पटना : भोजपुरी भाषा और संस्कृति को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। भोजपुरी फिल्म और संगीत के बाद अब भोजपुरी कैलेंडर भी बिहार में दस्तक देने जा रहा है। इसे तैयार किया है आरा के प्रसिद्ध चित्रकार और भोजपुरी कला के संरक्षणकर्ता संजीव कुमार और उनकी टीम ने। इस कैलेंडर का लोकार्पण 5 अप्रैल, शनिवार को बिहार के राजभवन में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा किया जाएगा।
भोजपुरी कैलेंडर का उद्देश्य
संजीव कुमार, जो भोजपुरिया पेंटिंग और कला के क्षेत्र में सक्रिय हैं, का मानना है कि यह कैलेंडर भोजपुरिया संस्कृति के संरक्षण और प्रसार में एक अहम भूमिका निभाएगा। इस कैलेंडर के माध्यम से भोजपुरी भाषा और उसकी परंपराओं को फिर से स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। हिंदी और अंग्रेजी कैलेंडर के साथ-साथ अब बिहारवासियों को भोजपुरी कैलेंडर का भी लाभ मिलेगा, जो इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाने का काम करेगा।
कैलेंडर में क्या खास है
इस भोजपुरी कैलेंडर का डिजाइन संजीव कुमार ने स्वयं तैयार किया है। इसमें मुख्य रूप से भोजपुरी में तारीखें दी गई हैं, लेकिन कैथी और देवनागरी लिपि में भी इसे प्रस्तुत किया गया है ताकि सभी वर्ग के लोग इसे आसानी से समझ सकें। इस कैलेंडर की खासियत यह है कि यह जनवरी से नहीं, बल्कि चैत (मार्च) से शुरुआत करता है, जो कि भोजपुरी पंचांग का हिस्सा है।
कैलेंडर पर भोजपुरिया संस्कृति का पूरा चित्रण किया गया है। ऊपर ब्रह्मा, विष्णु, महेश, लक्ष्मी और गणेश की तस्वीरें भोजपुरिया पेंटिंग शैली में दी गई हैं। इसके चारों ओर राशियों के चित्र हैं, और बीच में कृषकों की तस्वीरें हैं, जो भोजपुरिया समाज के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। अंत में सातों देवी जैसे शीतला, काली, वन देवी आदि की चित्रकारी भी भोजपुरी कला के तहत की गई है।
कैलेंडर का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
संजीव कुमार का कहना है, ‘भोजपुरिया संस्कृति को जीवित रखने के लिए और उसे बढ़ावा देने के लिए यह भोजपुरी कैलेंडर तैयार किया गया है। हमारा उद्देश्य यह है कि भोजपुरिया समाज के लोग, विशेष रूप से बिहारवासी, अपने घरों में इसे जगह दें ताकि हमारी संस्कृति और सभ्यता जीवित रहे। इसके साथ ही आने वाली पीढ़ी भी इसे अपनी धरोहर के रूप में स्वीकार करें’।
राज्यपाल का समर्थन
इस कैलेंडर का लोकार्पण राज्यपाल के हाथों होने जा रहा है, जो भोजपुरी संस्कृति के प्रति उनके समर्थन को भी दर्शाता है। यह आयोजन भोजपुरी समाज के लिए एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। इस पहल के जरिए न केवल भोजपुरी कैलेंडर की महत्ता बढ़ेगी, बल्कि भोजपुरी भाषा और संस्कृति को भी एक नई पहचान मिलेगी, जो आने वाली पीढ़ियों तक पहुंच सके। यह कैलेंडर भोजपुरी संस्कृति के संरक्षण में एक मील का पत्थर साबित होगा।