक के मैसूर शहर का नाम भी महिषासुर से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि इस क्षेत्र का नाम महिषासुर की धरती ‘मैसूरू’ से आया, जिसे बाद में ‘मैसूर’ में परिवर्तित कर दिया गया।

स्थानीय किवदंतियों के अनुसार, चामुंडेश्वरी देवी ने महिषासुर का वध किया था, और इस क्षेत्र की पहाड़ी पर महिषासुर की मूर्ति स्थापित की गई है।

पश्चिम बंगाल के एक इलाके में भी नवरात्र के दौरान शोक मनाया जाता है। जलपाईगुड़ी जिले के अलीपुरदुआर के पास एक चाय बगान है। वहां कुछ जनजाति महिषासुर को अपना पूर्वज मानते हुए नवरात्र के दौरान शोक मनाते हैं, जबकि पूरे पश्चिम बंगाल में नवरात्र बहुत ही बड़े पैमाने पर धूमधाम से मनाया जाता है।

असुर जनजाति के इन लोगों के बीच भी यही कहानी प्रचलित है कि महिषासुर उनके पूर्वज थे, जिसे मां दुर्गा ने छल से मारा। इस जनजाति के बच्चे मिट्टी के बने शेर के खिलौने से खेलते हैं और वो शेर की गर्दन मरोड़ देते हैं। वो ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि देवी दुर्गा की सवारी शेर है। असुर जनजाति के लोग शेरों से नफरत करते हैं।

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