यात्राओं का भी अपना एक संयोग होता है। यह कई बार अचानक से हीp बन जाता है। मेरी भैरवगढ़ी की यात्रा का संयोग भी कुछ ऐसे ही बन गया था जो कि भगवान शिव के चौदह अवतारों में से एक है। लेकिन पूरी यात्रा आज तक मेरी स्मृतियों में है। जब भी इस यात्रा का ख्याल आता है हमारा मन प्रसन्नता से भर जाता है।
एक तरह से देखा जाए तो यह घूमने के लिहाज से ऑफबीट का जमाना है। लोग ऐसी जगहों पर जाना पसन्द करते हैं जो भीड़भाड़ से दूर शान्त और सकून भरी हो, जिनके बारे में बहुत ही कम लोगों को पता हो। मुझे भी ऐसी जगहें बहुत ज्यादा पसंद आती हैं इसलिए लैंड्सडाउन पहुंच गया। कुछ दिन घूमने के पश्चात लगा कि अब कुछ और नया एक्सप्लोर करना चाहिये।
मुझे पता चला भैरवगढ़ी मन्दिर के बारे में जो कि लैंड्सडाउन से कुछ ही दूरी पर स्थित है। यह जगह मेरे लिए बिलकुल ही अनजान थी लेकिन मेरी कुछ नया देखने और जानने की ललक ने इस जगह के प्रति आकर्षण पैदा किया तो लगा कि एक बार घूमकर आना चाहिए और मैं लैंड्सडाउन की यात्रा के पश्चात भैरो गढ़ी के लिए निकल पड़ा।
आप चाहें तो गुमखाल होते हुए भी कीर्तिखाल गांव में स्थित इस मंदिर के दर्शन के लिए जा सकते हैं। इस मंदिर में काल भैरव की पूजा की जाती है और कहा जाता है कि भगवान शिव के 14 अवतारों में से एक भैरव गढ़ी भी है, यह मंदिर काफी भव्य और खूबसूरत है। इस जगह पर पहुंचना थोड़ा मुश्किल है। बावजूद इसके इस जगह की मान्यता स्थानीय लोगों में बहुत ही गहरी है जिसकी वजह से श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है।
इस जगह पर पहुंचने के लिए आपको कुछ दूरी गाड़ी से तय करने के साथ साथ कुछ पैदल चलना भी पड़ता है। यह पहाड़ की चढ़ाई होने के नाते थोड़ी मुश्किल जान पड़ती है पर वास्तव में बहुत ही रोमांचक है। यहां जाने के लिए आपको खुद को पहले से तैयार करना होगा।
भैरवगढ़ी मंदिर की यह चढ़ाई तीन से चार किमी की है, जो कि कीर्तिखाल से शुरू होती है, यह चढ़ाई सीधी और कठिन है जिसकी वजह से थकान तो होती ही है जगह जगह चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है। यह सब पता होते हुए भी मैंने तय कर लिया था कि इस जगह पर जाना ही जाना है। क्योंकि इस जगह पर मंदिर के अलावा जो आसपास का दृश्य और शान्त वातावरण है वह किसी को भी सम्मोहित कर सकता है।
मैं भी इस सम्मोहन से नहीं बच पाता हूं इसलिए मेरी यात्रा जो कि दिल्ली से शुरू हुई थी, पहले ऋषिकेश की तरफ पहुंची, थोड़े से विश्राम के पश्चात गट्टूघाट और चेलूसेन होते हुए कीर्तिखाल। गट्टूघाट नीलकंठ महादेव के रास्ते में आता है इसलिए एक बार को मन में आया कि वहां चलकर क्यों ना शिव के दर्शन कर लिया जाये पर समय का अभाव होने के नाते हम आगे बढ़ गए और चेलूसेन को क्रॉस करते हुए अपने नियत स्थान कीर्तिखाल पहुंच गए।
यह जगह प्राकृतिक रूप से काफी समृद्ध है और दिल्ली से काफी नजदीक भी, जो लोग दिल्ली से आते हैं उन्हें सबसे पहले कोटद्वार पहुंचना होता है फिर घुमखाल होते हुए कीर्तिखाल। यह पूरा का पूरा क्षेत्र पौड़ी गढ़वाल जिले के अंदर आता है जोकि पर्यटन के साथ साथ अपनी जैव विविधता के लिए भी जाना जाता है। मुझे इसी बात ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया।
हम इस जगह पर रुकना तो चाहते थे लेकिन हमारा पहला लक्ष्य लैंड्सडाउन था। इसलिए हमने सोचा कि सबसे पहले लैंड्सडाउन चलते हैं और फिर अगर वहां से फुरसत मिलती है तो कहीं और जाने के बारे में सोचेंगे और बिलकुल ऐसा ही किया। लैंड्सडाउन पहुंचकर ऐसा लगा कि किसी जन्नत में आ गए हैं। यहां का प्राकृतिक वातावरण इतना सुन्दर और सुखद है कि महिनों तक रुकने पर भी मन नहीं भरे लेकिन दो से तीन दिन में हमने सभी प्रमुख जगहों को देख लिया तो एक ख्याल भैरवगढ़ी मंदिर का भी आया।
कीर्तिखाल में मन्दिर की चढ़ाई शुरू करने से पहले गांव में कुछ लोग मिले जिन्होंने मुझे इस जगह के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें बताई। उन्होंने बताया कि भैरवगढ़ी गढ़वाल के 52 गढ़ो में से एक होने के कारण विशेष महत्व रखता है और यहां पर स्थित भैरवगढ़ी मंदिर यहाँ के लोगों की आस्था का केंद्र है, वैसे आपको बता दें कि भैरोगढ़ का वास्तविक नाम लंगूरगढ़ है।
एक सज्जन ने बताया कि गोरखा आर्मी ने लंगूरगढ़ क़िले को जीतने के लिए लगभग दो वर्ष तक संघर्ष किया था और तक़रीबन एक महीने तक चली लड़ाई के बाद उन्हें आखिरकार वापस जाना पड़ा था ! इस मंदिर को तमाम तरह की ऊर्जा और शक्तियों का केंद्र माना जाता है। थापा नाम के फौजी को जब यहां की शक्ति का बोध हुआ तो एक 40 किलो का ताम्रपत्र भेंट के रूप में अर्जित किया जो इस जगह पर आज भी मौजूद है।
कीर्तिखाल से मैंने जब भैरवगढ़ी मंदिर के लिए चढ़ाई शुरू किया तो सुबह के सात बज रहे थे। पूरा रास्ता काफी निचाट था और खूबसूरत होते हुए भी बार बार दुर्गमता का बोध करा रहा था। लेकिन अच्छी बात यह कि पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त था जिसकी वजह से थकान होने के बावजूद एक सहूलियत थी। सच कहूं तो यह जगह ट्रेकिंग, कैम्पिंग और नेचर वॉक के लिहाज़ से काफी महत्वपूर्ण है। बस जरूरत इस बात की है कि लोग इस तरह की पहल को बढ़ावा दें।
पर्यटन संबंधित गतिविधियों को बढ़ाया जाए और रहने खाने जैसी आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के उपाय किए जाएं। मुझे यह जगह काफी अच्छी लगी इसलिए यहां पहुंचकर अच्छा समय बिताया। हम चाहते तो वापस भी आ सकते थे लेकिन एक और दिन इसी जगह पर ठहरने का निर्णय लिया ताकि अपने कैम्पिंग के शौक को पूरा कर सकें और अगली सुबह हमने वापसी की सोची और कीर्ति खाल होते हुए हम दुबारा ऋषिकेश पहुंचे और फिर दिल्ली।
दो से तीन दिन का यह छोटा सा सफर काफी खूबसूरत और रोमांच से भरा हुआ था जो हमेशा हमेशा के लिए मेरी स्मृतियों में बस गया।
लेखक: संजय शेफर्ड, नई दिल्ली