दिल्लीः जब भी बाबा साहेब आंबेडकर या दलित समाज के आंदोलन की बात आती है, तो नीला रंग उसका पर्याय बन जाता है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नीला रंग देश में दलित आंदोलन का पर्याय इसलिए बन गया, क्योंकि संविधान निर्माता बी आर अंबेडकर हमेशा नीला कोट पहनते थे और वहीं से दलितों के लिए यह रंग सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया।
नीला रंग दलितों के लिए सशक्तिकरण
नीला रंग एक बार फिर चर्चा में आया, जब गुरूवार को विपक्ष के नेता समेत राहुल गांधी भी प्रोटेस्ट के दौरान नीले रंग की टी-शर्ट में और प्रियंका गांधी नीले रंग की साड़ी में दिखी। आखिर नीला रंग कैसे बन गया दलितों के विरोध का रंग। नीले रंग को शांति का रंग माना जाता है, लेकिन देश में चल रहे वर्तमान परिदृश्य में, यह रंग बदले का प्रतीक बन कर रह गया है। यह रंग दलितों के सशक्तिकरण और उनकी आक्रामकता का पर्याय है और देश की लगभग हर राजनीतिक पार्टी स्पष्ट रूप से दलित गेम खेल रही है।
बाबा साहेब आंबेडकर से जुड़ा है नीला रंग
एस आर दारापुरी, सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी और वर्तमान में एक दलित कार्यकर्ता के अनुसार, नीला आकाश और समुद्र का रंग है और उन्हीं की तरह असीमता को दर्शाता है। डॉ. भीमराव आंबेडकर को इस रंग से बहुत लगाव था। जब उन्होंने 1942 में अनुसूचित जाति महासंघ की स्थापना की, तो उन्होंने एक नीला झंडा चुना।
फिर 1956 में उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया की स्थापना की और उसे भी नीला झंडा दिया। डॉ. अम्बेडकर हमेशा नीले रंग का कोट पहनते थे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने रंगों के चुनाव के लिए जाने जाते थे। दलितों के लिए यह रंग सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया और यह आज भी जारी है क्योंकि प्रमुख दलित संगठन इस रंग के माध्यम से खुद का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का झंडा नीले रंग का
2017 में अर्थ-जर्नल ऑफ सोशल साइंसेज में प्रकाशित एक पेपर, फैब्रिक-रेंडर्ड आइडेंटिटी: ए स्टडी ऑफ दलित रिप्रेजेंटेशन में भी कहा गया कि “अंबेडकर को नीले महार के झंडे को अपनी पार्टी की पहचान के रूप में पेश करने के लिए जाना जाता है। इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी का झंडा नीले रंग का था। यह दलित चेतना के साथ पहचान का प्रतिनिधि है जो भेदभाव रहित है। ब्लू-कॉलर कार्यकर्ताओं की तरह यह भी जनता को आकर्षित करता है।