रांची : टेरर फंडिंग के मामले में आरोपित कारोबारी सुदेश केडिया को मंगलवार को झटका लगा जब झारखंड हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी। सुदेश केडिया ने अदालत में यह याचिका दायर की थी, जिसमें उसने 2018 में एनआईए की छापेमारी में उसके आवास और कार्यालय से बरामद 9 लाख 95 हजार रुपये वापस करने की मांग की थी। अदालत ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि उक्त रकम के बारे में पर्याप्त साक्ष्य नहीं है कि यह टेरर फंडिंग से संबंधित नहीं था।
टंडवा का है पूरा मामला
यह मामला चतरा जिले के टंडवा स्थित मगध और आम्रपाली कोल परियोजनाओं से जुड़ा हुआ है, जो टेरर फंडिंग की गतिविधियों से संबंधित है। सुदेश केडिया ने कोर्ट में दावा किया था कि एनआईए द्वारा जब्त किए गए 9 लाख 95 हजार रुपये उनके व्यवसाय का हिस्सा थे, जो मजदूरों की सैलरी देने के लिए थे, और यह टेरर फंडिंग का पैसा नहीं था। हालांकि, हाई कोर्ट ने उनके तर्क को स्वीकार नहीं किया और जब्त की गई रकम को वापस करने से मना कर दिया।
गौरतलब है कि यह मामला 2018 में शुरू हुआ था, जब एनआईए ने चतरा जिले के टंडवा थाना क्षेत्र में स्थित मगध और आम्रपाली कोल परियोजनाओं से जुड़ी टेरर फंडिंग गतिविधियों की जांच शुरू की थी। एनआईए ने टंडवा थाना में 2/2016 कांड को फरवरी 2018 में टेकओवर किया था। जांच के दौरान एनआईए ने पाया कि सीसीएल, पुलिस, उग्रवादी और शांति समिति के बीच समन्वय से टेरर फंडिंग हो रही थी। इसके तहत TPC को लेवी दी जा रही थी। इस फंडिंग को सुनिश्चित करने के लिए मगध और आम्रपाली कोल परियोजना से कोयला ढुलाई का ठेका लिया गया था।
17 आरोपियों पर एनआईए ने दाखिल की हे चार्ज शीट
एनआईए ने इस मामले में 17 आरोपितों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया था, जिनमें कारोबारी सुदेश केडिया, महेश अग्रवाल (आधुनिक पावर के तत्कालीन महाप्रबंधक), विनीत अग्रवाल (बीकेबी ट्रांसपोर्ट के उपाध्यक्ष), सोनू अग्रवाल, सुधांशु रंजन उर्फ छोटू सिंह, अजय सिंह, और कई अन्य आरोपितों के नाम शामिल हैं।
इन आरोपितों के खिलाफ आरोप गठित हो चुके हैं और मामले की सुनवाई रांची की एनआईए की विशेष अदालत में जारी है। इस मामले में टीपीसी उग्रवादी संगठन के जोनल कमांडर आक्रमण उर्फ रवींद्र गंझू, क्षेत्रीय कमांडर ब्रजेश गंझू उर्फ गोपाल सिंह भोक्ता और कई अन्य उग्रवादी भी आरोपित हैं। इन आरोपियों पर टेरर फंडिंग के आरोप हैं, और उन्हें जल्द ही गिरफ्तार किया जा सकता है। एनआईए की जांच में यह भी सामने आया कि इस टेरर फंडिंग में सीसीएल के अधिकारियों और पुलिस कर्मियों की भी मिलीभगत थी, जो कि इस काले धन के लेन-देन में शामिल थे।