सेंट्रल डेस्क : इस्कॉन के पूर्व सदस्य और बांग्लादेश सम्मिलित सनातन जागरण जोटे के प्रवक्ता और हिंदू मॉन्क चिन्मय कृष्ण दास के मामले में आज सुनवाई होनी है। उन पर राजद्रोह का आरोप है। चिन्मय प्रभु को जमानत की सुनवाई के लिए गुरुवार को चटगांव की एक अदालत में पेश होना हैं। उनकी गिरफ्तारी ने हिंदू समूहों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी पैदा कर दी थी। इनका आरोप था कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों को उजागर करने के उनके प्रयासों के लिए उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।
चिन्मय प्रभु का प्रतिनिधित्व करने के लिए 11 वकील
इस्कॉन के पूर्व पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की जमानत पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के 11 वकील उनकी ओर से भाग लेंगे। वकील अपूर्बा कुमार भट्टाचार्जी के नेतृत्व में कानून विशेषज्ञों की टीम बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज के अपमान के आरोपों के परिणामस्वरूप राजद्रोह के मामले में चिन्मय का बचाव करेगी।
मीडिया से बात करते हुए, अपूर्बा कुमार भट्टाचार्जी ने कहा, ‘हम आइंजीबी ओइक्या परिषद के बैनर तले चट्टोग्राम आए हैं और हम चिन्मय प्रभु को जमानत के लिए अदालत ले जाएंगे। चिन्मय से वकालतनामा मुझे पहले ही मिल चुका है। मैं सुप्रीम कोर्ट और चट्टग्राम बार एसोसिएशन दोनों का सदस्य हूं, इसलिए मुझे मामले को स्थानांतरित करने के लिए किसी स्थानीय वकील से अनुमति की आवश्यकता नहीं है।
कैसे हुई थी चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी
चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर को ढाका के हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था। तब से, वह हिरासत में हैं। तब से ही उनके समर्थक उनकी रिहाई की मांग कर रहे हैं। समर्थकों का दावा है कि उन्हें एक मनगढ़ंत राजद्रोह के मामले में झूठा फंसाया जा रहा है, जिसका एकमात्र उद्देश्य हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ उनकी आवाज को चुप कराना है।
ढाका और चटगांव के 20 वकीलों की एक टीम ने याचिका दायर की है। दास के प्राथमिक अधिवक्ता रवींद्र घोष को पहले अग्रिम जमानत याचिका दायर करने से रोक दिया गया था, जिससे मामला और जटिल हो गया था।
चिन्मय दास की तबीयत बिगड़ी
दास का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं का तर्क है कि उनकी हिरासत के कारण उनका स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। 63 वर्षीय भिक्षु कथित तौर पर डायबिटीज और सांस की समस्याओं से पीड़ित हैं, उनका दावा है कि जेल में उनकी स्थिति बिगड़ रही है। इस खबर ने उनके अनुयायियों और मानवाधिकार संगठनों के बीच चिंता पैदा कर दी है।
कानूनी कार्यवाही में भी कई अड़चनों का सामना करना पड़ा है। बांग्लादेश की एक अदालत ने किन्हीं कारणों से 11 दिसंबर को दास की प्रारंभिक जमानत याचिका खारिज कर दी थी। वैध पावर ऑफ अटॉर्नी और वकील की अनुपस्थिति को इसका कारण बताया गया था। उनके वकीलों में से एक, शुभाशीष शर्मा ने सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए 3 दिसंबर की सुनवाई को छोड़ दिया था।
इस्कॉन का समर्थन और भारत का रुख
इस्कॉन कोलकाता, चिन्मय कृष्ण दास के मजबूत समर्थन में सामने आया है। इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास ने निष्पक्ष और न्यायपूर्ण परिणाम की उम्मीद जताई है। उन्होंने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए इस्कॉन की प्रतिबद्धता को भी दोहराया। भारत और विदेशों में प्रार्थना और सभाएं आयोजित की गई हैं, अधिकारियों से न्याय देने का आग्रह किया गया है।
भारत सरकार ने भी इसमें हस्तक्षेप किया है और पारदर्शी सुनवाई की मांग की है। याचिका में बांग्लादेश प्रशासन से कानूनी अधिकारों का सम्मान करने और यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि मामले में उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए।