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आसान नहीं होगी बाबूलाल मरांडी की राह: लोक सभा चुनाव में भाजपा ने बेहतर प्रदर्शन किया तो सीधे सीएम कैंडिडेट बन जाएंगे बाबू लाल मरांडी, लेकिन रघुवर दास व अर्जुन मुंडा गुट यह आसानी से होने नहीं देगा………

by Rakesh Pandey
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रांची: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) शीर्ष नेतृत्व ने एक बार फिर से अपने पुराने नेता व झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी पर विश्वास जताया है। मरांडी हैं तो वैसे भाजपा के पुराने नेता लेकिन करीब डेढ़ दशक तक बाबूलाल मरांडी बीजेपी से दूर रहे।

इस दौरान बाबूलाल मरांडी ने कांग्रेस और जेएमएम के साथ भी तालमेल किया। लेकिन फिर वे अपनी पुरानी पार्टी में वापस आ गए। वहीं घर वापसी के करीब दो साल बाद बीजेपी नेतृत्व ने बाबूलाल मरांडी  को बडी जिम्मेदारी सौंपते हुए झारखंड प्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बना दिया है।

ऐसे में अब तय हो गया है कि झारखंड में 2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी बाबूलाल मरांडी के फेस को आगे कर लड़ेगी।

अगर वे लोगसभा चुनाव में पार्टी को झारखंड में अधिक से अधिक सीट जीताने में कामयाब होते हैं तो फिर अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव भी पार्टी उन्हीं के नेतृत्व में लड़ेगी यहीं नहीं राजनीति के जानकार यह भी बता रहे हैं कि वे भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा भी होंगे।

ऐसे में देखना होगा क्या बाबूलाल मरांडी 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में क्या 1996, 1998, 1999 की तरह अपने पुराने इतिहास को फिर एक बार दुहरायेगें। अगर वे ऐसा कर पाए तो उन्हें भाजपा का सीएम कैंडिडेट होने से कोई नहीं रोक सकता।

आसान नहीं है गुटों में बंटे भाजपा को एक करना:

बाबूलाल मरांडी भले ही झारखंड में भाजपा के सबसे बड़े नेता बन गए हों। लेकिन उनके समक्ष चुनौती भी कम नहीं है। सबसे पहले उन्हें अपने पार्टी के ही उन नेताओं के महत्वकांक्षा से निपटना होगा जो खुद को भविष्य के सीएम उम्मीद्वार के रूप में देखते हैं।

पूर्व सीएम रघुवरदास हों या केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ये अभी भी अंदर खाने झारखंड का सीएम बनने का सपना देखते रहते हैं। यही वजह है कि अभी झारखंड में पार्टी तीन गुटों में बटी है। पहला रघुवर दास गुट, दूसरा अर्जुनमंडा और तीसरा बाबूलाल मंरांडी, हालांकि अभी बाबूलाल का दावा इन दोनों नेताओं से कही मजबूत है।

लेकिन उनके दावे को कमजोर करने का कोई भी प्रयास रघुवरदास व अर्जुन मुंडा गुट नहीं छोड़ेगा। ऐसे में बाबूलाल मरांडी को बाहर के साथ ही अपने घर के पतिद्वंदीयों से भी निपटना होगा।

सरयू राय की हो सकती है घर वापसी, कोल्हान पर होगा मुख्य फोकस:

बाबूलाल मरांडी के भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद अब पार्टी के पूर्व नेता व विधायक सरयू राय के पुन: भाजपा में आने की अटकलें तेज हो गयी है। इसके लिए आरएसएस पहले से ही प्रयास कर रहा है। वहीं अब बाबूलाल मरांडी के साथ सरयूराय के अच्छे संबंध हैं।

पार्टी से अलग होने के बाद भी दोनों कई बार एक मंच पर साथ नजर आए हैं। ऐसे में बाबूलाल मरांडी सरयू राय को भाजपा में लाने का हर प्रयास करेंगे। इसके साथ ही उनका मुख्य फोकस कोल्हान होगा।

क्योंकि पिछले विधान सभा चुनाव में पार्टी यहां की सभी सीटों पर हार गई थी। ऐसे में यहां पार्टी को मजबूत करने के लिए उन्हें अपने पुराने नेताओं को साथ लाना होगा। हालांकि बाबूलाल मरांडी को चुनौती भी यहीं से मिलेगी क्योंकि रघुवर दास व रर्जुन मंडा गुट सबसे अधिक यहीं सक्रिय है।

ऐसे में बाबूलाल मरांडी का बढ़ा था कद:

वह दौर 1990 का था जब भाजपा को संतालपरगना खास कर दुमका में झामुमो के शीर्ष नेता शिबू सोरेन को चुनौती देने वाले नेता की तलाश थी। ऐसे में भाजपा ने 1991 में पहली बार शिबू सोरेन के खिलाफ बाबूलाल मरांडी पर दांव लगाया। तब बाबूलाल सिर्फ 32 साल के थे। इस युवा नेता को भाजपा ने लोकसभा के चुनाव में उतार दिया।

1991 में बाबुलाल मरांडी सीधे तौर पर भाजपा जैसी पार्टी के बैनर तले अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की। इस समय तक छोटानागपुर- संताल परगना अब झारखंड के विभिन्न क्षेत्रों में बतौर सांसद भाजपा के संस्थापक सदस्य रहे कुछ ही नेता-कार्यकर्ता थे।

इसमें कड़िया मुंडा, रीतलाल बर्मा, रूद्र प्रताप सारंगी और विधायक के रूप में ललित उरांव, इन्दर सिंह नामधारी, समरेश सिंह, निर्मल बेसरा और सत्यनारायण दुधानी शामिल थे। 1991 के लोकसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा के पक्ष 1.25 लाख वोट बटोर कर दुमका के राजनीतिक फिंजा में हलचल मचा दी।

हालांकि वे अपने राजनीतिक जीवन का पहला चुनाव शिबू सोरेन से हार गये। लेकिन झामुमो के दिशोम गुरु शिबू सोरेन के राजनीतिक भविष्य पर चिंता की लम्बी लकीर खींच दी।

दूसरी बार बाबूलाल ने शिबू सोरेन को कड़ी टक्कर दी

1996 में फिर लोकसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में भी भाजपा ने दुमका से बाबूलाल मरांडी को दूसरी बार शिबू सोरेन के खिलाफ मैदान में उतारा। राज्य के सभी 14 सीटों पर उन्हें कमल खिलाने का दायित्व भी सौंप दिया।

1996 में भी बाबूलाल मरांडी महज पांच हजार मतों के अंतर से झामुमो के सर्वेसर्वा शिबू सोरेन से हार गये। लेकिन वे झारखंड के 14 में 12 सीटों पर जीत दर्ज कर राजनीतिक पंडितों के गणित को मात देने में कामयाब रहे। इस चुनाव के दौरान सरसडंगाल समेत कई स्थानों पर उन पर तथा भाजपा के कार्यकर्ताओं पर हमले भी हुए । लेकिन वे पीछे नहीं हटे।

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शिक्षक थे रहे मरांडी डीसी से नाराज हो आए राजनीति में:

गिरिडीह का कोदायबांक गांव बाबू लाल मरांडी की जन्म भूमि है। जबकि 1990 के दशक से उन्होंने दुमका-समेत समूचे संताल परगना को अपनी कर्मभूमि बनाया। कभी कोदायबांक और सतगंवा साधन विहिन गांवों में शुमार था।

पैदल या पगडंडी वाले कठिन रास्ते पर सफर कर उन्होंने प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। बाद में भूगोल से एमए की डिग्री हासिल कर शिक्षक के पद पर नियुक्त हुए। कहते हैं कि शिक्षक पद पर रहते हुए एक बार वे गिरिडीह के उपायुक्त से मिलने गये।

लेकिन उपायुक्त से मिलने के क्रम में उन्हें प्रशासन और जनता के बीच की दूरी और आमलोगों के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों के रुखे व्यवहार का कड़वा अनुभव हुआ। इसके बाद उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़ राजनीति में आने का फैसला लिया।

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