Raipur / Jamshedpur : छत्तीसगढ़ से एक दुखद खबर सामने आई है। अपनी हास्य कविताओं और तीखे व्यंग्य से देशभर के लोगों के दिलों में जगह बनाने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे का निधन हो गया है। पारिवारिक सूत्रों के अनुसार, डॉ. दुबे का रायपुर के एक निजी अस्पताल (ACI) में लंबे समय से इलाज चल रहा था। आज दोपहर हृदय गति रुक जाने के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से पूरे छत्तीसगढ़ सहित देश के साहित्यिक और राजनीतिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। बीजेपी नेता उज्जवल दीपक समेत कई साहित्यकारों और राजनेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
जमशेदपुर समेत झारखंड के कई जिले भी दे चुके थे प्रस्तुति
कवि डॉ. सुरेंद्र दूबे को जमशेदपुर व झारखंड के अन्य शहरों के लोग व खासकर साहित्य प्रेमी कभी नहीं भूलेंगे। यहां कई हास्य कवि सम्मेलनों में जमशेदपुरवासियों को कवि सुरेंद्र दूबे को सुनने का अवसर मिल चुका है। उनके चुटीले अंदाज, उनकी कविताएं आज भी यहां के साहित्य प्रेमियों की जुबां पर है। शहर के साहित्य प्रेमियों ने उनके निधन पर गहरा शोक जताया है। साथ ही इसे साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।
डॉ. सुरेन्द्र दुबे अपनी खास शैली, चुटीले अंदाज और सामाजिक विसंगतियों पर किए गए तीखे व्यंग्य के लिए जाने जाते थे। वे मंचों पर अपनी कविताओं से श्रोताओं को न केवल हंसाते थे, बल्कि समाज की गहरी सच्चाइयों को भी बड़े ही सहज तरीके से उजागर करते थे। उनकी कविताएं सुनने में भले ही गुदगुदाती थीं, लेकिन उनके पीछे एक गंभीर संदेश छिपा होता था, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देता था।
डॉ. दुबे पेशे से एक कुशल आयुर्वेदाचार्य थे, लेकिन देश ने उन्हें मुख्य रूप से एक लोकप्रिय कवि, व्यंग्यकार और समाजचिंतक के रूप में पहचाना। वे विभिन्न टीवी चैनलों के कवि सम्मेलनों में एक जाना-माना और पसंदीदा चेहरा थे, जिनकी कविताओं का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे। उनकी साहित्यिक सेवाओं को देखते हुए, 2010 में उन्हें भारत सरकार द्वारा प्रतिष्ठित पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था।
जन्म और पृष्ठभूमि
डॉ. सुरेन्द्र दुबे का जन्म 8 जनवरी 1953 को छत्तीसगढ़ (तत्कालीन मध्य प्रदेश) के बेमेतरा, दुर्ग में हुआ था। आयुर्वेद के चिकित्सक होने के साथ-साथ, उन्होंने अपनी हास्य कविताओं के माध्यम से आम लोगों के साथ एक गहरा जुड़ाव स्थापित किया था।
लेखनी और मंचीय प्रस्तुति
डॉ. दुबे ने अपने जीवनकाल में पाँच महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना की, जिनमें ‘मिथक मंथन’, ‘दो पांव का आदमी’ और ‘सवाल ही सवाल है’ प्रमुख हैं। उन्होंने हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषाओं में मंचों और टेलीविजन पर अपनी हास्य कविताओं का पाठ किया, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया। वे कई लोकप्रिय टीवी कवि सम्मेलनों में नियमित रूप से अतिथि के तौर पर शामिल होते रहे थे।
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. दुबे को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था। 2008 में उन्हें का.का. हाथ्सरी द्वारा “हास्य रत्न” पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इसके बाद, 2010 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री से विभूषित किया, जो उनके साहित्यिक योगदान का एक बड़ा सम्मान था।
मंच शैली और प्रसिद्ध कविताएं
डॉ. दुबे व्यंग्य, हास्य और जनोपयोगी संदेश देने वाली कविताओं की अपनी अनूठी शैली के लिए प्रसिद्ध थे। उनकी कविताओं में समाज की कुरीतियों और विसंगतियों पर गहरा कटाक्ष होता था, जिसे वे मनोरंजक तरीके से प्रस्तुत करते थे। सोशल मीडिया और यूट्यूब पर उनकी कविताओं के कई वीडियो, जैसे “हँसी नहीं रोक पाओगे” शीर्षक से वायरल हुए हैं, जिनकी लाइव रिकॉर्डिंग को लाखों लोगों ने देखा और सराहा है।
छत्तीसगढ़ से राष्ट्रीय मंच तक
डॉ. सुरेन्द्र दुबे ने छत्तीसगढ़ के बेमेतरा से निकलकर रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कोटा जैसे शहरों के अलावा राष्ट्रीय स्तर के कवि सम्मेलनों में भी अपनी प्रतिभा का जादू बिखेरा था। उनकी कमी हमेशा महसूस की जाएगी।