सेंट्रल डेस्क: बंबई उच्च न्यायालय ने सतारा जिले के सत्र न्यायाधीश धनंजय निकम को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया। धनंजय निकम ने रिश्वत के एक मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की मांग की थी। महाराष्ट्र एंटी-करप्शन ब्यूरो (ACB) ने निकम पर आरोप लगाया है कि उन्होंने एक धोखाधड़ी मामले में जमानत देने के बदले में 5 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी। यह मामला न्यायिक अधिकारी से संबंधित होने के कारण न्यायमूर्ति एनआर बोर्कर द्वारा चैम्बर में सुना गया।
क्या कहा न्यायमूर्ति ने
अपना निर्णय देते हुए न्यायमूर्ति बोर्कर ने जमानत देने पर असहमति जताई। उन्होंने यह भी कहा कि याचिका खारिज की गई है, इसके कारणों का विवरण एक निर्णय में दिया। प्रोसेक्यूशन की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक वीर शिंदे ने बहस के दौरान निकम की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपों के समर्थन में पर्याप्त प्रमाण हैं।
निकम के अधिवक्ता का तर्क-झूठे आरोपों में फंसाया गया
इस सुनवाई में धनंजय निकम का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता वीरश पुरवंत कर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि धनंजय निकम निर्दोष हैं। उन्हें झूठे आरोपों में फंसाया गया है। उनकी याचिका में कहा गया कि प्राथमिकी में उन्हें रिश्वत मांगने या स्वीकार करने का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। शिकायत के अनुसार, रिश्वत का आरोप एक ऐसे मामले से जुड़ा है जिसमें एक नागरिक रक्षा कर्मचारी पर धोखाधड़ी कर सरकारी नौकरी देने का आरोप लगा था। उक्त कर्मचारी न्यायिक हिरासत में है। उसे निचली अदालत ने जमानत देने से मना कर दिया था।
एसीबी का आरोप-पांच लाख रुपये मांगी गई रिश्वत
धोखाधड़ी से नौकरी हासिल करने के आरोपी की निचली अदालत से जमानत याचिका निचली अदालत से खारिज होने के बाद उनकी बेटी ने बाद में सतारा सत्र न्यायालय में एक नई जमानत याचिका दाखिल की। इसी याचिका को धनंजय निकम को सुनना था। एसीबी का आरोप है कि मुंबई के किशोर संभाजी खरात और सतारा के आनंद मोहन खरात ने महिला से निकम की ओर से 5 लाख रुपये की रिश्वत की मांग की थी। एजेंसी का कहना है कि 3 से 9 दिसंबर 2024 के बीच हुई जांच में रिश्वत की मांग और निकम की संलिप्तता का पता चला है।
बचाव पक्ष ने आरोपों पर जताया संदेह
एसीबी ने निकम, दोनों खरातों और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया। निकम के बचाव पक्ष ने कहा कि उन्हें शिकायतकर्ता और अन्य आरोपियों के बीच किसी बैठक की जानकारी नहीं थी। उनकी याचिका में यह भी कहा गया कि वह महत्वपूर्ण तारीखों पर छुट्टी पर या प्रतिनियुक्ति पर थे, जिससे आरोपों पर संदेह पैदा होता है।
इसके अतिरिक्त, याचिका में यह भी कहा गया कि उन्होंने जमानत याचिका की सुनवाई से बचने की कोशिश नहीं की और न ही किसी अनुकूल निर्णय का कोई वादा किया, यह बताते हुए कि उस अवधि में कोई जमानत आदेश जारी नहीं किया गया था।