रांची: झारखंड के राज्यपाल और कुलाधिपति संतोष गंगवार ने सोमवार को राजभवन में एक अहम समीक्षा बैठक की। इस बैठक में राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति, रजिस्ट्रार और उच्च शिक्षा विभाग के शीर्ष अधिकारी शामिल हुए। बैठक का मुख्य फोकस राज्य के विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक सत्र की देरी और मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित व्यवस्था रहा।
शैक्षणिक सत्र में देरी पर राज्यपाल हुए सख्त
बैठक की शुरुआत में राज्यपाल ने सत्र में हो रही देरी को लेकर गहरी नाराजगी जाहिर की। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा,
“किसी भी स्थिति में सत्र देर से नहीं चलना चाहिए। अब समस्याओं पर नहीं, समाधान पर चर्चा करें।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि समय पर सत्र नहीं चलने से छात्रों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिसे अब गंभीरता से लेना होगा।
राज्यपाल ने सभी विश्वविद्यालयों को निर्देश दिया कि वे अकादमिक कैलेंडर का सख्ती से पालन करें और सुनिश्चित करें कि कक्षाएं, परीक्षाएं और मूल्यांकन कार्य समयबद्ध रूप से पूरे हों।
गुणात्मक उच्च शिक्षा की दिशा में राज्यपाल की प्रतिबद्धता
राज्यपाल ने स्पष्ट किया कि वे राज्य में उच्च शिक्षा प्रणाली में समग्र सुधार के लिए पूर्णतः प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने कहा:
“प्रशासनिक दक्षता, अकादमिक उत्कृष्टता और पारदर्शिता के साथ हमें मिलकर काम करना है। अगर कुलपति, विश्वविद्यालय पदाधिकारी और शिक्षाविद समन्वय से कार्य करें, तो झारखंड को उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक आदर्श और अग्रणी राज्य के रूप में स्थापित किया जा सकता है।”
उन्होंने कुलपतियों को निर्देश दिया कि वे सत्र समय पर संचालित करने के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करें, ताकि आगे किसी भी तरह की देरी से बचा जा सके।
छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को मिले प्राथमिकता
बैठक में मेंटल हेल्थ और स्टूडेंट काउंसलिंग की व्यवस्था पर भी गंभीर चर्चा हुई। राज्यपाल ने कुलपतियों से सवाल किया कि क्या विश्वविद्यालयों और उनके अधीन कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की नियुक्ति की गई है?
उन्होंने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का हवाला देते हुए कहा:
“100 या इससे अधिक छात्रों वाले हर शिक्षण संस्थान में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की नियुक्ति अनिवार्य है।”
राज्यपाल ने कहा कि अब समय आ गया है जब छात्रों की मानसिक स्थिति और भावनात्मक समर्थन को भी शिक्षा व्यवस्था का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाए।
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