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बिहार की राजनीति में संयोग या प्रयोग : पहले CM नीतीश कुमार पहुंचे राजभवन, फिर सुशील मोदी,और तेज हो गयी राजनीतिक चर्चा

by Rakesh Pandey
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स्टेट डेस्क, पटना: बिहार की राजनीति कब कौन सी करवट ले, कोई नहीं जानता। लिहाजा राज्य के नेताओं की हर छोटी-बड़ी हरकत पर मीडिया की नजर रहती है। बुधवार की सुबह राज्य में अचानक राजनीति चर्चा तेज हो गयी। कहा गया कि सीएम नीतीश कुमार और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील मोदी दोनों राजभवन पहुंचे हैं। हालांकि बाद में यह साफ हो गया कि दोनों अलग-अलग समय और अलग-अलग काम से राजभवन गये थे। राजभवन से बाहर आने के बाद सुशील मोदी ने मीडिया से कहा कि राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के साथ उसकी मुलाकात पहले से तय थी। यह महज संयोग है कि हम जिस समय राजभवन गये, मुख्यमंत्री वहां से निकल रहे थे। इसका कोई और मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए।

सुबह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजभवन पहुंचने। इसके बाद सुशील मोदी भी राजभवन पहुंच गये। इसके बाद कयासों की राजनीति तेज हो गयी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजभवन के राजेंद्र मंडपम में चल रहे निर्माण कार्य को देखने गये थे। उन्होंने राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर के साथ निर्माण की समीक्षा भी की। बताया जा रहा है कि बिहार में 10 जुलाई से पहले मंत्रिमंडल विस्तार होने वाला है। शपथ ग्रहण समाराेह राजभवन में होना है। इसी को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजभवन गये थे। अगले महीने के पहले पखवारे से बिहार विधानमंडल का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। माना जा रहा है कि इससे पहले मंत्रिमंडल गठन की प्रक्रिया पूरी कर ली जायेगा। मुख्यमंत्री के राजभवन से निकलने के बाद बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी राजभवन पहुंचे थे।

क्या बोले सुशील मोदी

राजभवन में जाने को लेकर सुशील मोदी ने कहा कि राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्सेकर से मेरी शिष्टाचार भेंट थी। हम दोनों कॉलेज के दिनों में विद्यार्थी परिषद के सदस्य रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपाल बेेहतर तरीके से विश्वविद्यालयों को चला रहे हैं। उसी की बधाई देने आया था। सुशील मोदी ने कहा कि मेरे आने से पहले नीतीश कुमार आये थे।

विपक्षी एकता पर टिकी की देश की राजनीतिक तस्वीर

हाल ही में बिहार में विपक्षी नेताओं की सबसे बड़ी बैठक हुई। इसके केंद्र में नीतीश कुमार रहे। विपक्षी एकता पर देश की राजनीतिक तस्वीर टिकी है। अगर मौजूदा समीकरण में किसी तरह का कोई बदलाव होता है तो पूरी तस्वीर बदल सकती है। नीतीश कुमार का विपक्ष के साथ खड़े रहना अब अनिवार्य शर्त बन गया है। लिहाजा उनकी हर गतिविधि पर बिहार ही नहीं पूरे देश की निगाहें हैं।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विपक्षी एकता अभियान से जुड़ी बैठक के बाद यह तय माना जा रहा है कि बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद की वापसी हो चुकी है। चर्चा है कि जमीन से जुड़े नेता के रूप में पहचान रखने वाले लालू प्रसाद अपने विरोधियों को उनकी जमीन बताने के लिए फिर से तैयार हैं।

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इस महीने की 23 तारीख को हुई बैठक के बाद उन्होंने कहा था कि ‘ हम पूरी तरह से ठीक हो गए हैं और अब नरेंद्र मोदी को बढ़िया से ठीक करने का समय आ गया है।’ उनके इस बयान से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ अब वे खुलकर सामने आ गए हैं। मोदी काल में भी लालू प्रसाद भाजपा और संघ के सबसे विश्वसनीय विरोधियों में शुमार हैं। बिहार में आज भी वे उतने ही प्रासंगिक हैं जितना 1990 के दशक में थे। लंबी बीमारी और कानूनी पेचीदगियों के बीच फंसे लालू प्रसाद ने बिहार में अपनी विश्वसनीयता और प्रासंगिकता आज भी बरकरार रखी है। यही आत्मविश्वास उन्हें भाजपा गठबंधन को सीधे- सीधे चुनौती देने का साहस देती है। वहीं राजद ने भी केंद्र सरकार पर लगातार पहार करना जारी रखा है।

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