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क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड? जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक…

by The Photon News Desk
Electoral Bond
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सेंट्रल डेस्क: Electoral Bond इन दिनों फिर चर्चा में है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bond को असंवैधानिक करार दिया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय बेंच ने कहा कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया सभी पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी छह मार्च तक चुनाव आयोग को दे।

चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे। अभी जो बांड कैश नहीं हुए हैं राजनीतिक दल उसे बैंक को वापस करें।

Electoral Bond  : क्या-क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच का यह सर्वसम्मत फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने दो नवंबर, 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निर्वाचन आयोग स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और राजनीतिक दलों से फंड का आंकड़ा ले।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से पूछा था कि हमारे आदेश के बावजूद 2019 के बाद कोई डेटा क्यों नहीं दाखिल किया गया। कोर्ट ने कहा था कि मौजूदा योजना में खामियां हैं। विधायिका चाहे तो और ज्यादा पारदर्शिता वाली योजना ला सकती है। कोर्ट ने कहा था कि संतुलन बनाने का काम कार्यपालिका को करना है ना कि न्यायपालिका को।

अटार्नी जनरल ने हलफनामे में बांड को बताया था जायज

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल ने कहा था कि यह मुद्दा न्यायिक समीक्षा का नहीं है और न ही ये ऐसा विषय है जिस पर कोर्ट दिशा-निर्देश जारी करे। इस मसले पर संसद में बहस होनी चाहिए। अटार्नी जनरल ने अपने हलफनामे में कहा था कि Electoral Bond किसी भी मौजूदा अधिकार का उल्लंघन नहीं करता और यह योजना खुद ही गोपनीयता प्रदान करती है।

हलफनामे में कहा गया था कि इलेक्टोरल बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19) (2) के तहत जायज है। इस अनुच्छेद में केंद्र सरकार मौलिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगा सकती है। पांच सदस्यीय संविधान बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे।

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