New Delhi: देश के पूर्व सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) लेफ्टिनेंट जनरल अनिल कुमार भट्ट (सेवानिवृत्त) ने आधुनिक युद्ध के बदलते आयामों पर महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार ड्रोन ने वर्तमान युद्ध में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित कर ली है और भविष्य में यह अंतरिक्ष तथा साइबर क्षेत्रों के साथ मिलकर सैन्य संघर्षों की तस्वीर पूरी तरह से बदल देगा। डोकलाम संघर्ष के दौरान अभियानों का संचालन कर चुके लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने सोशल मीडिया पर युद्ध को लेकर होने वाली बहसों पर भी अपनी राय रखी। कुछ सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा सैन्य कार्रवाई के चार दिनों में समाप्त होने पर असंतोष व्यक्त किया गया था और इसे पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) को वापस लेने का अवसर माना जा रहा था।
इस संदर्भ में लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने स्पष्ट किया कि युद्ध अंतिम विकल्प होना चाहिए और इसे जल्दबाजी में नहीं छेड़ा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत ने अपने रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है। जून 2020 में सेवानिवृत्त होने के बाद निजी अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र के विकास में मार्गदर्शन कर रहे भट्ट ने कहा, “मैं स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूं कि युद्ध करना या पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) को वापस लेना जैसे निर्णय बहुत सोच-समझकर लेने होते हैं। इस बार ऐसी कोई तात्कालिक योजना नहीं थी। हालांकि, भविष्य में यदि ऐसी आवश्यकता पड़ती है, तो भारतीय सेना पूरी तरह से तैयार है।”
डीजीएमओ के रूप में लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट सैन्य पदानुक्रम में एक उच्च पद पर थे, जिनकी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना था कि सशस्त्र बल हर समय अभियानों के लिए तैयार रहें। सेना प्रमुख को सीधे रिपोर्ट करने वाले डीजीएमओ तात्कालिक और दीर्घकालिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके साथ ही, वह अन्य सेनाओं, नागरिक और अर्धसैनिक सुरक्षा बलों के साथ भी समन्वय स्थापित करते हैं। संकट और बढ़ते तनाव के समय में अपने समकक्षों से संवाद करने की जिम्मेदारी भी डीजीएमओ की ही होती है। वर्तमान में लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई इस पद पर कार्यरत हैं।
2017 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के सिक्किम सेक्टर के पास डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर भारत और चीन के बीच 73 दिनों तक चले सैन्य गतिरोध के दौरान लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ही डीजीएमओ थे। सेना में 38 वर्ष बिताने वाले भट्ट ने अपने देशवासियों से आग्रह करते हुए कहा, “मैं सभी से यही कहूंगा कि युद्ध एक अत्यंत गंभीर विषय है और एक राष्ट्र तभी युद्ध के लिए तैयार होता है जब सभी संभावित विकल्प समाप्त हो जाते हैं। हमारे पास मौजूदा संकट के समय युद्ध के अतिरिक्त अन्य विकल्प मौजूद थे, और हमने उन्हीं को प्राथमिकता दी।”
नवीनतम संघर्ष में ड्रोन की भूमिका पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि मानवरहित हवाई यानों ने युद्ध के स्वरूप को पूरी तरह से बदल दिया है। दुनिया की सेनाओं ने इस पर तब गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया जब अजरबैजान को तुर्किए निर्मित ड्रोन की मदद से आर्मेनिया के खिलाफ जीत मिली। तुर्किए ने पाकिस्तान को भी ड्रोन সরবরাহ किए थे, जिनमें से कुछ को उसने निगरानी के लिए भारतीय वायु क्षेत्र में भेजा था। लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने इस बात पर सहमति जताई कि अपेक्षाकृत सस्ते ड्रोन (लगभग दो लाख रुपये की लागत वाले) 2017 और 2020 के अजरबैजान-आर्मेनिया युद्धों में 20-30 करोड़ रुपये के बख्तरबंद टैंकों को नष्ट करने में सक्षम थे।
उन्होंने आगे बताया कि युद्ध के मैदान में दो और नए तत्व जुड़ गए हैं – अंतरिक्ष और साइबर क्षेत्र। भट्ट ने कहा कि अंतरिक्ष क्षेत्र भविष्य के युद्ध के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि उपग्रह न केवल मिसाइलों और विमानों को उनके लक्ष्यों तक पहुंचाने में मदद करते हैं, बल्कि खुफिया जानकारी जुटाने और निगरानी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने बताया कि भारत के पास निगरानी उद्देश्यों के लिए नौ या दस सैन्य उपग्रह हैं और अंतरिक्ष आधारित निगरानी के लिए 52 उपग्रहों का एक समूह स्थापित करने की योजना है। लेफ्टिनेंट जनरल भट्ट ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान को भारतीय धरती पर होने वाले किसी भी आतंकवादी कृत्य का करारा जवाब देने की चेतावनी देकर उसके साथ निपटने के लिए एक नई सीमा रेखा खींच दी है।