नई दिल्ली : दिल्ली से संचालित एक अंतरराज्यीय फर्जी डिग्री रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है, जिसका मास्टरमाइंड सिर्फ 10वीं पास है। वह छात्रों को मेडिकल, इंजीनियरिंग और एमबीए जैसी प्रोफेशनल उच्च शिक्षा की फर्जी डिग्रियां बांट रहा था। सामान्य बीए, एमए की डिग्री के करीब पांच हजार से अधिक डिग्रोयों के सर्टिफिकेट बांट चुका है।
विशेष पुलिस आयुक्त देवेश चंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि गिरोह को एक गुप्त सूचना पर गई जांच के बाद पकड़ा है। गिरोह ने देश के करीब 20 प्रमुख यूनिवर्सिटियों और शिक्षण संस्थानों के नाम का दुरुपयोग किया है। इस पूरे रैकेट का भंडाफोड़ करने वाली क्राइम ब्रांच की जांच में कुछ फर्जी डिग्रियों के ऐसे रजिस्ट्रेशन नंबर भी मिले हैं, जो संबंधित संस्थान के रजिस्टर में दर्ज तो थे, लेकिन उनका कोई वैध रिकॉर्ड/इतिहास मौजूद नहीं है। इससे आशंका गहराई है कि कुछ शिक्षण संस्थानों के कर्मचारी भी इस रैकेट में शामिल हैं।
फर्जी डिग्री बेचने वाला निकला 10वीं पास
गिरफ्तार आरोपी विक्की हरजानी सिर्फ 10वीं पास है लेकिन उसने ‘परमहंस विद्यापीठ’ नामक संस्था खोलकर दिल्ली के एनएसपी और रोहिणी इलाके में मेडिकल (बीएएमएस), इंजीनियरिंग (बीटेक), बीएड, एमबीए जैसी डिग्रियों की फैक्ट्री बना रखी थी। क्राइम ब्रांच की आईएससी टीम ने उसके पास से 75 फर्जी प्रमाणपत्र, मोबाइल फोन, लैपटॉप और प्रचार सामग्री बरामद की। पूछताछ में उसके जरिए काम कर रहे शिक्षा माफिया नेटवर्क की परतें खुलने लगीं।
गिरफ्तारी व जब्त सामग्री
पुलिस के इस कार्रवाई में विक्की हरजानी, विवेक गुप्ता, सतबीर सिंह, नारायण जी और अवनीश कंसल नामक आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। इनके कब्जे से पुलिस ने 228 फर्जी मार्कशीट, 27 फर्जी डिग्री सर्टिफिकेट, 20 माइग्रेशन सर्टिफिकेट, 5000 से ज्यादा डिजिटली तैयार फर्जी डिग्री की फाइलें और 6 लैपटॉप, 20 मोबाइल फोन बरामद की है।
शिक्षण संस्थानों की संदिग्ध भूमिका भी आई सामने
जांच में सामने आया कि कुछ प्रमाणपत्रों के रजिस्ट्रेशन नंबर संबंधित यूनिवर्सिटी रजिस्टर में मौजूद तो थे, लेकिन उनका कोई छात्र रिकॉर्ड नहीं मिला। इससे शक है कि अंदर के कर्मचारी फर्जी डिग्रियों के लिए रिकॉर्ड मैनिपुलेट कर रहे थे या खाली एंट्री नंबरों का सौदा किया जा रहा था। पुलिस अब इन संस्थानों के प्रशासनिक व तकनीकी कर्मचारियों की भूमिका की भी जांच कर रही है।
सोशल मीडिया पर दिलाते थे डिग्री
गिरोह के द्वारा वाट्सएप, टेलीग्राम, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर डिग्री दिलाने के विज्ञापन दिया जाता था। साथ ही गिरोह ने प्रमुख संस्थानों के सामने अपने सेंटर खोल रखे थे और जो छात्र वहां एडमिशन के लिए आते उन्हें फंसाने का काम करते थे। इसके लिए छात्रों से 30,000 से 1 लाख तक वसूल कर बैकडेट में डिग्री बना कर दिया जाता था। प्राथमिक जांच में आया है कि दस्तावेज़ इतने असली लगते कि सरकारी नौकरियों तक में उपयोग हो चुका है, जिसकी जांच जारी है।