रांची : भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने बोकारो जिले के कडरूखुट्ठा गांव में हुई कथित मॉब लिंचिंग की घटना पर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। उन्होंने इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए इसे वोटबैंक तुष्टीकरण की नीति का परिणाम बताया है।
क्या है बोकारो मॉब लिंचिंग मामला : आदिवासी महिला के साथ छेड़खानी, आरोपी की पिटाई के बाद मौत
घटना के अनुसार, कडरूखुट्ठा गांव में एक आदिवासी महिला तालाब में स्नान करने गई थी। उसी समय गांव में काम कर रहे अब्दुल कलाम नामक युवक ने महिला के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म का प्रयास किया। महिला के शोर मचाने पर ग्रामीणों ने मौके पर पहुंचकर आरोपी की पिटाई कर दी, जिससे उसकी मौत हो गई। बाबूलाल मरांडी ने इस घटना को दुखद बताया, लेकिन इसके साथ ही कहा कि सरकार की प्रतिक्रिया और भी ज्यादा शर्मनाक है।
आरोपी को मुआवजा, पीड़िता को नजरअंदाज
बाबूलाल मरांडी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा,
‘दुष्कर्मी के लिए मुआवज़ा, पीड़िता के लिए मौन — क्या यही हेमंत सोरेन का झारखंड मॉडल है’?
उन्होंने आरोप लगाया कि झारखंड सरकार ने अब्दुल कलाम के परिवार को 4 लाख रुपये मुआवजा, एक लाख रुपये की सहायता राशि और स्वास्थ्य विभाग में नौकरी तक देने की घोषणा कर दी, जबकि पीड़िता आदिवासी महिला के लिए कोई संवेदना तक प्रकट नहीं की गई।
कांग्रेस विधायक पर भड़काऊ बयानबाजी का आरोप
मरांडी ने कांग्रेस विधायक डॉ. इरफान अंसारी के बयान को भी आड़े हाथों लिया, जिसमें उन्होंने इस घटना को ‘मॉब लिंचिंग’ करार देते हुए इसे मुस्लिम उत्पीड़न की संज्ञा दी थी। बाबूलाल मरांडी ने इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास बताया और कहा कि इससे आदिवासी समाज की पीड़ा पर नमक छिड़का गया है।
राज्य सरकार से बाबूलाल मरांडी के तीखे सवाल
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने सवाल उठाते हुए कहा…
• क्या झारखंड में अब आदिवासी महिलाएं दोयम दर्जे की नागरिक बन चुकी हैं।
• क्या राज्य सरकार सिर्फ इसलिए चुप है, क्योंकि यह मामला धर्मनिरपेक्ष नैरेटिव के खिलाफ जाता है।
• क्या दुष्कर्मी यदि किसी राजनीतिक रूप से सुरक्षित समुदाय से हो, तो उसे ‘पीड़ित’ घोषित कर दिया जाएगा।
झारखंड में कानून व्यवस्था और तुष्टीकरण की राजनीति पर बहस तेज
इस पूरे घटनाक्रम ने झारखंड में कानून व्यवस्था की स्थिति, महिला सुरक्षा और तुष्टीकरण की राजनीति पर बहस को एक बार फिर तेज कर दिया है। बाबूलाल मरांडी ने स्पष्ट किया कि कानून को हाथ में लेना गलत है, लेकिन इससे भी बड़ी गलती है कि सरकार दोषी के पक्ष में खड़ी नजर आती है, जबकि पीड़िता की आवाज़ कहीं दबा दी जाती है।