नई दिल्ली : मध्य-पूर्व एक बार फिर जंग के मुहाने पर खड़ा है। ईरान और इज़रायल के बीच बढ़ते तनाव ने न सिर्फ क्षेत्रीय स्थिरता को चुनौती दी है, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति और अर्थव्यवस्था को भी अस्थिर करने का खतरा पैदा कर दिया है। अमेरिका की रणनीति अब सवालों के घेरे में है। क्या वह युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से कूदने वाला है या यह सिर्फ एक रणनीतिक दबाव है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अब स्थिति बेहद संवेदनशील हो चुकी है, जहां एक चिंगारी भी वैश्विक संघर्ष का रूप ले सकती है।
संघर्ष के तीन खतरनाक आयाम
- होर्मुज़ जलडमरूमध्य पर ईरानी शिकंजा : तेल आपूर्ति पर संकट
ईरान ने संकेत दिया है कि यदि उसे उकसाया गया, तो वह होर्मुज जलडमरूमध्य को अवरुद्ध कर सकता है। यह वही जलमार्ग है, जहां से विश्व की लगभग 30% तेल आपूर्ति गुजरती है। यदि यह मार्ग बाधित होता है, तो वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतें बेकाबू हो सकती हैं, जिसका सीधा असर भारत, चीन, अमेरिका सहित तमाम आयात-आधारित अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा। इसके नतीजे में सिर्फ महंगाई नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। अमेरिका की पेट्रोलियम रिजर्व पहले ही घट चुकी है और वह दोहरी मार झेल सकता है। एक सैन्य मोर्चे पर और दूसरी आर्थिक मोर्चे पर।
- परमाणु जखीरे की तरफ बढ़ सकता है ईरान
पश्चिमी खुफिया रिपोर्टों और IAEA की चेतावनियों के मुताबिक, ईरान ने यूरेनियम संवर्धन की रफ्तार तेज कर दी है। विश्लेषकों का मानना है कि यदि यह टकराव लंबा खिंचता है, तो ईरान ऐसे स्तर पर पहुंच सकता है, जहां उसके पास 10 बम जितना यूरेनियम होगा। यह न सिर्फ इजरायल, बल्कि अमेरिका और यूरोप के लिए भी गंभीर खतरे की घंटी है। अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव का कहना है, अगर कूटनीति अब नहीं चली, तो अगला कदम परमाणु हथियारों की दौड़ होगा, जो सिर्फ पश्चिम एशिया तक सीमित नहीं रहेगा।
- आतंकी संगठनों की सक्रियता से बढ़ेगा अस्थिरता का खतरा
ईरान का प्रभाव सिर्फ सरकारी सेनाओं तक सीमित नहीं है। हिजबुल्ला (लेबनान), हूती विद्रोही (यमन), और इराक-सीरिया में सक्रिय कई आतंकी संगठन ईरान समर्थित माने जाते हैं। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, यदि अमेरिका या इजरायल ने ईरान पर सीधा हमला किया, तो ये संगठन पश्चिमी ठिकानों, तेल संयंत्रों और समुद्री पोतों को निशाना बना सकते हैं। इस ‘प्रॉक्सी वार’ का सबसे बड़ा खतरा यही है–यह संघर्ष सीमित नहीं रहेगा, बल्कि कई देशों और संगठनों के जरिए फैल सकता है।
कूटनीति की बंद होती खिड़कियां, जंग का बढ़ता खतरा
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति फिलहाल ठप पड़ी है। संयुक्त राष्ट्र, EU और चीन जैसे देशों के प्रयासों को अमेरिका और इजरायल की आक्रामकता और ईरान के प्रतिरोधी रवैये ने जटिल बना दिया है। पूर्व नोबेल विजेता और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ डॉ. मार्टिन ब्राउन कहते हैं, अब कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं दिखता। यह सिर्फ एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं रहेगा। यह वैश्विक राजनीति को दो गुटों में बांट सकता है।
अमेरिका की आंतरिक अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है भारी असर
अमेरिका पहले से ही आर्थिक मंदी से जूझ रहा है। यदि पश्चिम एशिया में युद्ध छिड़ता है और तेल की कीमतें आसमान छूती हैं, तो अमेरिकी शेयर बाजार में तेज गिरावट आ सकती है। उपभोक्ता महंगाई बढ़ेगी और राष्ट्रपति चुनावों से पहले यह एक बड़ा राजनीतिक संकट बन सकता है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका की आर्थिक सुरक्षा अब सिर्फ घरेलू नीति से तय नहीं होगी, बल्कि ईरान के हर कदम पर निर्भर होगी।
जनता और सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं
इस पूरे घटनाक्रम पर ट्विटर, इंस्टाग्राम और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूजर्स की प्रतिक्रियाएं भी तीव्र हैं। #WW3 ट्रेंड कर रहा है, लोग चिंतित हैं कि क्या यह वाकई तीसरे विश्व युद्ध की आहट है। Oil Prices Alert, Nuclear Danger और IranIsraelTension जैसे हैशटैग के तहत लाखों ट्वीट हो चुके हैं।
सुलगती चिंगारी, जिसे बुझाना अब मुश्किल
ईरान-इजरायल संघर्ष अब केवल एक सीमित विवाद नहीं रहा। यह वैश्विक भू-राजनीति, ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक समीकरणों को बदलने वाला मोड़ बन चुका है। आने वाले हफ्ते तय करेंगे कि क्या यह तनाव केवल शब्दों और धमकियों तक सीमित रहेगा या दुनिया एक और युद्ध के दावानल में झोंकी जाएगी।