रांची: Jharkhand Politics: झारखंड की राजनीति में गठबंधन का समन्वय और सहयोग हमेशा से अहम रहा है। इसी समन्वय को मजबूत बनाए रखने के लिए कांग्रेस ने एक चौंकाने वाला लेकिन रणनीतिक फैसला लिया है। संथाल परगना में कांग्रेस द्वारा शुरू की गई पदयात्रा और रैलियों को अचानक स्थगित कर दिया गया है।
झामुमो का गढ़ है संथाल परगना
इस निर्णय को झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के साथ बेहतर तालमेल की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। संथाल परगना झामुमो का पारंपरिक गढ़ माना जाता है और कांग्रेस की तेज़ राजनीतिक सक्रियता से वहां अंदरूनी नाराजगी उत्पन्न हो गई थी।
झामुमो की नाराजगी को गंभीरता से लिया कांग्रेस ने
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी के. राजू के निर्देश पर कांग्रेस ने संथाल परगना में बड़े स्तर पर पदयात्रा और रैलियों की शुरुआत की थी। इस आयोजन का उद्देश्य पार्टी की उपस्थिति को मजबूत करना और कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करना था।
डॉ इरफान अंसारी की रैली के बाद बढ़ी असहजता
जामताड़ा में राज्य सरकार के मंत्री डॉ. इरफान अंसारी की मेज़बानी में हुई एक भव्य रैली में कांग्रेस के प्रमुख नेता शामिल हुए, जिससे यह संदेश गया कि पार्टी संथाल परगना में खुद को स्थापित करने की दिशा में गंभीर है।
लेकिन, इसी सक्रियता ने गठबंधन सहयोगी झामुमो को असहज कर दिया। संथाल परगना में कांग्रेस की अचानक हुई आक्रामक राजनीतिक गतिविधियों से झामुमो के भीतर नाराजगी पनप गई।
शीर्ष नेतृत्व ने समन्वय को दी प्राथमिकता
स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने झामुमो की नाराजगी को भांपते ही दिल्ली में पार्टी आलाकमान को स्थिति से अवगत कराया। कांग्रेस नेतृत्व ने त्वरित निर्णय लेते हुए सभी पदयात्राओं और रैलियों को तत्काल स्थगित करने का आदेश जारी कर दिया गया।
गठबंधन में भरोसे की मिसाल
यह कदम गठबंधन में विश्वास, तालमेल और साझा उद्देश्य को बनाए रखने की एक मजबूत मिसाल है। कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि वर्तमान में ऊर्जा और संसाधनों को अनावश्यक रूप से खर्च करने के बजाय, गठबंधन की मजबूती और आगामी चुनावों पर फोकस जरूरी है।
गठबंधन धर्म का उदाहरण बना कांग्रेस का फैसला
झारखंड की राजनीतिक जमीन पर यह निर्णय गठबंधन धर्म की मिसाल बन गया है। झामुमो के गढ़ संथाल परगना में कांग्रेस ने खुद को पीछे खींचकर यह स्पष्ट कर दिया कि वह गठबंधन के हितों को सर्वोपरि मानती है।
पारंपरिक जनाधार पर रहेगा कांग्रेस का फोकस
इस कदम से न केवल झामुमो के साथ बढ़ती तल्खी पर विराम लगा, बल्कि आपसी भरोसे को और गहरा किया गया। कांग्रेस अब उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगी, जहां उसका जनाधार पारंपरिक रूप से मजबूत है, जिससे सहयोगी दलों के साथ किसी टकराव की संभावना नहीं रहेगी।
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