रांची : झारखंड के पलामू सेंट्रल जेल में माओवादी कमांडर सीताराम रजवार की मौत हो गई है। इसके साथ ही पुलिस और सुरक्षाबलों के एक सिरदर्द का भी अंत हो गया। वह 13 लाख का इनामी था। उस पर झारखंड और बिहार में 51 से अधिक हमलों का आरोप था। उसकी गिरफ्तारी अगस्त महीने में हुई थी और अब उसकी अचानक मौत ने सुरक्षाबलों और स्थानीय समुदाय के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
गिरफ्तारी और जेल में स्थिति
सीताराम रजवार को पलामू पुलिस ने एंटी नक्सल अभियान के दौरान गिरफ्तार किया था। रजवार ने तीन दशकों तक भाकपा माओवादी में सक्रिय रहते हुए कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया था। उसकी गिरफ्तारी के समय पुलिस ने यह दावा किया था कि वो नक्सल गतिविधियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। उसके खिलाफ झारखंड में 10 लाख और बिहार में 3 लाख का इनाम रखा गया था जो उसकी करतूतों को दर्शाता है।
मौत की खबर
रजवार की तबीयत अचानक खराब हो गई, जिसके बाद उसे मेदिनीराय मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। जेलर प्रमोद कुमार ने पुष्टि की कि रजवार की स्थिति बिगड़ने के बाद उल्टी होने पर उसे अस्पताल भेजा गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। जेल प्रबंधन ने रजवार के परिवार को सूचित किया और दंडाधिकारी की उपस्थिति में उसके शव का पोस्टमार्टम कराया।
माओवादी गतिविधियों का इतिहास
सीताराम रजवार पर झारखंड और बिहार में कई घातक नक्सली हमलों का आरोप था। वह 2021-22 में बिहार के औरंगाबाद में माओवादी जन अदालत लगाकर एक ही परिवार के दो सदस्यों की हत्या कर चुका था। इससे पहले, 2006-07 में माली थाना में हुए हमले में छह पुलिस जवान शहीद हुए थे। यह हमला न केवल पुलिस के लिए, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी एक बड़ा आघात था, क्योंकि माओवादियों ने इस दौरान थाने से सभी हथियार लूट लिए थे।
रजवार की भूमिका और माओवादी आंदोलन
रजवार की सक्रियता भाकपा माओवादी संगठन में उसे दुर्दांत बनाती थी। उसकी रणनीतियों और नेतृत्व में माओवादियों ने कई बड़ी घटनाओं को अंजाम दिया था, जो न केवल सुरक्षा बलों के लिए चुनौती थी, बल्कि समाज में भय और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करती थी। सीताराम रजवार की मौत ने कई लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या माओवादी गतिविधियों को समाप्त करने के लिए सुरक्षा बलों का प्रयास प्रभावी हो रहा है।
उसकी गतिविधियों ने न केवल उसके गिरोह को प्रभावित किया, बल्कि समाज के अन्य वर्गों में भी भय का माहौल पैदा किया। अब जब रजवार की मौत हो गई है, तो यह देखना होगा कि क्या उसकी अनुपस्थिति माओवादी संगठन के अन्य सदस्यों को कमजोर कर देगी या फिर माओवादियों का संघर्ष और अधिक तीव्र हो जाएगा।
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