देवघर : राजनीतिक जीवन में पारदर्शिता, शालीनता और सौम्यता की मिसाल कृष्णानंद झा, जो अपने पिता पंडित विनोदानंद झा के आदर्शों पर चले, आज हमारे बीच नहीं रहे। रविवार को पूर्णिमा के दिन उनका निधन हो गया। वह एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने राजनीति और सामाजिक कार्यों में कभी भी शुचिता से समझौता नहीं किया। उनका निधन देवघर में गहरी शोक लहर छोड़ गया है।
पिता के आदर्शों से प्रेरित कृष्णा बाबू
कृष्णानंद झा ने अपने पिता, स्व. पंडित विनोदानंद झा से प्रेरणा ली, जो 1961 में बिहार के मुख्यमंत्री थे। पंडित नेहरू के पटना दौरे के दौरान कृष्णानंद झा ने उन ऐतिहासिक दिनों को नजदीक से देखा था। पंडित विनोदानंद झा के मुख्यमंत्री बनने और कृष्णा बाबू के मंत्री बनने के बीच आदर्शों पर कोई समझौता नहीं हुआ। यही वजह थी कि वह राजनीति में हमेशा सम्मानित और ईमानदार रहे।
राजनीतिक यात्रा की शानदार शुरुआत
1983 में, कृष्णानंद झा को चंद्रशेखर प्रसाद सिंह के कार्यकाल में सिंचाई और राजभाषा मंत्री के रूप में पहली बार जिम्मेदारी मिली। इसके बाद, सत्येंद्र नारायण सिंह के समय में उन्हें विधानसभा प्रश्नोत्तर समन्वय का भी जिम्मा सौंपा गया। उन्होंने तीन बार मधुपुर विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया और हर बार जनता के दिलों में अपनी विशेष पहचान बनाई।
सामाजिक कार्यों में भी महत्वपूर्ण योगदान
राजनीति में अपनी भूमिका के अलावा, कृष्णानंद झा सामाजिक कार्यों में भी पूरी तरह से सक्रिय रहे। सरकार में रहते हुए राजभाषा के उत्थान की दिशा में किए गए उनके प्रयास, उनके मंत्रालय से हटने के बाद भी जारी रहे। उन्होंने हिंदी विद्यापीठ के व्यवस्थापक के रूप में भी अखिल भारतीय स्तर पर इसे आगे बढ़ाया। इस संस्थान के आजीवन कुलाधिपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे, और उनकी कार्यशैली ने हिंदी को एक नई दिशा दी।
देवघर के लोग हमेशा याद करेंगे कृष्णा बाबू को
कृष्णानंद झा का निधन देवघर के लोगों के लिए एक अपूरणीय क्षति है। स्थानीय लोग उन्हें अभिभावक की तरह सम्मानित करते थे। उनके आवास पर अंतिम संस्कार के दौरान भारी भीड़ उमड़ी हुई है। शाम को उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। उनके योगदान और प्रेरणा से लोग हमेशा प्रेरित रहेंगे।