Home » Electoral Bond मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को हाई कोर्ट से मिली राहत, अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को

Electoral Bond मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को हाई कोर्ट से मिली राहत, अगली सुनवाई 22 अक्टूबर को

by Reeta Rai Sagar
White Paper UPA
WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now
Instagram Follow Now

बेंगलुरु : कर्नाटक हाई कोर्ट ने इलेक्टोरेल बॉन्ड मामले (Karnataka High Court on Electoral Bond) में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को थोड़ी राहत दी है। फिलहाल कोर्ट ने इस मामले की जांच पर रोक लगा दी है। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की सिंगल बेच ने कहा है कि इस केस की जांच के लिए कुछ और अहम तथ्य मौजूद होने चाहिए, जैसे धमकी देने या डराने की शिकायत पीड़ित व्यक्ति की ओर से की जानी चाहिए।

अगली सुनवाई 22 अंक्टूबर को

आगे अदालत ने भारतीय न्याय संहिता (Indian Code of Justice) धारा 286 (जबरन वसूली से संबंधित) का हवाला देते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से ऐसी कोई धमकी नहीं दी गई है। अगली सुनवाई तक अदालत ने अंतरिम आदेश जारी कर रोक लगा दी है। आगे इस मामले की सुनवाई 22 अक्टूबर को होनी है।

वित्त मंत्री इस्तीफा देंः कांग्रेस

इस मामले में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण (Finance Minister Nirmala Sitaraman) के खिलाफ याचिका दायर करने वाले व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि प्रवर्तन निदेशालय ED समेत कई जांच एजेंसियां उन्हें छापे की धमकी देकर जबरन इलेक्टोरेल बॉन्ड खरीदने का दबाव डाल रही हैं। दूसरी ओर मामले के सह-आरोपी कर्नाटक में BJP के पूर्व प्रमुख नलिन कुमार कतील ने भी हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इस मामले में कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी निर्मला सीतारमण और ईडी पर निशाना साधते हुए कहा था कि सीतारमण को नैतिक आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए।

क्या है मामला

बेंगलुरु की कोर्ट ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। मामला Electoral Bond के जरिए जबरन वसूली से जुड़ा है। गौरतलब है कि धारा 17 (A) लोक सेवकों को बेवजह की जांच से सुरक्षा देने के लिए होती है। इस प्रावधान को संविधान में अमेंडमेंट के जरिए 26 जुलाई 2018 को जोड़ा गया था। MUDA मामले में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर भी इसी धारा के तहत जांच की जा रही है। फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्टोरेल बॉन्ड को Unconstitutional बताकर रद्द कर दिया था।

कोर्ट का मानना था कि यह आम नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन करती है। 2018 में केंद्र सरकार द्वारा इस स्कीम की शुरुआत की गई थी। इस स्कीम को शुरू करने के पीछे मकसद राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जगह इसे रिप्लेस करना था, जिससे ट्रांसपेरेंसी बनी रहे।

Related Articles