सेंट्रल डेस्क। दुनियाभर का सबसे बड़ा समागम भारत के उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ के रूप में सज गया है। दुनियाभर के लोग प्रयागराज पहुंच रहे है और त्रिवेणी की पवित्र डुबकी लगा रहे है। इस महाकुंभ का पहला अमृत स्नान 14 जनवरी, 2025 को हुआ था। ऐसा माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान विशिष्ट शुभ तिथियों पर गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के पवित्र संगम में स्नान करने से आध्यात्मिक शुद्धि, पापों का प्रायश्चित, पुण्य का संचय और अंततः मोक्ष होता है। यही कारण है कि महाकुंभ के दौरान इन पवित्र स्नानों को अमृत स्नान कहा जाता है।
इन सबके बीच एक शब्द है, जो साधु-संत से लेकर आम जन तक सबके मुंह से सुनाई दे रहा है और वो है- मोक्ष, क्या होता है मोक्ष औऱ क्या केवल हिंदू धर्म में ही मोक्ष का गूढ़ महत्व है या अन्य धर्म भी रखते है मोक्ष की इच्छा।
किसे कहा जाता है मोक्ष
मोक्ष जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति है। जहां आत्मा, ब्रह्मा या सर्वोच्च आत्मा के साथ विलीन हो जाती है। हिंदू धर्म में इसे मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य माना जाता है। मोक्ष शब्द संस्कृत मूल ‘मुक’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘मुक्त होना’। इसे निर्वाण के रूप में भी जाना जाता है। मोक्ष हिंदू धर्म और भारतीय दर्शन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो आत्म-ज्ञान, मुक्ति और शाश्वत आनंद का प्रतीक है।
ऐसी प्रथाएं न केवल हिंदू धर्म में बल्कि अन्य धर्मों में भी मानी जाती है, जबकि मोक्ष मुख्य रूप से हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है, इसी तरह की अवधारणाएं अन्य धर्मों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है।
बौद्ध धर्म: बौद्ध धर्म में मुक्ति को निर्वाण कहा जाता है, जो दुख से मुक्ति और कर्म के साथ बंधन को दर्शाता है।
जैन धर्म: जैन धर्म में मुक्ति को मोक्ष या कैवल्य कहा जाता है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति की स्थिति को कहा जाता है।
सिख धर्म: सिख समुदाय में मुक्ति को ईश्वर के साथ मिलन या एकता के रूप में समझा जाता है।
ईसाई धर्म: क्रिश्चयिनिटी में स्वर्ग को मुक्ति के रूप में देखा जाता है, जहां आत्मा ईश्वर के साथ शाश्वत मिलन की प्राप्त करता है।
इस्लाम: इस्लाम में स्वर्ग को मुक्ति के बराबर माना जाता है, जो उस पर दृढ़ विशावस रखने वाले को ईश्वर के साथ अनंत सुख प्रदान करता है।
विभिन्न धर्मों में मुक्ति का मार्ग
मोक्ष, धर्म और संस्कृति में एक सार्वभौमिक अवधारणा है, जो परम स्वतंत्रता का भान कराता है। हालांकि, इसे प्राप्त करने के मार्ग सभी के लिए भिन्न-भिन्न हैं-
ज्ञान: आत्मा की प्रकृति और परमात्मा के साथ उसके संबंध को समझना।
भक्ति: भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति पैदा करना।
कर्म: धार्मिक कर्म करना और पाप से बचकर रहना।
योग (अनुशासन): शरीर और मन को नियंत्रित करके सेल्फ अवेयरनेस प्राप्त करना।
ध्यान (मेडिटेशन): ध्यान के माध्यम से मन को शांत करके आंतरिक शांति की प्राप्त करना।
महाकुंभ में अमृत स्नान का महत्त्व
अमृत स्नान महाकुंभ का सबसे महत्वपूर्ण आयोजन है, जहां विभिन्न अखाड़ों के संत और ऋषि पवित्र संगम नदी में स्नान करते हैं। दूसरा अमृत स्नान 29 जनवरी को मौनी अमावस्या के लिए निर्धारित है, उसके बाद तीसरा वसंत पंचमी 3 फरवरी को होगा। अंतिम अमृत स्नान 26 फरवरी को महाशिवरात्रि पर आयोजित किया जाएगा, जो महाकुंभ के समापन का प्रतीक है। भक्त और आध्यात्मिक साधक उत्सुकता से इन पवित्र स्नानों में भाग लेते हैं और दिव्य आशीर्वाद और आध्यात्मिक कल्याण में रम जाते है।