नई दिल्ली : बीते कई माह से भारत-बांग्लादेश के रिश्तों में आई तल्खियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर मुख्य सलाहकार मुहम्मद युनुस को एक पत्र के माध्यम से अपनी शुभकामनाएं दीं। अपने पत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने 1971 के मुक्ति संग्राम के ऐतिहासिक महत्व को रेखांकित करते हुए इसे भारत और बांग्लादेश के बीच मजबूत और स्थायी संबंधों की नींव बताया।
इसके अतिरिक्त, प्रधानमंत्री ने युनुस से कहा कि भारत बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के प्रति ‘प्रतिबद्ध’ है, लेकिन साथ ही यह भी जोर दिया कि यह संबंध ‘एक-दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति आपसी संवेदनशीलता पर आधारित होना चाहिए’।
‘मैं बांग्लादेश के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर आपको और बांग्लादेश के लोगों को अपनी शुभकामनाएं भेजता हूं। यह दिन हमारे साझा इतिहास और बलिदानों का प्रतीक है, जिन्होंने हमारे द्विपक्षीय साझेदारी की नींव रखी। बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की भावना हमारे संबंधों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश बनी हुई है, जो कई क्षेत्रों में फल-फूल रही है और हमारे लोगों के लिए ठोस लाभ प्रदान कर रही है’, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा।
आगे पीएम मोदी ने कहा कि हम इस साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जो शांति, स्थिरता और समृद्धि की हमारी समान आकांक्षाओं से प्रेरित है और जो एक-दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति आपसी संवेदनशीलता पर आधारित है।
क्या है 1971 का मुक्ति संग्राम
वर्ष 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता ने न केवल बांग्लादेश को पूर्वी पाकिस्तान के दमनकारी शासन से आज़ादी दिलाई, बल्कि दक्षिण एशिया के इतिहास और भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया।
तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) पर सैन्य कार्रवाई से बड़े पैमाने पर शरणार्थी संकट उत्पन्न हुआ। दस मिलियन शरणार्थियों की दुर्दशा का बांग्लादेश के पड़ोसी देश भारत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसने भारत को पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई शुरू करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि भारत का हस्तक्षेप प्रकृति में केवल परोपकारी न होकर व्यावहारिक राजनीति पर आधारित था।