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ढूंढ लेना

by Rakesh Pandey
ढूंढ लेना
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1.

ढूंढ लेना तुम मुझे ,मेरे खोने से पहले
खेल के इस रेल में अब समय का चक्र छूट चुका है
लुका छिपी के बीच छलिया , निगोड़ा , मुआं माधव उतर आया है
देखो……

फिर कातर नजरों से कात रहा है सूर्य से सूत
आज फिर दिन में रात का साया है
भेड़िये अब भौंकते हैं शेरों पर
कुत्ते ने सांप की बांबी में सिर छुपाया है

ध्यान रहे की अब युद्ध तीरों से नहीं लड़े जाते
ये भी की अब नाकाफ़ी है जमीं शत्रु को पाटने की ख़ातिर
आकाश – जल – पर्वत- हिम सबमें आक्रोश समाया है

तुम ढूढ़ लेना मुझे , मेरे खोने से पहले
और सहेज लेना गमछी के छोर में
फ़ेंक देना गमछिया किसी गुप्त गन्दी नाली में
और करना इन्तजार फिर प्रलय की शान्ति का

इस बार जीवन का अंकुर गन्दी नाली से फूटेगा
आदम के प्रेम और हउआ की कोख से नही
फिर मिट जाएंगे सभी ऊंच नीच के भेद
धर्म कर्म भी ना अपने मुंह खोलेगा

पर तुम ढूंढ लेना मुझे, मेरे खोने से पहले

2.

मेरे हाथो में रखकर
अपनी नन्ही उँगलियाँ
तुमने नाप लिया बामन से भी अधिक
मेरे ह्रदय तल का त्रिलोक

रेंगते हुए हथेली से
कपोलों तक का सफर
तुमने वास्कोडिगामा से भी अधिक
चतुराई और धैर्य से
संपन्न किया

छिन ली कुछ ही क्षणों में
आँखों से दुःख की हर बदरी
और पराजित कर दिया
इंद्रदेव को

तुम्हारी देह की रंगत
जैसे चिकने मक्खन में
एक चुटकी केसर
कान्हा के हर रूप की
स्मृति धरे तुमने
वृंदावन को जीवित कर दिया

इतना मोहक रूप
इतनी चंचलता
और इतना प्रेम
अब मैंने सुंदरता के एक
और चरण को पूर्ण कर लिया

तुम्हें जन्म देकर….
ईश्वर से पाए
हर रूप गुण को
एक नया आयाम दे दिया …..

संजना , शिक्षिका और साहित्यकार, कोलकाता

संजना , शिक्षिका और साहित्यकार, कोलकाता

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