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Hazaribagh News: भारत की पहली महिला भूमिगत माइनिंग इंजीनियर, अखिल भारतीय इतिहास रचने वाली झारखंड की आकांक्षा कुमारी की कहानी

Hazaribagh News: अपने सपने को साकार करने के लिए उन्होंने बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, धनबाद में माइनिंग इंजीनियरिंग में दाखिला लिया।

by Reeta Rai Sagar
Akanksha Kumari, India’s first female underground mining engineer in CCL.
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हजारीबाग : 25 वर्षीय आकांक्षा कुमारी आज उन नामों में शुमार हो चुकी हैं, जो कभी इतिहास के पन्नों में दर्ज होंगे। झारखंड के हजारीबाग जिले के बड़कागांव में जन्मी और पली-बढ़ीं आकांक्षा बचपन से ही खदान और कोयले से जुड़े रहस्यों से प्रभावित रहीं। जब परिवार में रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कोयला एक हिस्सा हुआ करता था, तब उन्होंने सपने देखे थे कि एक दिन वे स्वयं उन गहराइयों में उतरेंगी, जिनके सहारे देश चलता है।

नवोदय विद्यालय से बिरसा इंस्टीट्यूट तक का सफर

आकांक्षा की पढ़ाई नवोदय विद्यालय में पूरी हुई, जहां उन्हें क्षेत्र की समृद्ध खदान विरासत के बारे में जानने का मौका मिला। वहीं से उनका रुझान खदानों और माइनिंग इंजीनियरिंग की ओर बढ़ने लगा। अपने सपने को साकार करने के लिए उन्होंने बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, धनबाद में माइनिंग इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। यह निर्णय उनके जीवन में एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ।

पहला जॉब और सीसीएल में इतिहास रचने का सफर

माइनिंग इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद अकांक्षा कुमारी ने अपना पहला जॉब हिंदुस्तान जिंक की बलारिया माइन्स में किया। इसके बाद वे सीसीएल यानी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड में भर्ती होकर इतिहास रचने में कामयाब रहीं। चूरी अंडरग्राउंड माइन्स, नॉर्थ कर्णपुरा में ज्वाइन करने वाली आकांक्षा भारतीय इतिहास में पहली महिला बनीं, जो भूमिगत कोयला खदान में माइनिंग इंजीनियर के तौर पर कार्यरत है।

भारत में साल 2019 तक महिलाओं को भूमिगत खदानों में काम करने का अधिकार नहीं था। सीसीएल में महिलाएं पहले डॉक्टर, ऑफिसर, सिक्योरिटी गार्ड या भारी मशीन ऑपरेटर के तौर पर तो काम करती थीं, मगर कभी मूल माइनिंग कार्य में नहीं उतरी थीं।

समर्पण और ताकत की मिसाल

आकांक्षा कुमारी का यह सफर उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो सपने तो देखती हैं, मगर सामाजिक जकड़नों या पुराने नियमों के चलते आगे नहीं बढ़ पातीं। सीसीएल ने एक ट्वीट में लिखा, हमारी पहली महिला माइनिंग इंजीनियर आकांक्षा कुमारी – यह पल पूरे देश के लिए गौरव का विषय रहा।

महिलाओं के लिए एक ऐतिहासिक कदम

माइनिंग जैसी मुश्किल और चुनौतीपूर्ण इंडस्ट्री में अकांक्षा कुमारी का कदम यह साबित करता है कि जब जज्बा और समर्पण हो तो कोई सीमा या दीवार टिक नहीं सकती। यह जीत उस हर भारतीय बेटी की जीत है, जो सपने तो देख सकती है मगर पुराने नियमों और सामाजिक बाधाओं में जकड़ी रहती है।

स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही वह यह जानने लगीं कि झारखंड जैसे राज्य में, जो खदानों और खनिजों का केंद्र है, एक महिला के तौर पर वे क्या कर सकती हैं। जब सहपाठी डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखते थे, तब अखांक्षा खदानों में काम करने और पुरुष-प्रधान उद्योग में कदम रखने का सपना साकार करने का प्रण ले चुकी थीं।

माइनिंग इंजीनियरिंग में कदम रखने का साहस

अपनी राह में सामाजिक बाधाओं और कानूनों को चुनौती देते हुए आकांक्षा कुमारी ने बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, धनबाद में माइनिंग इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। यह निर्णय साधारण नहीं था — यह उस पारम्परिक सोच और धारणा के खिलाफ एक सीधी जंग थी कि माइनिंग केवल पुरुषों का क्षेत्र है।

हिंदुस्तान जिंक से सीसीएल तक का ऐतिहासिक सफर

डिग्री पूरी करने के बाद आकांक्षा ने अपना पहला जॉब हिंदुस्तान जिंक, बलारिया माइन्स, राजस्थान में किया। इसके बाद वे सीसीएल यानी सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड में भर्ती होकर वह इतिहास रचने में सफल रहीं, जो इससे पहले कभी कोई महिला नहीं कर पाई थी। वे चूरी अंडरग्राउंड माइन्स, नॉर्थ कर्णपुरा, झारखंड में देश की पहली महिला भूमिगत माइनिंग इंजीनियर बनीं।

कानूनों और धारणाओं को तोड़ने का जज्बा

भारत में साल 2019 तक कानून महिलाओं को भूमिगत खदानों में काम करने की इजाजत नहीं देते थे। सीसीएल जैसे संस्थानों में महिलाएं डॉक्टर, ऑफिसर, सुरक्षा गार्ड या भारी मशीन ऑपरेटर तो थीं, मगर कभी भूमिगत माइनिंग का हिस्सा नहीं रहीं। अखांक्षा का यह कदम सिर्फ व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि उस काले कानून और सोच का अंत था, जो दशकों तक महिलाओं को भूमिगत खदानों से दूर रखने का साधन था।

समाज और सहकर्मियों में प्रेरणा का पर्याय

सीसीएल में ज्वाइन करने के साथ ही अकांक्षा कुमारी पूरी देश की निगाहों में छा गईं। सीसीएल ने सोशल मीडिया के जरिए उनकी उपलब्धि साझा की, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और मीडिया में बधाइयों का सिलसिला शुरू हो गया। नेता, सहकर्मी, साधारण नागरिक – सभी ने अकांक्षा को सलाम किया और उन्हें ‘भारत की रत्न बेटी’ और ‘भूमिगत खदानों की रानी’ जैसे नामों से संबोधित किया।

समाज और महिलाओं के लिए जीत का प्रतीक

आकांक्षा कुमारी का यह सफर यह बताता है कि सपने कभी लिंग या सामाजिक बाधाओं से नहीं रुकते। जब इरादा मजबूत हो, तो पहाड़ सा मुश्किल काम भी साधारण सा लगने लगता है। वे उन सभी युवा लड़कियों के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं जो जीवन में कुछ अलग और चुनौतीपूर्ण करने का सपना देखती हैं।

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