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पुणे/Dabholkar Murder Case: डॉ. दाभोलकर हत्या प्रकरण में शुक्रवार को न्यायालय ने सनातन संस्था के साधक को दाषमुक्त करार दिया। सनातन संस्था को हिन्दू आतंकवादी सिद्ध करने का ‘अर्बन नक्सलवादियों’ का षडयंत्र विफल हुआ है। सनातन संस्था के राष्ट्रीय प्रवक्ता चेतन राजहंस ने बताया कि इस मामले में पुणे स्थित सीबीआई के विशेष न्यायालय ने सनातन संस्था के साधक विक्रम भावे और हिंदू जनजागृति समिति से संबंधित डॉ. वीरेंद्रसिंह तावडे को दोष मुक्त किया। इसके साथ ही हिंदू विधिज्ञ परिषद के वकील संजीव पुनाळेकर को भी दोष मुक्त किया।
इतना ही नहीं अपितु अपराध अंतर्गत लगाया गया आतंकवादी कार्यवाही से संबंधित UAPA कानून भी निरस्त किया है। यह UAPA कानून लगाकर सनातन संस्था को आतंकवादी संगठन घोषित कर बंदी लगाने का षडयंत्र था, जो इस निर्णय से विफल हो गया है ।
इस प्रकरण मे दोषी घोषित किए गए हिंदुत्ववादी कार्यकर्ता सचिन अंदुरे और शरद कळसकर इनका सनातन संस्था से सीधा संबंध नही है, ना वे सनातन संस्था के पदाधिकारी है, पर ऐसी संभावना है कि उन्हें भी इस प्रकरण में फंसाया गया है। इसलिए इस प्रकरण के वकील ने जिस प्रकार अन्य को दोष मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इस प्रकार उच्च न्यायालय में यह प्रकरण ले जाकर इन हिंदुत्वनिष्ठों को भी निर्दोष मुक्त करने के लिए संघर्ष करेंगे, ऐसा आज उन्होंने घोषित किया है। हमें विश्वास है कि मुंबई उच्च न्यायालय में सचिन अंदुरे और शरद कळसकर दोष मुक्त होंगे।
इस प्रकरण में आरोपपत्र में अलग-अलग और निरंतर परिवर्तित भूमिकाएं जांच संस्थाओं ने प्रस्तुत की। इतना ही नहीं अपितु आरोपी को ढूंढने के नाम पर ‘प्लेनचेट’ के माध्यम से सनातन संस्था दोषी है, ऐसा बुलवाया गया। तदुपरांत सर्वप्रथम सनातन संस्था के विनय पवार और सारंग अकोलकर को हत्यारा कहा गया, परंतु जिनसे पिस्तौल मिली थी, उन मनीष नागोरी और विकास खंडेलवाल को क्लीनचिट दी गई। उसके बाद भूमिका प्रस्तुत की गई कि सचिन अंदुरे और शरद कळसकर ने हत्या की है। इस प्रकरण में गवाहों की भूमिका भी शंका निर्माण करने वाली थी।
गवाहों ने पहले विनय पवार और सारंग अकोलकर ही हत्यारे है ऐसी पहचान की। गवाहों ने न्यायालय में स्वीकार किया कि अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के कार्यकर्ता उन्हें न्यायालय में आकर मिलते थे, उनके साथ बैठकर खाना खाते थे। गवाहों की इस कृति से प्रश्न निर्माण होता है ‘क्या उन पर दबाव था ?’
इस प्रकरण में अंनिस का केवल गवाहों से संबंध होना ही सिद्ध नहीं हुआ, अपितु डॉ. दाभोलकर के परिवार ने जांच संस्थाओं पर भी दबाव निर्माण किया। फलस्वरूप बैरपूर्वक सनातन संस्था की जांच की गई। विगत 11 वर्ष में सनातन के 1600 साधकों की जांच की गई। सनातन के आश्रमों पर छापे मारे गए। इस प्रकरण के मास्टरमाइंड को खोजने के नाम पर केस प्रलंबित रखा गया।
सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में स्पष्ट लिखा है कि सनातन संस्था के सभी पदाधिकारियों की जांच की गई, पर उनमें से कोई भी दोषी नहीं पाया गया। आज 11 वर्ष के उपरांत विलंब से ही सही, परंतु सनातन संस्था को न्याय प्राप्त हुआ है।
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