गंगटोक: सिक्किम में बादल फटने की घटना के बाद आयी बाढ़ ने राज्य में बड़ी तबाही मचायी है। इससे राज्य का एक बड़ा हिस्सा पूरी तरह से देश के दूसरे हिस्सों से कट गया है। बादल फटने की वजह से तीस्ता नदी में अचानक आयी बाढ़ में अब तक 14 लोगों की जान चली गईं है। जबकि 102 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं।
इनमें से 22 सेना के जवान हैं। मामले में पाक्योंग के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ताशी चोपेल ने लापता सभी जवानों की मौत की आशंका जताई है और कई के शवों को बरामद कर लिया गया है। इसके अलावा बड़ी संख्या में घर नदी के बहाव में बह गए हैं। सेना व एनडीआरएफ की ओर से बचाव कार्य शुरू किया गया है। लेकिन लगातार हो रही बारिश इसमें बाधा उत्पन्न कर रही है।
अचानक 15 से 20 फीट तक बढ़ गया जलस्तर
डिफेंस PRO के अनुसार, सिक्किम के ल्होनक झील के किनारे मंगलवार देर रात, लगभग डेढ़ बजे के आसपास बादल अचानक फट गए। इसके परिणामस्वरूप, लाचेन घाटी में स्थित तीस्ता नदी में अचानक बाढ़ आ गई। नदी का जलस्तर अचानक 15 से 20 फीट तक बढ़ गया। जिससे पानी बेहद गहरी और तेजी से बढ़ गया। इससे नदी के पास के इलाकों में पानी का बहाव तेजी से बढ़ गया। कई घरों में पानी घुस आया। लोगों को अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित इलाकों में जाना पड़ा।
गोलितार और सिंगताम क्षेत्र से पांच शव बरामद:
गंगटोक के एसडीएम महेंद्र छेत्री ने कहा कि ‘गोलितार और सिंगताम क्षेत्र से पांच शव बरामद किए गए हैं। तीन लोगों को गोलितर से बचाया गया है।‘ एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘राज्य की राजधानी गंगटोक से 30 किलोमीटर दूर सिंगतम में एक स्टील पुल (जिसे इंद्रेनी पुल के नाम से जाना जाता है) बुधवार तड़के तीस्ता नदी के पानी में पूरी तरह बह गया।‘ सिक्किम सरकार ने एक अधिसूचना में कहा कि इस आपदा को प्राकृतिक आपदा घोषित किया गया है।
प्रधानमंत्री ने दिया मदद करने का आश्वासन
सिक्किम में बादलों के फटने के बाद, पश्चिम बंगाल में भी कलिम्पोंग जिले में बाढ़ की स्थिति हो गई है। राज्य के मुख्य सचिव, एचके द्विवेदी ने बताया कि तीस्ता बैराज से तीन शव मिले हैं, लेकिन अब तक उनकी पहचान नहीं हो पाई है। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिक्किम की स्थिति के बारे में जानने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग से बातचीत की। उन्होंने उन्हें मदद करने का आश्वासन दिया है।
पहले ही लगाया गया था अंदेशा
ल्होनक झील के पास बादल फटने का अंदेशा पहले से ही था। यह झील सिक्किम के 14 ग्लेशियल लेक्स में से एक है। वैज्ञानिकों ने इसे ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) के प्रति बेहद संवेदनशील बताया था। केंद्र सरकार ने 29 मार्च को संसद में एक रिपोर्ट पेश की।
जिसमें बताया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, हिमालय से निकलने वाली नदियों का जलस्तर किसी भी समय में बढ़ सकता है। यह प्राकृतिक आपदा का रूप ले सकता है, जैसे कि ग्लेशियर एवलॉन्च, हिमस्खलन, और ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जैसी खतरनाक प्राकृतिक आपदाएं रही हैं।
जानिए ये रिपोर्ट्स
हिमालय के ग्लेशियरों में हो रहे पिघलाव का अध्ययन संसद में रिपोर्ट में दर्ज किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।
हिमालय में ठंडे दिन-रात की संख्या में कमी और गर्म दिन-रात की संख्या में वृद्धि हो रही है। गत तीन दशकों में हिमालय के ग्लेशियरों की स्थिति गंभीर रूप से से बदल चुकी है, और इनमें से कुछ ग्लेशियर, जैसे कि गंगोत्री, चोराबारी, दुनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी, विशेष ध्यान में रखे जा रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स के वैज्ञानिकों ने 14,798 हिमालय के ग्लेशियरों का अध्ययन किया। इस अध्ययन से पता चला कि इन ग्लेशियरों की पिघलाव की दर 10 गुना तेजी से बढ़ रही है। इनके मेल्ट होने से जो पानी निकला है, उससे समुद्र के जलस्तर में 0.92 से 1.38 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हुई है। इस परिवर्तन का मानव समुद्र तटों और जलवायु पर प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही हिमालय के जल संसाधनों की सुरक्षा पर भी खतरा हो सकता है।