Home » क्या आपने ग्रेट बैकयार्ड बर्ड काउंट के बारे में सुना है?

क्या आपने ग्रेट बैकयार्ड बर्ड काउंट के बारे में सुना है?

by The Photon News Desk
backyard bird
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

बर्ड वाचर्स, बर्ड फोटोग्राफर्स और पक्षियों के संरक्षण और संवर्द्धन से जुड़े पक्षी प्रेमियों के लिए यह एक ऐसा इवेंट है, जिससे पक्षियों की दुनिया की एक प्रामाणिक जानकारी पूरी दुनिया तक आ पाती है। इस दुनिया की नागरिकता हासिल करने के लिए आपमें बस पक्षियों के बारे में दिलचस्पी होने की जरुरत भर होती है।

केवल दिलचस्पी होने मात्र से आपके सामने पक्षियों की एक ऐसी जादुई दुनिया का द्वार खुल जाता है जिसके बारे में आप बिलकुल अनभिज्ञ होते हैं और यह होता बिलकुल आपके आस-पास है। एक बार इसके बारे में आप जान लें तो आप देश और दुनिया भर में फैले पक्षी-प्रेमियों के मजबूत नेटवर्क से जुड़ जाते हैं।

और जिसको आप कल तक दूर से देख रहे होते हैं, उससे जुड़ने के बाद आप खुद उस दुनिया को समृद्ध कर रहे होते हैं। यह है क्या और काम कैसे करता है? इससे जानने से तिलिस्म जैसी लग रही इस चीज को समझा जा सकता है।
पक्षी प्रेमियों के लिए दो बेशकीमती ऐप हैं, एक है मर्लिन और दूसरा है ई बर्ड।

यह दोनों गूगल के प्ले स्टोर से डाउनलोड किये जा सकते हैं। इनमें से मर्लिन पक्षियों की पहचान के लिए डिजायन किया गया है। आपने अगर किसी पक्षी की तस्वीर क्लिक की है और आप नहीं जानते कि उस पक्षी का नाम क्या है? तो उसकी तस्वीर मर्लिन में अपलोड करके आप उसकी प्रामाणिक जानकारी हासिल कर सकते हैं।

यद्यपि जिन्हें इसकी जानकारी नहीं है वह गूगल लेंस ऐप के जरिये भी इस काम को अंजाम देते पाये जा सकते हैं। पर ऐप और एक पक्षी विशेषज्ञ में यह अंतर होता है कि जब ऐप पक्षियों के बारे में प्रामाणिक जानकारी नहीं दे पाते हैं तो पक्षी विशेषज्ञ उसकी स्पष्ट पहचान करते हैं। और तब पक्षियों पर किया गया उनका अध्ययन काम आता है। वे प्वाइंटर्स बताते हैं कि पक्षी के उस नस्ल की पहचान का आधार क्या रहा? इस विशेषज्ञता के बतौर पक्षी प्रेमी ऊपर बताये गये ऐप की मदद से पक्षियों की पहचान कर पाते हैं।

ग्रेट बैकयार्ड बर्ड काउंट एक सालाना इवेंट है, जिसकी तारीख निर्धारित करके दुनिया भर के पक्षी प्रेमियों के समूह में प्रसारित कर दिया जाता है। जैसे इस साल यह 16-19 फरवरी के बीच आयोजित हुआ। इसमें होता इतना भर है कि इन चार दिनों के भीतर पक्षी प्रेमी अपने आस-पास या अपने इलाके के हॉटस्पाट से पक्षियों की प्रजातियों की मौजूदगी और उनकी संख्या को दुनिया भर से इ बर्ड के प्लेटफार्म पर चेकलिस्ट के रुप में अपलोड करते हैं कि अपने आस-पास उन्होंने किन पक्षियों को और कितनी संख्या में देखा? इसमें स्वेच्छा से पक्षी प्रेमी भाग लेते हैं। हर चेकलिस्ट के साथ पक्षियों का डाटा दुनिया भर से अपलोड होना आरंभ होता है।

इस बार के ग्रेट बैकयार्ड बर्ड काउंट की उपलब्धि यह रही कि भारत में पाये जाने वाले पक्षियों की 75 फीसदी प्रजातियों को इन चार दिनों के भीतर रिर्पोट किया गया। पश्चिम बंगाल इसमें सबसे आगे रहा। पश्चिम बंगाल के आगे रहने की वजह एक तो उसकी भौगोलिक स्थिति है जिसमें समन्दर से लेकर पर्वतीय क्षेत्र सब मौजूद हैं।

लेकिन उससे बड़ी बात कला-संस्कृति के प्रति उनकी जागरुकता और फोटोग्राफर्स की अच्छी संख्या में मौजूदगी से प्रतिवर्ष वह इसमें अच्छी बढ़त बनाये रखते हैं। पक्षियों की विविधता को दर्ज करने के मामले में पूर्वोत्तर भारत बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। हिन्दी भाषी राज्यों की तुलना में अहिन्दी भाषी राज्यों में पक्षियों को लेकर जागरुकता ज्यादा है, इसे साफ-साफ इन चार दिनों के भीतर महसूस किया जा सकता है।

आप इसकी सफलता का अनुमान इस बात से लगा सकते हैं कि इन चार दिनों के भीतर पूरे भारत से 42227 चेकलिस्ट पक्षी प्रेमियों ने जमा किये। और 1022 किस्म के पक्षी की प्रजातियों के देखे जाने की पुष्टि हुई। भारत के लिए यह लगातार दूसरा साल है जब पक्षियों की 1000 से ज्यादा प्रजातियाँ रिपोर्ट की गयी हैं।

पर उपलब्धि स्पर विंग्ड लैपविंग के नाम रहा जो पहली बार भारत में देखा गया। अफ्रीका के इस पक्षी की मौजूदगी ने माइग्रेशन की दिशा में काम कर रहे पक्षी विशेषज्ञों को अध्ययन की नयी जिम्मेदारी सौंप दी है। चेकलिस्ट के मामले में अमेरिका इस बार भी अव्वल है। इन चार दिनों में 117435 चेकलिस्ट उनके द्वारा जमा किये गये।

यद्यपि वे 651 किस्म के पक्षी की मौजूदगी ही रिपोर्ट कर सके। अधिकतम प्रजातियों को कोलंबिया ने दर्ज किया। पक्षी प्रेमियों का यह सालाना उत्सव वाकई कमाल का होता है। यदि इसमें भारतीय वन विभाग के वनकर्मी भी ईमानदारी से शामिल हो जायें तो भारत के इतिहास में सबसे प्रामाणिक डाटा इकट्ठा किया जा सकता है।

झारखंड के जंगलों और पहाड़ों में घूमते हुए हर वर्ष कुछ नयी प्रजातियाँ दिख जाती हैं। इनकी संख्या ज्यादा नहीं होती पर उनका होना एक बड़ी उम्मीद की तरह दिखता है। ऐसा लगता है कि इस किस्म की गतिविधियों को विद्यालयों के स्तर पर भी ऐच्छिक तौर पर शामिल किये जाने की जरूरत है। इससे पक्षियों के प्रति एक संवेदनशील दुनिया बनाने में मदद मिलेगी और उनके संरक्षण और संवर्द्धन की दिशा में भी बेहतर तरीके से काम किया जा सकेगा।

राहुल सिंह, एसोसिएट प्रोफेसर, विश्व-भारती, शांतिनिकेतन

 

READ ALSO : सखी री!

Related Articles