नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दो समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने सहित अन्य कथित अपराधों को लेकर ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ (ईजीआई) के चार सदस्यों के खिलाफ दर्ज दो प्राथमिकियों के सिलसिले में उनके खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाने के अपने आदेश की अवधि 15 सितंबर तक बढ़ा दी है। इसके साथ ही न्यायालय ने मणिपुर सरकार से इस बारे में उसकी राय मांगी कि क्या प्राथमिकी को रद्द करने और अन्य राहत से जुड़े याचिकाकर्ताओं के अनुरोध को फैसले के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाये।
15 सितंबर को होगी अगली सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि वह ‘एडिटर्स गिल्ड’ की याचिका पर छह सितंबर को पारित आदेश के लागू रहने की अवधि शुक्रवार तक बढ़ायेगी। मामले में अगली सुनवाई शुक्रवार को ही होनी है।
पीठ में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि ईजीआई की तथ्यान्वेषी समिति की रिपोर्ट के आधार पर प्राथमिकी कैसे दर्ज की गई, जबकि चारों जमीनी स्तर पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल नहीं थे।
प्राथमिकियों को रद्द करने के पक्ष में नहीं अदालत
शीर्ष अदालत ने कहा कि वह प्राथमिकियों को रद्द करने के पक्ष में नहीं है और वह इस पर विचार कर रही है कि क्या उनकी याचिका को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है या मणिपुर उच्च न्यायालय को इस पर विचार करना चाहिए।
न्यायालय ने 15 सितंबर को मामले की सुनवाई करने का फैसला किया। पत्रकारों ने उनके खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करने और मणिपुर पुलिस द्वारा किसी भी दंडात्मक कार्रवाई से सुरक्षा की मांग की है।
सॉलिसिटर जनरल ने मणिपुर उच्च न्यायालय में सुनवाई की मांग की
पीठ ने पत्रकारों की संस्था की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और श्याम दीवान की दलीलों पर भी गौर किया कि ईजीआई सदस्यों ने 12 जुलाई को सेना द्वारा लिखे गये एक पत्र का अनुसरण करते हुए तथ्यान्वेषी अध्ययन किया था।
पीठ ने कहा कि आखिरकार यह एक रिपोर्ट है। मूल प्रश्न यह है कि वे जो तर्क दे रहे हैं वह यह है कि उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है और यह उनकी व्यक्तिपरक राय का मामला हैं। यह उन मामलों में से एक नहीं है जहां कोई व्यक्ति मौके पर था और उसने कोई अपराध किया हो।
अन्य मामलों की तरह मणिपुर भेजा जाए: सॉलिसिटर जनरल
राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई की शुरुआत में कहा कि ईजीआई सदस्यों को कुछ और समय के लिए सुरक्षा प्रदान की जा सकती है और इस मामले को अन्य मामलों की तरह मणिपुर उच्च न्यायालय में भेजा जाए।
ईजीआई की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और श्याम दीवान ने इस दलील का विरोध किया और कहा कि मामले की सुनवाई शीर्ष अदालत में ही की जानी चाहिए या उसे दिल्ली उच्च न्यायालय को स्थानांतरित किया जाना चाहिए क्योंकि तथ्यान्वेषी रिपोर्ट के आधार पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकतीं।
स्थानीय मीडिया द्वारा अनैतिक, एकपक्षीय रिपोर्टिंग का मामला
सिब्बल ने कहा कि ईजीआई ने स्वेच्छा से मणिपुर जाने की इच्छा नहीं जताई और सेना के लिखे जाने के बाद वे वहां गये। उन्होंने कहा, यह सेना ही है जो जमीन पर मीडिया कवरेज का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन चाहती थी। सिब्बल ने कहा कि हम स्वेच्छा से वहां नहीं गये। यह सेना ही है जिसने हमसे अनुरोध किया। यह बहुत ही गंभीर मामला है। कृपया एडिटर्स गिल्ड को सेना द्वारा लिखा गया पत्र देखें।
यह सेना की ओर से एडिटर्स गिल्ड को दिया गया निमंत्रण है जिसमें कहा गया है कि देखें वहां क्या हो रहा है। स्थानीय मीडिया द्वारा अनैतिक, एकपक्षीय रिपोर्टिंग। उनके निमंत्रण पर ही हम गये थे। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट देने के लिए एडिटर्स गिल्ड और उसके सदस्यों पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
सॉलिसिटर जनरल व सिब्बल ने रखा अपना पक्ष
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि मणिपुर उच्च न्यायालय में काम हो रहा है और ईजीआई और उसके सदस्य वहां जा सकते हैं और यहां तक कि डिजिटल रूप से उपस्थित हो सकते हैं। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों को सीधे शीर्ष अदालत में दायर नहीं किया जाना चाहिए। सिब्बल ने मणिपुर में वकीलों पर हमले की कथित घटनाओं का जिक्र किया और कहा कि इस समय वहां जाना खतरनाक है।
मुख्यमंत्री के बयानों का भी हुआ जिक्र
वरिष्ठ वकील ने एक मीडिया ब्रीफिंग में प्राथमिकी के बारे में मणिपुर के मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए बयानों का भी जिक्र किया। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अगर आप इसे राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक बनाना चाहते हैं तो हम भी बना सकते हैं। अन्यथा, मणिपुर उच्च न्यायालय इससे निपट सकता हैं। मैं नहीं चाहता कि यह एक राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा बने।
मुख्यमंत्री ने राज्य में संघर्ष भड़काने का लगाया है आरोप
पीठ ने कहा कि वह प्राथमिकियों को रद्द नहीं करने जा रही है क्योंकि उसे इस स्तर पर तथ्यों को देखने की आवश्यकता होगी और वह इस बात पर विचार करेगी कि क्या ईजीआई को मणिपुर उच्च न्यायालय में जाने के लिए कहा जा सकता है या मामले को दिल्ली उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि हम शुक्रवार को इस मामले पर सुनवाई करेंगे।
उसने कहा कि वह शुक्रवार को ही राज्य सरकार के जवाब पर गौर करेगी। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने चार सितंबर को कहा था कि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की अध्यक्ष और तीन सदस्यों के खिलाफ एक शिकायत के आधार पर पुलिस में मामला दर्ज किया गया है और उन पर राज्य में संघर्ष भड़काने की कोशिश करने के आरोप हैं। मानहानि के अतिरिक्त आरोप के साथ गिल्ड के चार सदस्यों के खिलाफ एक अन्य प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी।
एडिटर्स गिल्ड की रिपोर्ट ने मणिपुर सरकार को किया था बेनकाब
ईजीआई अध्यक्ष सीमा मुस्तफा के अलावा जिन लोगों पर मामला दर्ज किया गया है उनमें वरिष्ठ पत्रकार सीमा गुहा, भारत भूषण और संजय कपूर शामिल हैं। जातीय हिंसा पर मीडिया रिपोर्टिंग का अध्ययन करने के लिए उन्होंने सात से 10 अगस्त के बीच राज्य का दौरा किया था। ‘एडिटर्स गिल्ड’ ने दो सितंबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में मणिपुर में इंटरनेट प्रतिबंध को मीडिया रिपोर्टिंग के लिए नुकसानदेह बताया था तथा मीडिया कवरेज की आलोचना की थी।
गिल्ड ने दावा किया था कि मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया में आयी खबरें एकतरफा हैं। इसके साथ ही उसने संघर्ष के दौरान राज्य नेतृत्व पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप भी लगाया था। मुख्यमंत्री ने कहा था कि वे राज्य विरोधी, राष्ट्र विरोधी और सत्ता विरोधी (लोग) हैं जो जहर उगलने आये थे। अगर मुझे पहले पता होता तो मैं उन्हें प्रवेश की ही अनुमति नहीं देता।