Ranchi: राज्य की हेमंत सोरेन सरकार एक बार फिर अपने फैसलों को लेकर विवादों में है। हाल ही में रामगढ़ जिले में आफताब अंसारी नामक युवक की मृत्यु पर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री ने बिना जांच के इसे मॉब लिंचिंग करार देते हुए मृतक के परिजनों को ₹3 लाख की मुआवजा राशि देने की घोषणा कर दी थी।
हालांकि अब स्वास्थ्य विभाग की आधिकारिक रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया गया है कि आफताब की मौत भीड़ द्वारा हमला किए जाने से नहीं, बल्कि पानी में डूबने से हुई थी। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या मंत्री जी ने बिना तथ्य जांचे केवल राजनीतिक दबाव या तुष्टीकरण की नीति के तहत यह बयान और मुआवजे की घोषणा की थी?
देवघर हादसा: कांवड़ियों की मौत पर केवल ₹1 लाख का मुआवजा
रामगढ़ प्रकरण के उलट, देवघर जिले में बाबा बैजनाथ की पूजा करके लौट रहे कांवड़ियों की सड़क दुर्घटना में मौत पर सरकार ने केवल ₹1 लाख की मुआवजा राशि घोषित की। यह निर्णय राज्य सरकार के दोहरे मापदंड को उजागर करता है।
श्रद्धा और आस्था से भरे कांवड़ यात्रा के दौरान हुई इस दुर्घटना में मृतक श्रद्धालुओं को अपेक्षित संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई। इस तुलना से यह प्रतीत होता है कि राज्य सरकार वोट बैंक की राजनीति में न्याय और संवेदना जैसे मूल्यों से समझौता कर रही है।
सवाल उठे: क्या मुआवजा भी राजनीति के आधार पर तय होगा?
रामगढ़ और देवघर की दो घटनाओं के बीच सरकार की प्रतिक्रिया में साफ फर्क देखा गया। एक तरफ बिना पुष्टि के ‘मॉब लिंचिंग’ कहकर मुआवजा दिया गया, वहीं दूसरी तरफ श्रद्धालुओं की मौत पर सरकार ने अपेक्षाकृत कम सहायता राशि घोषित की। इससे राज्य सरकार की नीति पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
हेमंत सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्या सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार नहीं होना चाहिए? या फिर राजनीतिक लाभ के आधार पर मुआवजे जैसे संवेदनशील निर्णय लिए जाते रहेंगे?
एक लोकतांत्रिक राज्य की प्राथमिकता जनता के साथ न्याय होनी चाहिए, न कि तुष्टीकरण की राजनीति। रामगढ़ और देवघर दोनों ही घटनाएं अलग-अलग परिस्थितियों में हुईं, लेकिन सरकार की प्रतिक्रिया ने पक्षपातपूर्ण रवैये को उजागर कर दिया।
अगर राज्य की मंशा निष्पक्ष और न्यायसंगत होती, तो दोनों घटनाओं में मापदंड एक जैसे होते, परंतु ऐसा नहीं हुआ—जो गंभीर चिंता का विषय है।
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