Jharkhand Bureaucracy Internal Big Breaking News : गुरु अपनी मौज में थे। महफिल में कथा-कहानियों का दौर चल रहा था। कई बड़े सूरमा दरबार में ब्लैक कॉफी का आनंद ले रहे थे। गुरु ने कमरे के गेट पर खड़े देख लिया। पास में एक कुर्सी खाली पड़ी थी। हाथ से बैठने का इशारा किया। दूसरे हाथ से कॉफी का कप टेबल पर रखा और अपनी तकरीर में लग गए। बोले- वर्ष 2015 में एक फिल्म आई थी मसान।
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इसमें फिल्म अभिनेता विक्की कौशल का एक आइकोनिक डायलॉग बड़ा चर्चित हुआ था। ये दुख काहे खत्म नहीं होता…। मैडम के साथ यह संबोधन तगड़े से चिपक गया है। वाक्य पूरा होते ही कमरे में जोरदार ठहाके गूंज उठे। माजरा समझ में नहीं आया। चौपाल में देर से पहुंचने का सबसे बड़ा खामियाजा यह है कि कहानी अधूरी पता चलती है। सवाल घुमड़ते रह जाते हैं।
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खैर, गुरु की बात खत्म होते ही दो नौकरशाह विदा लेने के लिए खड़े हो गए। दरवाजे तक छोड़ने के लिए गुरु साथ आगे बढ़े। गुरु के जाने और आने के बीच मस्तिष्क में उधेड़बुन जारी रही। किसकी बात हो रही थी? कौन दुखी है? क्यों दुखी है? गुरु वापस लौटकर फिर अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गए। कमरे का शांत वातावरण देखकर रहा नहीं गया। गुरु से सीधे सवाल किया, ‘किसकी बात हो रही थी गुरु?’ उत्तर देने की जगह गुरु खिलखिला कर हंस पड़े। बोले- अरे तुम्हारे जान-पहचान वाले ही हैं। इस जवाब से मन और व्यग्र हो गया।
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दोबारा प्रश्न किया- आखिर कौन? गुरु बोले- अरे वही, जो गाड़ियों की फोटोग्राफी-वीडियोग्राफी करा रही हैं। गुरु ने अपनी तरफ से उत्तर दे दिया था। कहते हैं ना कि जिस कविता का प्रसंग पता न हो, उसका अर्थ समझना कठिन है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हो रहा था। गुरु से और अधिक पूछने की हिम्मत नहीं थी। लिहाजा महफिल में मौजूद दूसरे शख्स से पूछा, किसकी बात हो रही थी? शख्स ने बताया- कहानी वनांचल राज्य के एक प्रमुख जनपद की हो रही थी। कुछ दिनों पहले ही इस जनपद की कमान मैडम के हाथ से लेकर साहब को थमा दी गई। मैडम को यह बात रास नहीं आई। उन्होंने अपने शुभचिंतकों से नए साहब की जासूसी करानी शुरू की।
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पता चला कि नए साहब का ऊपरी कामकाज देखने के लिए छोटे साहब अवतरित हो गए हैं। मैडम से रहा नहीं गया। मैडम ने तत्काल अपनी व्यथा का इलाज खोजा। पूरा मामला मर्म के साथ अपने नजदीकियों को बता दिया। देखते-देखते पूरा खेल अघोषित तौर पर सार्वजनिक हो गया। गुरु अपने वृत्तांत में इसी मैडम की आगे की कहानी बता रहे थे। मैडम के साथ परेशानी यह है कि इन्हें जनपद की कुर्सी का बड़ा मोह है। जैसे ही इनसे जनपद छूटता है, उन्हें दुख घेर लेता है।
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इन्हें चौतरफा भ्रष्टाचार नजर आने लगता है। लोकहित की चिंता इतनी घर कर जाती है कि कई बार अवसाद की अवस्था तक पहुंच जाती हैं। मौजूदा समय में भी कुछ ऐसा ही राग अलाप रही हैं। बताने वाले बताते हैं कि अपने कार्यकाल में मैडम ने अपने आवास पर एक गाड़ी की व्यवस्था कर रखी थी। लोकसेवा से प्राप्त अनुदान को कमरे में रखने की बजाय सीधे गाड़ी में रखवा देती थीं।
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अनुदान जमा होते ही वाहन लंबी दूरी पर रवाना हो जाता था। यही वजह है कि मैडम गाड़ी देखकर अत्यधिक सतर्क हो जाती हैं। प्रकरण कुछ-कुछ समझ में आने लगा था। अब इस पर और अधिक व्याख्या की आवश्यकता नहीं थी। गुरु की चौखट को प्रणाम कर अपने आशियाने की तरफ बढ़ गया।
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