सेंट्रल डेस्क : 1980 के दशक में जब दूरदर्शन ने बीआर चोपड़ा से धार्मिक धारावाहिक बनाने का आग्रह किया, तब उनके सामने रामायण और महाभारत में से किसी एक को चुनने का विकल्प था। बीआर चोपड़ा, जो नया दौर, वक्त जैसी फिल्मों के लिए प्रसिद्ध थे, ने महाभारत को चुना क्योंकि वे इसे एक बड़ी चुनौती मानते थे और मानते थे कि इसकी गहराई को केवल टेलीविजन जैसे विस्तृत माध्यम में ही दिखाया जा सकता है।
बीआर चोपड़ा ने कहा था, ‘रामायण सिखाती है कि क्या करना चाहिए, जबकि महाभारत बताती है कि क्या नहीं करना चाहिए’। उनका मानना था कि महाभारत एक जटिल कथा है, जिसमें पात्र केवल अच्छे या बुरे नहीं हैं, बल्कि उनके निर्णय और भावनाएं मानवीय हैं।
महाभारत की पटकथा के लिए राही मासूम रज़ा का चयन और विवाद
बीआर चोपड़ा जानते थे कि इस तरह की कथा को प्रभावशाली बनाने के लिए लेखन सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। इसी कारण उन्होंने राही मासूम रज़ा को पटकथा लिखने की ज़िम्मेदारी सौंपी। हालांकि, उनके इस निर्णय से कुछ लोगों ने नाराज़गी जताई क्योंकि रज़ा मुस्लिम थे।
डीडी (दूरदर्शन) के अधिकारियों ने जब बीआर फिल्म्स की योजना देखी, तो वे उत्साहित तो हुए, लेकिन यह प्रश्न उठाया कि एक मुस्लिम लेखक हिंदू महाकाव्य कैसे लिख सकता है। बीआर चोपड़ा की बहू रेनू चोपड़ा ने कपिल शर्मा शो में इस प्रसंग को साझा करते हुए कहा कि बीआर चोपड़ा ने स्पष्ट शब्दों में जवाब दिया – ‘महाभारत न तो हिंदू है न मुस्लिम, यह हर परिवार की कहानी है। हर घर में महाभारत होना चाहिए, ताकि लोग जान सकें कि उन्हें क्या नहीं करना चाहिए। अगर राही साहब को निकाला गया, तो मैं भी शो छोड़ दूंगा’।
‘मैं समय हूं’ – जब रज़ा ने दी महाभारत को एक नई पहचान
बीआर चोपड़ा ने The Making of Mahabharat में बताया कि कथा को दर्शकों के लिए सहज और स्पष्ट बनाना जरूरी था। पात्रों की संख्या और घटनाओं की जटिलता को समझाने के लिए एक सूत्रधार की आवश्यकता थी। कई चर्चाओं के बाद रज़ा ने प्रस्ताव रखा कि समय को सूत्रधार बनाया जाए – यहीं से जन्म हुआ प्रसिद्ध पंक्ति ‘मैं समय हूं’ की।
बीआर चोपड़ा इस विचार से तुरंत सहमत हो गए और बोले, ‘राही साहब ने जिस तरह से लिखा, उसमें यह सवाल ही खत्म हो गया कि एक मुस्लिम कैसे लिख सकता है। हमने उन्हें तुरंत साइन किया’।
राही मासूम रज़ा पर विरोध और धमकियों की प्रतिक्रिया
1990 में दिए एक इंटरव्यू में रज़ा ने कहा, ‘मैं आहत हूं कि एक भारतीय होने के बावजूद, एक मुस्लिम लेखक को हिंदू कथा लिखने पर विवाद खड़ा किया गया। क्या मैं भारतीय नहीं हूं’। उन्होंने बताया कि विश्व हिंदू परिषद ने उन्हें पत्र लिखा था, जिसका उन्होंने उत्तर दिया और बाद में परिषद ने माफी मांगी।
रज़ा ने आगे कहा, ‘धमकियों से मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैंने वह लिखा जो मुझे सही लगा और जो महाभारत को लोगों तक सही तरीके से पहुंचा सके’।
बीआर चोपड़ा और राही मासूम रज़ा का यह ऐतिहासिक सहयोग यह साबित करता है कि भारतीय संस्कृति और साहित्य की सीमाएं किसी धर्म से नहीं बंधी होतीं। महाभारत केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक सामाजिक और मानवीय दर्पण है, जिसे सही रूप में प्रस्तुत करने के लिए सही दृष्टिकोण और गहन समझ की आवश्यकता होती है – और बीआर चोपड़ा ने राही मासूम रज़ा में वही दृष्टि देखी थी।